राज्यसभा 22 भाषाओं में लेकिन ये पहल तो पहले लोकसभा में होनी चाहिए
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 19, 2018 11:57 PM2018-07-19T23:57:22+5:302018-07-19T23:57:22+5:30
यह सुविधा संसद के दोनों सदनों को एक समान मिलनी चाहिए. लोकसभा को तो और भी पहले, क्योंकि उसके सदस्य अपनी-अपनी भाषाओं में वोट मांगकर ही चुने जाते हैं. वे वोट मांगते वक्त जिस भाषा में बात करते हैं।
अब राज्यसभा के सदस्य देश की 22 भाषाओं में सदन में बोल सकेंगे. राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की इस पहल पर उनको बधाई. वेंकैया ने स्वयं 10 भाषाओं में अपना पहला वाक्य बोलकर इस पहल का शुभारंभ किया. यह सुविधा संसद के दोनों सदनों को एक समान मिलनी चाहिए. लोकसभा को तो और भी पहले, क्योंकि उसके सदस्य अपनी-अपनी भाषाओं में वोट मांगकर ही चुने जाते हैं. वे वोट मांगते वक्त जिस भाषा में बात करते हैं, यदि उसी भाषा में वे संसद में भी बोलें तो उनके लाखों मतदाताओं को भी पता चलेगा कि हमारा प्रतिनिधि दिल्ली में बैठकर हमारे लिए क्या कर रहा है. दूसरे शब्दों में संसद और आम जनता के बीच यह पहल एक सच्चे सेतु का काम करेगी.
आजकल तो टीवी चैनलों पर संसद की सारी कार्यवाही देखी और सुनी जाती है. इसलिए इस पहल का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. यह प्रश्न हो सकता है कि कोई सांसद तमिल में बोलेगा तो देश के गैर-तमिल लोग उसे कैसे समङोंगे? इसका जवाब यह है कि हर भाषण का हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद भी साथ-साथ होगा. मैं तो वह दिन देखने को तरस रहा हूं जबकि न तो कोई संसद में अंग्रेजी में बोले और न ही कोई अंग्रेजी में अनुवाद हो. सभी भारतीय भाषाओं में बोलें और राष्ट्रभाषा हिंदी उनका सेतु बने. यदि सांसदों को अपनी भाषा में अपनी बात कहने की सुविधा होगी तो वे उसे बेहतर और असरदार ढंग से कह सकेंगे.
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संसद का मूल काम कानून बनाना है. अपने इस असली काम को वह हिंदी में कब शुरू करेगी? उसने 70 साल तो अंग्रेजी की गुलामी में काट दिए और हमारे नेताओं का जो हाल अभी है, उसे देखते हुए लगता है कि 700 साल भी इस गुलामी से मुक्त होने में कम पड़ेंगे. यदि संसद के मूल कानून हिंदी में बनने लगें तो भारत की न्याय-व्यवस्था में रातों-रात पंख लग जाएंगे. वह अभी घिसट रही है. तब वह उड़ने लगेगी. वह जादू-टोना नहीं रहेगी.
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