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राजस्थानः चुनाव हारे हुए नेताओं को भी मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 18, 2018 23:10 IST

राजस्थान में कांग्रेस जीत गई, लेकिन मानवेन्द्र सिंह, गिरिजा व्यास, रामेश्वर डूडी आदि ऐसे बड़े नेता हैं जो चुनाव हार गए हैं

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राजस्थान में कांग्रेस जीत गई, लेकिन मानवेन्द्र सिंह, गिरिजा व्यास, रामेश्वर डूडी आदि ऐसे बड़े नेता हैं जो चुनाव हार गए हैं. क्योंकि इस वक्त सारे निर्णय 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर लिए जा रहे हैं, इसलिए माना जा रहा है कि हारे हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को भी सत्ता और संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.

जहां मानवेन्द्र सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ दिखती हुई हार के बावजूद चुनौती स्वीकार की, वहीं गिरिजा व्यास ने राजे सरकार के राजे के बाद दूसरे सबसे ताकतवर मंत्री गुलाबचन्द कटारिया के खिलाफ चुनाव लड़ा था.

वैसे तो राजस्थान के राजपूत लंबे समय से भाजपा से नाराज चल रहे हैं, इसलिए इस बार कांग्रेस के करीब आए हैं, लेकिन इन्हें कांग्रेस में अपेक्षाओं के सापेक्ष महत्व नहीं मिला तो वे पुनः भाजपा की ओर जा सकते हैं. इस बार केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की राजस्थान में सक्रियता के नतीजे में ही यहां राजपूतों की नाराजगी के सापेक्ष भाजपा को उतना बड़ा नुकसान नहीं हुआ. राजस्थान के राजपूत राजनाथ सिंह को भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं. सीएम राजे पिछली बार झालरापाटन से 60 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीती थीं, जबकि इस बार उन्होंने करीब 35 हजार वोटों से जीत हांसिल की है. मानवेन्द्र सिंह को मजबूत करने से जहां राजपूत समाज का समर्थन कांग्रेस को मिल सकता है, वहीं पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस को बड़ा लाभ मिल सकता है.

दक्षिण राजस्थान में कांग्रेस को जितनी उम्मीद थी, उसके सापेक्ष कामयाबी नहीं मिली. उदयपुर शहर से पूर्व केन्द्रीय मंत्री गिरिजा व्यास चुनाव हार गई, हालांकि राजे सरकार के गृहमंत्री भी आसान जीत दर्ज नहीं करा पाए. जहां पिछली बार गुलाबचन्द कटारिया करीब 25 हजार वोटों से जीते थे वहीं इस बार उनकी जीत आधे से भी कम, करीब 9 हजार वोटों पर आ गई.

दक्षिण राजस्थान कांग्रेस का बड़ा गढ़ रहा है. हालांकि, इस बार यहां से कांग्रेस की जीत की गणित सुधरी जरूर है, किन्तु यदि इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान हो सकता है. माना जा रहा है कि गिरिजा व्यास को बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है, क्योंकि एक तो, यहां कांग्रेस को अभी पैर ठीक से जमाने की जरूरत है और दूसरा- वे महिला नेता हैं और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के पक्षधर हैं.

वैसे तो रामेश्वर डूडी बतौर सीएम उम्मीदवार चर्चाओं में थे, लेकिन वे नौंखा से करीब नौ हजार वोटों से चुनाव हार गए. उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर भले ही महत्व दिया जाए, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, उन्हें आगे आने देंगे, इस पर संशय है.

दक्षिण राजस्थान में ही वागड़ क्षेत्र- बांसवाड़ा, डूंगरपुर जिलो में नौ में से एक भी सीट सामान्य वर्ग के लिए नहीं है. पिछली बार वहां से नौ में से आठ सीटें भाजपा ने जीती थी, किन्तु इस बार सियासी तस्वीर एकदम बदल गई है, इस बार वहां से जहां भाजपा तीन सीटें और कांग्रेस भी तीन सीटें जीत पाई, वहीं दो सीटों पर एकदम नई पार्टी- बीटीपी ने कब्जा जमा लिया है. कुशलगढ़ की सीट कांग्रेस की बागी रमीला खड़िया ने जीती है. यह सीट कांग्रेस ने लोजपा को दी थी, किन्तु उसके उम्मीदवार का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. 

यहां की लोकसभा सीट भाजपा ने जीती थी, किन्तु अब इस पर प्रश्न चिन्ह लग गया है, हालांकि बीटीपी की मौजूदगी के कारण यह सीट कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है. वहां लोकसभा चुनाव में सामान्य वर्ग के मतदाता निर्णायक होंगे, लिहाजा वहां से कांग्रेस, डूंगरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश खोड़निया जैसे सामान्य वर्ग के किसी नेता को बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है. 

वागड़ में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी का विशेष प्रभाव रहा है. जोशी तो ताउम्र इस क्षेत्र से विधायक रहे थे, उनके बेटे दिनेश जोशी भी बांसवाड़ा विस सीट से चुनाव लड़े थे, तो कभी इस क्षेत्र में बांसवाड़ा के पूर्व जिला प्रमुख पवन कुमार रोकड़िया का भी खासा प्रभाव था. इस वक्त दोनों ही नेता सियासत में उस तरह से सक्रिय नहीं हैं, लेकिन उनकी सक्रियता का कांग्रेस को लाभ मिल सकता है.

बहरहाल, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस राजस्थान में हारे हुए प्रमुख नेताओं को भी बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है और विकल्प के अभाव में उन्हें लोकसभा चुनाव में भी अवसर दे सकती है.

टॅग्स :राजस्थानवसुंधरा राजेभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
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