संगीत सम्मेलनों से मिला अपमान, मंदिरों में साधा सुर... कुछ ऐसा रहा वडाली बंधुओं की गायिकी का सफर

By गुलनीत कौर | Updated: March 9, 2018 15:28 IST2018-03-09T12:07:46+5:302018-03-09T15:28:58+5:30

वडाली बंधुओं में छोटे भाई प्यारे लाल वडाली का 9 मार्च 2018 को अमृतसर के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया।

Pyarelal Wadali of wadali brothers died in amritsar take a look on the journey of both the sufi singers | संगीत सम्मेलनों से मिला अपमान, मंदिरों में साधा सुर... कुछ ऐसा रहा वडाली बंधुओं की गायिकी का सफर

संगीत सम्मेलनों से मिला अपमान, मंदिरों में साधा सुर... कुछ ऐसा रहा वडाली बंधुओं की गायिकी का सफर

'तू माने या ना माने दिलदारा, असां ते तेनू रब मनया'... पंजाबी लोक गीतों में अपनी एक अलग ही पहचान बना चुके वडाली ब्रदर्स (वडाली बंधू) की जोड़ी टूट गई। हाल ही में खबर आई कि छोटे भाई प्यारे लाल वडाली का अमृतसर के फोर्टिस अस्पताल में हृदय आघात के कारण निधन हो गया। यह खबर उन सभी के लिए दुखों के सागर की तरह है जिनके दिल में पंजाबी लोक गीतों के लिए प्यार भरा है। केवल पंजाब ही नहीं, वडाली ब्रदर्स ने देश दुनिया में अपनी कला को प्रदर्शित कर पंजाबी संगीत का परचम लहराया है। 

अमृतसर के छोटे से गांव में हुआ जन्म

बड़े भाई पूरनचंद वडाली और छोटे भाई प्यारे लाल वडाली, पंजाब में सूफी गायकी के लिए वर्षों से प्रसिद्ध रही है ये जोड़ी। पंजाब में अमृतसर के छोटे से गांव 'गुरु की वडाली' में दोनों भाइयों का जन्म हुआ। इनके पिता ठाकुर दस वडाली ने बड़े बेटे पूरनचंद पर संगीत और सूफी गायकी सीखने जोर दिया। पूरनचंद ने सूफी जहां की जानी मानी हस्ती पंडित दुर्गा दास जी और पटियाला के उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से सूफी संगीत की शिक्षा प्राप्त की। प्रेमचंद ने ही छोटे भाई प्यारे लाल को सूफी संगीत और गायकी का पाठ पढ़ाया। प्यारे लाल अपने बड़े भाई से बेहद स्नेह करते थे और उन्हें अपना गुरु मानते हुए बेहद सम्मान देते थे।

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संगीत सम्मलेन से कर दिया गया था बाहर

वर्ष 1975 में पहली बार दोनों भाइयों ने अपने गांव से बाहर निकल जालंधर में पहली बार 'अखाड़ा' (पंजाबी संगीत समारोह) लगाया था। लोगों को यह अखाड़ा बेहद पसंद आया और दोनों भाइयों का सभी का भरपूर प्यार मिला। लेकिन यह तो केवल सफर की शुरुआत थी। कुछ कर दिखाने की जिद्द ने दोनों भाइयों को जालंधर के हर्बल्लाह संगीत सम्मलेन में पहुंचा दिया, लेकिन यहां उन्हें अपनी कला प्रदर्शित क्लारने की मौक़ा नहीं दिया गया और बाहर निकाल दिया गया। लेकिन भाइयों की इस जोड़ी ने हार नहीं मानी। 

दोनों हर्बल्लाह मंदिर में पहुंच गए और वहां कुछ दिनों तक उन्होंने अपनी रसभरी आवाज से लोगों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। यहां आल इंडिया रेडियो जालंधर के मालिक की उनपर नजर पड़ी और उसने दोनों भाइयों को एक मौका दिया। 

बॉलीवुड में भी कमाया नाम

वडाली ब्रदर्स की गायकी में पंजाब का जिक्र तो हुआ ही है, साथ ही गुरबाणी, गज़ल, भजन आदि भी उनके अंदाज में शामिल रही है। वर्ष 2003 में पहली बार उनकी आवाज को बॉलीवुड फिल्म में शामिल होने का मौका मिला। गुलजार की लिखावट और वडाली ब्रदर्स की आवाज ने 'पिंजर' फिल्म के गाने 'दर्दा मारया' को प्रसिद्ध कर दिया। भारत ही नहीं, विदेशों से भी दोनों भाइयों को ढेरों निमंत्रण आए। एमटीवी के कोक स्टूडियो पर उनके एक गाने 'तू माने या ना माने दिलदारा, असां ते तेनू रब मनया' ने 11 मिलियन से भी अधिक व्यूज प्राप्त किए हैं। यह कोक स्टूडियो के प्रसिद्ध और सबसे अधिक देखे गए गानों में से एक है।

पूरनचंद वडाली के पुत्र लखविंदर वडाली भी सूफी गायकी के बारे में काफी कुछ जानते हैं। पंजाबी संगीत इंडस्ट्री में वे भी एक जाना माना नाम हैं। सूफी और गज़ल गायकी की यह रफ़्तार यूं ही बनी रहती लेकिन उस विधाता को शायद कुछ और ही मंजूर था। छोटे भाई प्यारे लाल के जाने के बाद यह जोड़ी अब टूट गई है.........

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