यहाँ पूरी पढ़ें फ़ैज़ की नज्म 'हम देखेंगे' और ख़ुद फैसला करें कि ये 'हिन्दूविरोधी' है या नहीं
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 2, 2020 07:37 PM2020-01-02T19:37:39+5:302020-01-02T20:06:45+5:30
17 दिसंबर 2019 को IIT कानपुर के कैंपस में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई कार्रवाई को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए।
आईआईटी कानपुर के छात्रों ने मशहूर पाकिस्तानी शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज्म गाई, जिस पर विवाद खड़ा हो गया। इस मामले को कई लोग हिन्दू विरोधी भी बता रहे हैं। हालांकि कुछ लोग इसे सही भी ठहरा रहे हैं। छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में परिसर में 17 दिसंबर को यह नज्म गाई थी। इस नज्म को आप यहां पूरा पढ़ सकते हैं, जिस पर हंगामा बरपा हुआ है...
''हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र भी है नाज़िर भी
उठोगा अनल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो''
फैज अहमद फैज की नज्म पर क्यों विवाद हुआ?
17 दिसंबर 2019 को IIT कानपुर के कैंपस में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई कार्रवाई को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। संस्थान के कई प्रोफेसरों ने कुछ दिनों पहले यह शिकायत की थी कि 17 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘हम देखेंगे, लाजिम है हम भी देखेंगे…’