न्यायालय में धार्मिक एवं धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता का अनुरोध करने वाली याचिका दायर

By भाषा | Published: July 22, 2021 04:10 PM2021-07-22T16:10:01+5:302021-07-22T16:10:01+5:30

Petition filed in court requesting uniform code for religious and charitable donations | न्यायालय में धार्मिक एवं धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता का अनुरोध करने वाली याचिका दायर

न्यायालय में धार्मिक एवं धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता का अनुरोध करने वाली याचिका दायर

नयी दिल्ली, 22 जुलाई उच्चतम न्यायालय में बृहस्पतिवार को एक याचिका दायर करके धार्मिक एवं धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता बनाए जाने का अनुरेध किया गया है और देशभर में हिंदू मंदिरों पर प्राधिकारियों के नियंत्रण का जिक्र करते हुए कहा गया कि कुछ अन्य धार्मिक समूहों को अपनी संस्थाओं के स्वयं प्रबंधन की अनुमति है।

वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को मुसलमान, पारसी और ईसाई समुदायों की तरह अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रख-रखाव का समान अधिकार होना चाहिए और सरकार इस अधिकार को कम नहीं कर सकती।

वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘यह अभिवेदन दिया गया है कि अनुच्छेद 26 के तहत प्रदत्त संस्थानों के प्रबंधन का अधिकार सभी समुदायों का प्राकृतिक अधिकार है, लेकिन हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को इस विशेषाधिकार से वंचित कर दिया गया है।’’

जनहित याचिका में कहा गया है कि देश भर में नौ लाख मंदिरों में से लगभग चार लाख मंदिर हैं जो सरकारी नियंत्रण में हैं। इसमें कहा गया है कि किसी गिरजाघर या मस्जिद से संबंधित कोई ऐसा धार्मिक निकाय नहीं है, जिस पर सरकार का कोई नियंत्रण या हस्तक्षेप देखा जाता हो। याचिका में कहा गया है कि जहां तक कर भुगतान या दान का संबंध है, देश में गिरजाघर और मस्जिद कर का भुगतान नहीं करते।

याचिका में कहा गया है, ‘‘और उल्लिखित इन्हीं कारणों से हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ दान (एचआरसीई) अधिनियम, 1951 और समय-समय पर सरकारों द्वारा लागू किए गए अन्य समान कानूनों को बदलने की आवश्यकता है।’’

याचिका में कहा गया है, ‘‘यह अधिनियम सरकार को मंदिरों के साथ-साथ मंदिरों की संपत्तियों को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। मंदिरों पर लगभग 13 से 18 प्रतिशत सेवा शुल्क लगाया जाता है। हमारे देश में लगभग 15 राज्य हैं जो हिंदू धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण रखते हैं। जब मंदिरों पर सेवा शुल्क लागू किया जाता है, तो यह मूल रूप से सामुदायिक अधिकारों के साथ-साथ उन संसाधनों को भी छीन लेता है जो इसके हितों की रक्षा कर रहे हैं।’’

याचिका में कहा गया है कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को मुसलमान और ईसाई समुदायों की तरह अपने धार्मिक स्थलों की चल-अचल संपत्ति के अधिग्रहण और प्रशासन का समान अधिकार है और सरकारें इसे कम नहीं कर सकतीं।

याचिका में कहा गया है कि मंदिरों-गुरुद्वारों की चल-अचल संपत्ति के अधिग्रहण और प्रशासन के लिए बनाए गए सभी कानून मनमाने एवं तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 26 का उल्लंघन करते हैं, इसलिए वे अमान्य हैं।

इसमें अनुरोध किया गया है, ‘‘यदि आवश्यक हो, तो न्यायालय केंद्र या भारत के विधि आयोग को 'धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों के लिए सामान्य घोषणापत्र' और 'धार्मिक और धर्मार्थ दान के लिए समान संहिता' का मसौदा तैयार करने का निर्देश दे सकता है।

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Web Title: Petition filed in court requesting uniform code for religious and charitable donations

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