प्रशांत किशोर की रणनीति के आगे चित्त हुई बीजेपी, पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में मिली पटखनी
By एस पी सिन्हा | Published: December 6, 2018 03:29 PM2018-12-06T15:29:14+5:302018-12-06T15:29:14+5:30
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं और चाणक्य ने अपने चंद्रगुप्त प्रशांत किशोर को 'पीयू' की इस राजगद्दी पर कब्जा करने का महती टास्क सौंप दिया.
पटना, 6 दिसंबरः पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर आखिरकार जदयू ने कब्जा जमा ही लिया. इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने आखिरकार पहली चुनावी परीक्षा पास कर ही ली. पहली बार पीयू छात्र संघ के चुनाव कुछ इस प्रकार लडे गए जैसे ये चुनाव न होकर मगध साम्राज्य की राजगद्दी पर कब्जा जमाने की लडाई हो.
चाणक्य ने चुटिया बांध ली तो रणनीतिकार से राजनीति में आए नये नवेले चंद्रगुप्त ने साम, दाम, दंड, भेद की रणनीति अपनाने के आरोप झेले, पत्थर भी झेले लेकिन परिणाम सामने है. जदयू ने अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष समेत दो सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं एबीवीपी ने तीन सीटों पर कब्जा जमाया. एबीवीपी के खाते में महासचिव, संयुक्त सचिव और उपाध्यक्ष पद गया है.
छात्र जदयू के मोहित प्रकाश ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के अभिनव को 1200 से अधिक मतों से मात दी है. कोषाध्यक्ष के रूप में छात्र जदयू के कुमार सत्यम चुने गए हैं. एबीवीपी की अंजना सिंह उपाध्यक्ष चुनीं गई हैं. मोहित प्रकाश के मुताबिक उन्होंने ये चुनाव प्रशांत किशोर के नेतृत्व में लड़ा था और अपनी इस जीत के लिए मोहित ने संगठन के कार्यकर्ताओं को सारा श्रेय दिया है.
वहीं उपाध्यक्ष पद पर जीत हासिल करने वाली एबीवीपी की अंजना सिंह के चेहरे पर अपनी जीत के बाद भी अध्यक्ष पद गंवाने का गम साफ नजर आ रहा था. अंजना सिंह ने आरोप लगाया कि छात्रसंघ चुनाव को बाहर से आये बडे राजनीतिक लोगों ने धन-बल और बाहुबल से प्रभावित किया है.
अंजना सिंह ने नवनिर्वाचित अध्यक्ष मोहित प्रकाश की जीत पर संदेह जाहिर किया और इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की बात कही. चुनावी मतगणना के बाद काउंटिंग सेंटर से बाहर निकले असफल प्रत्याशियों ने भी प्रशांत किशोर पर छात्रसंघ चुनाव को प्रभावित करने का गंभीर आरोप दोहराया. उन्होंने दावा किया कि वीसी से मिलकर प्रशांत किशोर ने छात्रसंघ चुनाव में खरीद-फरोख्त की है.
लालू यादव, सुशील मोदी, नीतीश कुमार राजनीति के ये वर्तमान सितारे जो आज बिहार की आकाशगंगा में चमक रहे हैं. कभी ये सभी छात्र राजनीति के टिमटिमाते तारे रहे हैं. ये सभी छात्र राजनीति की ही उपज हैं लेकिन तब से लेकर अब तक विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति कभी इस कदर मगध साम्राज्य की राजगद्दी नहीं बनी थी. नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं और चाणक्य ने अपने चंद्रगुप्त प्रशांत किशोर को 'पीयू' की इस राजगद्दी पर कब्जा करने का महती टास्क सौंप दिया.
रणनीतिकार से राजनीति के नये बने चंद्रगुप्त ने भी चुटिया बांधकर चाणक्या द्वारा मिले इस हुक्म का तामिल करने में खुद को झोंक दिया. उनपर आरोप भी लगे, उन्होंने पत्थर भी झेले. बंधु-बांधव, बंधन-गठबंधन सब कुछ दांव पर लगा दिया. लेकिन परिणाम सामने है और जदयू ने पहली बार छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया. 'पीयू' युद्ध के दौरान जदयू-भाजपा की तल्खी तो यही कहानी कह रही है कि साथ होकर भी द्वंद जारी है.
वहीं, पटना विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में जदयू के प्रत्याशी की जीत को लेकर विपक्ष तो सवाल उठा ही रहा है अब भाजपा भी चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठा रही है. भाजपा ने अध्यक्ष पद पर जदयू उम्मीदवार की जीत के पीछे खेल देख रही है. भाजपा नेताओं ने प्रशांत किशोर की भूमिका को लेकर सवाल उठाते हुए कहा है कि राजनीतिक दलों से जुडे लोगों को छात्र संघ चुनाव से दूर रहना चाहिए था.
भाजपा विधायक अरुण कुमार सिन्हा का कहना है कि प्रशांत किशोर की वीसी के साथ मुलाकात को लेकर जदयू प्रत्याशी की जीत संदेह के घेरे में है. इस जीत को लेकर शंका पैदा हो रही है. पीयू छात्र संघ चुनाव के पहले आचार संहिता लगने के बाद जदयू नेता प्रशांत किशोर ने पीयू के वीसी से कैंपस में मुलाकात की थी. इस मुलाकात को लेकर भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल से राज्यपाल से मिलकर इसकी शिकायत भी की थी. भाजपा ने छात्र संघ के चुनाव में सरकारी सिस्टम का बेजा इस्तेमाल किये जाने का आरोप लगा दिया था.
वैसे इस जीत के पीछे का खेल और राजनीति जो भी हो, जदयू के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कद बहुत बढ गया है. प्रशांत किशोर अपनी पहली चुनावी लडाई जीतकर ये साबित करने में सफल हुए हैं कि वो केवल दुसरे दलों के लिए चुनावी रणनीति ही नहीं बना सकते हैं बल्कि अपने दल की जीत सुनिश्चित करने में भी वो कामयाब हो सकते हैं. अब प्रशांत किशोर की बडी परीक्षा लोक सभा चुनाव में होना है. ये चुनाव तो लोक सभा का है लेकिन यहीं चनाव बिहार की सत्ता का सेमी फाइनल मैच भी है. इसी चुनाव की सफलता और विफलता पर जदयू से लेकर नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा.