अवमानना केस मामले में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगने से किया इनकार

By रामदीप मिश्रा | Published: August 24, 2020 02:00 PM2020-08-24T14:00:15+5:302020-08-24T14:00:15+5:30

शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। न्यायालय ने कहा था कि इन ट्वीट को ‘जनहित में न्यायपालिका की कार्यशैली की स्वस्थ आलोचना के लिये किया गया’ नहीं कहा जा सकता।

Prashant Bhushan Would not Apologise, say Would Be Contempt Of My Conscience | अवमानना केस मामले में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगने से किया इनकार

फाइल फोटो

Highlightsअधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आज अपना जवाब दाखिल किया है। प्रशांत भूषण ने साफतौर पर बिना शर्त माफी मांगने से इनकार कर दिया है।

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक ट्वीट के लिए क्षमा याचना से इंकार करने संबंधी अपने बगावती बयान पर पुनर्विचार करने और बिना शर्त माफी मांगने के लिए 24 अगस्त तक का समय दिया था। इस पर उन्होंने आज अपना जवाब दाखिल किया है। प्रशांत भूषण ने साफतौर पर बिना शर्त माफी मांगने से इनकार कर दिया है और कहा कि वह उनका विचार था और वह उस पर कायम हैं। 

न्यायालय ने अवमानना के लिए दोषी ठहराए गए भूषण की सजा के मामले पर दूसरी पीठ द्वारा सुनवाई का उनका अनुरोध ठुकराया दिया था। न्यायालय ने इस मामले में भूषण को दी जाने वाली सजा के सवाल पर सुनवाई पूरी करते हुए उनका यह अनुरोध भी अस्वीकार कर दिया था कि इस फैसले के खिलाफ अभी दाखिल की जाने वाली पुनर्विचार याचिका पर निर्णय होने तक सुनवाई स्थगित कर दी जाए। 

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा था कि अगर भूषण बिना शर्त माफीनामा दाखिल करते हैं तो वह 25 अगस्त को इसपर सुनवाई करेगी। भूषण को 'लक्ष्मण रेखा' का ध्यान दिलाते हुए शीर्ष अदालत ने सवाल किया था कि इसे क्यों लांघा गया। साथ ही न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि अवमानना के मामले में सजा पर बहस की सुनवाई के लिये इसे किसी दूसरी पीठ को सौंपने की बात करके 'अनुचित' कृत्य किया गया है।

शीर्ष अदालत ने 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट के लिए आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था। न्यायालय ने कहा था कि इन ट्वीट को ‘जनहित में न्यायपालिका की कार्यशैली की स्वस्थ आलोचना के लिये किया गया’ नहीं कहा जा सकता। न्यायालय की अवमानना के जुर्म में उन्हें अधिकतम छह महीने तक की कैद या दो हजार रुपए का जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है। 

न्यायालय ने भूषण द्वारा माइक्रो ब्लॉगिंग साइट पर 27 जून को न्यायपालिका की पिछले छह साल की कार्यशैली के बारे में और 22 जुलाई को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के बारे में पोस्ट किये गये इन ट्वीट का विश्लेषण भी किया था। 

Web Title: Prashant Bhushan Would not Apologise, say Would Be Contempt Of My Conscience

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