न्यायाधिकरण पर फैसला पलटने के लिए संसद से बिना बहस के विधेयक पारित होना गंभीर मुद्दा:शीर्ष अदालत

By भाषा | Updated: August 16, 2021 21:55 IST2021-08-16T21:55:03+5:302021-08-16T21:55:03+5:30

Passing of bill without debate by Parliament to overturn the decision on the tribunal is a serious issue: Apex Court | न्यायाधिकरण पर फैसला पलटने के लिए संसद से बिना बहस के विधेयक पारित होना गंभीर मुद्दा:शीर्ष अदालत

न्यायाधिकरण पर फैसला पलटने के लिए संसद से बिना बहस के विधेयक पारित होना गंभीर मुद्दा:शीर्ष अदालत

उच्चतम न्यायालय ने पहले निरस्त कर दिये गये प्रावधानों के साथ न्यायाधिकरण संबंधी विधेयक को संसद में बिना किसी चर्चा के पारित किये जाने को सोमवार को ‘गंभीर मुद्दा’ करार दिया। अदालत ने केंद्र को अर्ध-न्यायिक पैनलों में नियुक्तियां करने के लिए दस दिन का समय दिया है क्योंकि इन निकायों में पीठासीन अधिकारियों तथा न्यायिक एवं तकनीकी सदस्यों की बड़ी कमी है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ बिना बहस के न्यायाधिकरण सुधार विधेयक, 2021 को पारित किये जाने के विरूद्ध मुखर थी और शीर्ष अदालत के फैसले को पलटने की जरूरत को सही ठहराने वाले कारण नहीं बताने जाने को लेकर भी उसकी नाराजगी थी। इस कानून का संबंध विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की सेवा एवं कार्यकाल संबंधत शर्तों से है। नये कानून में उन कुछ प्रावधानों को बहाल कर दिया गया है, जिन्हें न्यायमूर्ति एल एन राव की अगुवाई वाली पीठ ने हाल में अर्जियों पर सुनवाई करते हुए खारिज कर दिये थे। उनमें एक अर्जी मद्रास बार एसोसिएशन ने दायर की थी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ हमने दो दिन पहले देखा कि जिन्हें इस अदालत ने खारिज कर दिया था, वे कैसे लौट आये हैं। मैं नहीं समझता कि इस पर कोई बहस भी हुई। कोई कारण भी नहीं बताया गया। हमें संसद के कानून बनाने से कतई कोई दिक्कत नहीं है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘ संसद को कोई भी कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन हमें यह अवश्य ही पता चलना चाहिए कि अध्यादेश के खारिज हो जाने के बाद फिर इस विधेयक को लाने के लिए सरकार के सामने कौन से कारण थे? उसके सामने ऐसा कुछ नहीं था। मैंने अखबारों में पढ़ा और वित्त मंत्री की बात सुनी और वह बस एक शब्द था कि अदालत ने संवैधानिकता के आधार पर इस अध्यादेश को खारिज नहीं किया है।’’ यह टिप्पणी इस मायने से बड़ी अहम है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित 75 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य न्यायाधीश ने अपने संबोधन में यह कहते हुए यही मुद्दा उठाया था कि देश में कानून बनाने की प्रक्रिया बहुत बुरी स्थिति में है क्योंकि संसद में बहस नहीं होती है और इससे कानूनों पर स्पष्टता सामने नहीं आ पाती है तथा कई खामियां एवं अस्पष्टता रह जाती हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।

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