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देश में पुराने सिलेबस से हो रही फार्मेसी की पढ़ाई, नई तकनीक के दौर में पहुंचने वाली फार्मेसी इंडस्ट्रीज का सिलेबस सालों से अपडेट नहीं

By शाहनवाज आलम | Updated: January 22, 2023 21:17 IST

आज भारत में फार्मेसी की पढ़ाई पुराने ढर्रे पर ही हो रही है। वर्षों पुराने सिलेसब से यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी फार्मेसी की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं।

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ठळक मुद्देदेश को फार्मेसी ऑफ दर वर्ल्ड (दुनिया की फार्मेसी) के रूप में जाना जाता हैअफ्रीका में जेनरिक दवाओं की कुल मांग का 50 फीसदी भारत से जाता हैअमेरिका की जरूरत की 40 फीसदी और और यूके की 25 फीसदी जेनरिक दवाओं की आपूर्ति भारत करता है

नागपुर : एक ओर जहां देश में हम विश्व स्तरीय दवाओं का उत्पादन कर रहे हैं, नई-नई तकनीक के माध्यम से दवाओं को बनाने के लिए हाईटेक और डिजिटल लैब का निर्माण कर रहे हैं। देश को फार्मेसी ऑफ दर वर्ल्ड (दुनिया की फार्मेसी) के रूप में जाना जाता है। अफ्रीका में जेनरिक दवाओं की कुल मांग का 50 फीसदी भारत से जाता है। 

इतना ही नहीं अमेरिका की जरूरत की 40 फीसदी और और यूके की 25 फीसदी जेनरिक दवाओं की आपूर्ति भारत करता है। इन सब उपलब्धियों के होते हुए भी जिस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है वो है यूनिवर्सिटी में हो रही फार्मेसी की पढ़ाई। आज भारत में फार्मेसी की पढ़ाई पुराने ढर्रे पर ही हो रही है। वर्षों पुराने सिलेसब से यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी फार्मेसी की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं। जबकि फार्मेसी का क्षेत्र सिलेबस से कहीं ज्यादा आगे निकल चुका हैं। जिन विषयों की पढ़ाई यूनिवर्सिटी में हो रही है, उसका फार्मेसी के क्षेत्र में उपयोग न के बराबर है।

तकनीक आगे निकली, छात्र रह गए पीछे

फार्मेसी के क्षेत्र में भारत ने तेजी से तरक्की की है। फार्मेसी इंडस्ट्री में नई तकनीक का अ‌विष्कार किया है, अब कुछ भी मैनुअल या लैब में प्रयोग जैसी स्थिति नहीं रही। या यू कहें कि यह तकनीक अब तेजी से कम हो रही है। सब कुछ डिजिटल तरीके से हो रहा है, लेकिन बात करें यूनिवर्सिटी में हो रही पढ़ाई की तो नई सारी तकनीक सिलेबस में शामिल ही नहीं है। वर्षों पुराने सिलेबस को ही छात्रों को पढ़ाया जा रहा है।

छात्र और फार्मेसी इंडस्ट्री के बीच बड़ी खाई

इंटरनेशनल फार्मास्युटिकल एक्सीसिएंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल कौशिक देसाई का कहना है कि सिलेबस में वो नहीं पढ़ाया जा रहा है जो आज भारतीय फार्मेसी में इंडस्ट्री तकनीक इस्तेमाल कर रही है, सिलेबस में उसका जिक्र ही नहीं है, जबकि यूनिवर्सिटी को वो पढ़ाना चाहिए जो इंडस्ट्री में चल रहा है। आज के दौर में यूनिवर्सिटी को जॉब ओरिएंटेड सिलेबस छात्रों को पढ़ाना चाहिए, ताकी उन्हें समय के हिसाब से ढाला जा सके।

यूनिवर्सिटी खुद तय कर रही सिलेबस

अभी जो फार्मेसी की पढ़ाई हो रही है, उसका सिलेबस यूनिवर्सिटी अपने स्तर पर ही तय कर रही है, जबकि इंडस्ट्री में अलग ही स्तर पर कार्य हो रहे हैं। 72वीं इंडियन फार्मास्युटिकल कांग्रेस में लोकल ऑर्गनाइजिंग कमेटी के सेक्रेटरी रवलीन सिंह खुराना ने कहा कि यूनिवर्सिटी को सिलेबस बनाने के वक्त तमाम एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए, लेकिन अभी सिलेबस तय करते वक्त केवल यूनिवर्सिटी ही तय कर लेती है। जबकी सभी क्षेत्र के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए, लेकिन यूनिवर्सिटी ऐसा नहीं करती है। फार्मेसी का क्षेत्र काफी आगे बढ़ रहा है, लेकिन छात्र हमारे पीछे रह गए हैं।

भारत में थ्योरी ज्यादा, प्रैक्टिकल नॉलेज कम

कैप्सुल्स ग्रुप कंपनी के एसीजी के जनरल मैनेजर केतन परमार का कहना है कि भारत में जो फार्मेसी की पढ़ाई हो रही है उसमें ज्यादा से ज्यादा थ्योरी ही पढ़ाई जाती है, जबकि छात्रों को प्रैक्टिल नॉलेज काफी कम दिया जा रहा है। यही छात्र जब विदेशों में पढ़ाई करने जाते हैं तो उन्हें थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिल नॉलेज दिया जाता है। 

ऐसा सिस्टम हमारे यहां भी लागू हो जाए तो छात्रों को इस क्षेत्र में काफी कामयाबी मिलेगी। वहीं डिजिटल इंडिया के दौर में फार्मेसी का सिलेबस 1 फिसदी भी डिजिटल नहीं है, जब छात्र डिग्री हासिल कर के फार्मेसी क्षेत्र में आते हैं तो उन्हें दोबारा नए तकनीक की जानकारी देनी पड़ती है।

 

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