'पहाड़ों का सम्मान जरूरी, पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए': आपदाग्रस्त जोशीमठ पर पुरी शंकराचार्य

By अनिल शर्मा | Published: January 12, 2023 10:27 AM2023-01-12T10:27:40+5:302023-01-12T10:32:34+5:30

 पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि विकास शब्द को इसके उचित संदर्भ में समझा जाना चाहिए। शकंराचार्य ने ANI से कहा कि पृथ्वी, जल और वायु "ऊर्जा के स्रोत हैं"। पृथ्वी और पर्यावरण को शुद्ध और प्रदूषण मुक्त रखना हमारा काम है।

Puri Shankaracharya on Joshimath crisis Respect mountains development should not happen at the cost of environment | 'पहाड़ों का सम्मान जरूरी, पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए': आपदाग्रस्त जोशीमठ पर पुरी शंकराचार्य

'पहाड़ों का सम्मान जरूरी, पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए': आपदाग्रस्त जोशीमठ पर पुरी शंकराचार्य

Highlightsचमोली जिले के डीएम हिमांशु खुराना के मुताबिक 700 से अधिक घरों में दरारें देखी गई हैं।शंकराचार्य ने प्रकृति का सम्मान करते हुए विकास करने पर जोर दिया है।पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि जोशीमठ का धंसना खतरे की घंटी है।

हावड़ा: उत्तराखंड के जोशीमठ समेत चमोली जिले के कई इलाकों में भूमि धंसवा को लेकर पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं होना चाहिए। पहाड़ों का सम्मान जरूरी है। शंकराचार्य ने प्रकृति का सम्मान करते हुए विकास करने पर जोर दिया है और कहा है कि संतुलन बनाए रखने की जरूरत है।

जोशीमठ में भूमि धंसने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पहाड़ों का सम्मान करना जरूरी है। उन्होंने कहा, "वे (पहाड़) पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखते हैं। नदियां और जंगल भी पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखते हैं।" शंकराचार्य ने आगे कहा कि विकास शब्द को इसके उचित संदर्भ में समझा जाना चाहिए। शकंराचार्य ने ANI से कहा कि पृथ्वी, जल और वायु "ऊर्जा के स्रोत हैं"। पृथ्वी और पर्यावरण को शुद्ध और प्रदूषण मुक्त रखना हमारा काम है।

चमोली जिले के डीएम हिमांशु खुराना के मुताबिक 700 से अधिक घरों में दरारें देखी गई हैं। 131 परिवार को रिलीफ सेंटर में शिफ्ट कर दिया गया है। सरकार ने प्रभावित घरों के परिवारवालों को बाजार के रेट पर मुआवजा देने की घोषणा की है।

उधर, पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने एएनआई को बताया कि जोशीमठ का धंसना खतरे की घंटी है। उन्होंने दशकों या सदियों पहले ग्लेशियरों और अन्य प्राकृतिक घटनाओं द्वारा छोड़े जा सकने वाले मलबे पर बस्तियां होने के दीर्घकालिक जोखिमों के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि भूमि धंसाव नदी के कटाव के कारण भी हो सकता है और पहाड़ी शहरों की जनसंख्या वहन क्षमता पर अध्ययन का सुझाव दिया।

Web Title: Puri Shankaracharya on Joshimath crisis Respect mountains development should not happen at the cost of environment

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