नई दिल्लीः संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से 23 दिसंबर तक होने की संभावना है। महामारी के मद्देनजर, संसद का शीतकालीन सत्र पिछले साल आयोजित नहीं किया गया था। लोकसभा और राज्यसभा दोनों एक साथ बैठेंगे। सदस्य सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन करेंगे।
शीतकालीन सत्र में परिसर और मुख्य संसद भवन में प्रवेश करने वालों को हर समय मास्क पहनना होगा और कोविड परीक्षण से गुजरना पड़ सकता है। शीतकालीन सत्र का महत्व इसलिए है क्योंकि यह राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले होगा, जिसे 2024 के आम चुनावों के लिए सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि सत्र के दौरान कोविड-19 के सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जायेगा। सत्र की लगभग 20 बैठक होने की संभावना है और यह क्रिसमस से पहले समाप्त हो जाएगा। महामारी के मद्देनजर, संसद का शीतकालीन सत्र पिछले साल आयोजित नहीं किया गया था और इसके बाद के सभी सत्रों-- बजट और मानसून सत्रों-- की अवधि में भी कोविड के कारण कटौती की गई थी।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों की बैठक एक ही समय पर होगी और सदस्य शारीरिक दूरी के मानदंडों का पालन करेंगे। पहले कुछ सत्रों में, दोनों सदनों की कार्यवाही अलग-अलग समय पर होती थी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसद परिसर के अंदर अधिक लोग मौजूद न हों।
सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में वित्तीय क्षेत्र से जुड़े दो महत्वपूर्ण विधेयक ला सकती है। इनकी घोषणा बजट में हुई थी। इनमें से एक विधेयक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को सुगमता से पूरा करने से संबंधित है। इसके अलावा सरकार राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली न्यास (एनपीएस) को पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) से अलग करने के लिए पीएफआरडीए, अधिनियम, 2013 में संशोधन का विधेयक भी ला सकती है। इससे पेंशन का दायरा व्यापक हो सकेगा।
सूत्रों ने बताया कि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में सरकार बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 में संशोधन संबंधी विधेयक ला सकती है। इसके अलावा बैंकों के निजीकरण के लिए बैंकिंग कंपनीज (अधिग्रहण और उपक्रमों का स्थानांतरण) अधिनियम, 1970 और बैंकिंग कंपनीज (अधिग्रहण एवं उपक्रमों का स्थानांतरण) अधिनियम, 1980 में संशोधन करने की जरूरत होगी। सूत्रों ने बताया कि इन कानूनों के जरिये दो चरणों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। अब बैंकों के निजीकरण के लिए इन कानूनों के प्रावधानों में बदलाव करने की जरूरत होगी।
(इनपुट एजेंसी)