संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को प्यार-मोहब्बत में नहीं कर सकते गिफ्ट, सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल 'दान-धर्म' में दी जा सकती है ऐसी जायदाद

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 19, 2022 09:53 PM2022-04-19T21:53:30+5:302022-04-19T21:58:13+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि अविभाजित हिन्दू परिवार का पिता या अन्य व्यक्ति किसी पैतृक सम्पत्ति को केवल 'नेक मकसद' से ही उपहार स्वरूप दे सकता है। 

property of a joint family cannot be gifted in love, the order of the Supreme Court can be given only in 'charity-religion' | संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को प्यार-मोहब्बत में नहीं कर सकते गिफ्ट, सुप्रीम कोर्ट का आदेश केवल 'दान-धर्म' में दी जा सकती है ऐसी जायदाद

फाइल फोटो

Highlightsहिन्दू परिवार में पिता या मुखिया पैतृक सम्पत्ति को उपहार के तौर पर केवल धार्मिक या सामाजिक कार्यों के लिए दे सकता हैअविभाजित हिन्दू परिवार की पैतृक सम्पत्ति को 'प्यार या स्नेह में देना 'नेक मकसद' में नहीं आएगापरिवार के सदस्यों की रजामंदी के बिना उपहार में दी गई संपत्ति मान्य कानूनी परम्परा का उल्लंघन है

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि अविभाजित हिन्दू परिवार का पिता या अन्य व्यक्ति किसी पैतृक सम्पत्ति को केवल 'नेक मकसद' से ही उपहार स्वरूप दे सकता है। अदालत ने कहा कि 'नेक मकसद' से आशय किसी दानधर्म के लिए दिया गये उपहार से है।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसेल में कहा, "यह मान्य परम्परा है कि अविभाजित हिन्दू परिवार का पिता या कोई अन्य व्यक्ति अपनी पैतृक सम्पत्ति को उपहार के तौर पर केवल धार्मिक या अन्य सामाजिक कार्यों के लिए ही उपहार के तौर पर दे सकता है।"

सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि 'प्यार या स्नेह वश किसी को उपहार देना अविभाजित हिन्दू परिवार की पैतृक सम्पत्ति को 'नेक मकसद' से उपहारस्वरूप देने के अंतर्गत नहीं आएगा।'

अदालत ने कहा कि अविभाजित हिन्दू संयुक्त परिवार द्वारा तीन परिस्थितियों में ही सम्पत्ति को हटाया जा सकता है, 1- कानूनी कारण से, 2- सम्पत्ति के लाभ के लिए और 3- परिवार के सभी सदस्यों की आपसी सहमति से।

अदालत ने कहा कि यदि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को परिवार के सभी सदस्यों की रजामंदी के बिना किसी को दिया गया है तो यह मान्य कानूनी परम्परा का उल्लंघन है।

अदालत केसी चंद्रपा गौड़ा की याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें उन्होंने अपने पिता केएस चिन्ना गौड़ा पर अपनी एक-तिहाई सम्पत्ति एक लड़की को उपहार स्वरूप देने के खिलाप अदालत में याचिका दायर की थी। विवादित सम्पत्ति संयुक्त परिवार की सम्पत्ति थी।

अदालत ने फैसले में कहा कि चूँकि लाभार्थी परिवार का सदस्य नहीं है इसलिए उसके नाम पर सम्पत्ति का हस्तांतरण कानूनी रूप से वैध नहीं है। निचली अदालत ने सम्पत्ति उपहार में देने के पक्ष में फैसला किया था लेकिन अपील अदालत में उसे पलट दिया और इसे गैर-कानूनी बताया।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपील अदालत के फैसले को बदिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि अविभाजित हिन्दू परिवार का पिता या अन्य व्यक्ति किसी पैतृक सम्पत्ति को केवल 'नेक मकसद' से ही उपहार स्वरूप दे सकता है। अदालत ने कहा कि 'नेक मकसद' से आशय किसी दानधर्म के लिए दिया गये उपहार से है।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसेल में कहा, "यह मान्य परम्परा है कि अविभाजित हिन्दू परिवार का पिता या कोई अन्य व्यक्ति अपनी पैतृक सम्पत्ति को उपहार के तौर पर केवल धार्मिक या अन्य सामाजिक कार्यों के लिए ही उपहार के तौर पर दे सकता है।"

सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि 'प्यार या स्नेह वश किसी को उपहार देना अविभाजित हिन्दू परिवार की पैतृक सम्पत्ति को 'नेक मकसद' से उपहारस्वरूप देने के अंतर्गत नहीं आएगा।'

अदालत ने कहा कि अविभाजित हिन्दू संयुक्त परिवार द्वारा तीन परिस्थितियों में ही सम्पत्ति को हटाया जा सकता है, 1- कानूनी कारण से, 2- सम्पत्ति के लाभ के लिए और 3- परिवार के सभी सदस्यों की आपसी सहमति से।

अदालत ने कहा कि यदि संयुक्त परिवार की सम्पत्ति को परिवार के सभी सदस्यों की रजामंदी के बिना किसी को दिया गया है तो यह मान्य कानूनी परम्परा का उल्लंघन है।

अदालत केसी चंद्रपा गौड़ा की याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें उन्होंने अपने पिता केएस चिन्ना गौड़ा पर अपनी एक-तिहाई सम्पत्ति एक लड़की को उपहार स्वरूप देने के खिलाप अदालत में याचिका दायर की थी।  विवादित सम्पत्ति संयुक्त परिवार की सम्पत्ति थी।

अदालत ने फैसले में कहा कि चूँकि लाभार्थी परिवार का सदस्य नहीं है इसलिए उसके नाम पर सम्पत्ति का हस्तांतरण कानूनी रूप से वैध नहीं है। निचली अदालत ने सम्पत्ति उपहार में देने के पक्ष में फैसला किया था लेकिन अपील अदालत में उसे पलट दिया और इसे गैर-कानूनी बताया।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपील अदालत के फैसले को बरकरार रखा और अब सर्वोच्च अदालत ने भी याची के हक में फैसला दिया है।  रकरार रखा और अब सर्वोच्च अदालत ने भी याची के हक में फैसला दिया है।

Web Title: property of a joint family cannot be gifted in love, the order of the Supreme Court can be given only in 'charity-religion'

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