रानी जिसे चाहते हुए भी नेहरू नहीं करा पाए जेल से आजाद, मिलिए पांच चर्चित भारतीय रानियों ने

By भारती द्विवेदी | Published: December 14, 2017 04:41 PM2017-12-14T16:41:32+5:302017-12-15T13:27:42+5:30

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Padmavati Debate: 5 Real Queens who were Quite Popular | रानी जिसे चाहते हुए भी नेहरू नहीं करा पाए जेल से आजाद, मिलिए पांच चर्चित भारतीय रानियों ने

रानी जिसे चाहते हुए भी नेहरू नहीं करा पाए जेल से आजाद, मिलिए पांच चर्चित भारतीय रानियों ने

पिछले कुछ दिनों से हर जगह सिर्फ एक बात हो रही है। एक ही नाम सबकी जुबान पर है और वो नाम है रानी पद्मावती का। इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो बहुत कम ही ऐसी रानियां रहीं हैं जिन्हें दुनिया जानती है। क्योंकि बोलबाला राजाओं का होता था। उनकी लाइफस्टाइल, उनकी शूरवीर गाथा, उनके अफेयर, मतलब वजह कोई भी हो चर्चा राजाओं की ही होती थी। ऐसे में बहुत कम ही ऐसी रानियां हुई जिन्होंने मर्दों के वर्चस्व वाली दुनिया में अपना वजूद बनाए रखा। कुछ रानियों ने साबित किया कि सिर्फ राजाओं की ही नहीं बल्कि रानियों की भी दुनिया होती है। तो आज हम आपको ऐसी कुछ रानियों के बारे में बताएंगे जो बेहद लोकप्रिय रही हैं।

मीरा बाई

कृष्ण की दीवानी, जोगन, कृष्ण की प्रेमिका के रूप में मशहूर मीरा बाई के जीवन के बहुत अलग-अलग पहलू थे। मीराबाई का जन्म 15 वीं शताब्दी में मेड़ता के कुड़की गांव में हुआ था। मेड़ता राजस्थान के नागौर जिले में आता है। मीरा महाराज राजा रतन सिंह की एकमात्र संतान थीं। कहते हैं जब राजा रतन सिंह को कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने मीरां शाह की मजार पर जाकर मन्नत मांगी। माना जाता है कि रतन सिंह ने अपनी बेटी का नाम मीरां शाह के नाम पर ही मीरां बाई रखा जो बाद में मीरा हो गया। मीरा के बचपन में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया था। उनकी परवरिश उनके दादा राव दूदाजी ने की। राव दूदाजी वैष्णव थे। मीरा को धर्म विषयक संस्कार और ज्ञान दादा से ही मिला। करीब 18 साल की उम्र में मीरा की शादी मेवाड़ के राणा सांगा के बेटे कुंवर भोजराज से हो गई। राणा सांगा अपनी बहादुरी के लिए मशहूर थे। कहा जाता है कि विभिन्न लड़ाइयों में उनके शरीर पर 80 घाव लगे थे जिनके निशान उनकी बहादुरी की पहचान माने जाते थे।

कहा जाता है कि पति के निधन के बाद मीरा ने कृष्ण को अपना असली पति बताते हुए सती होने से इनकार कर दिया था। माना जाता है कि उनके ससुराल वाले उन्हें सती होने के लिए मजबूर कर रहे थे जिससे मीरा ने इनकार कर दिया। मीरा ने लिखा है, - "सती न होसया, भजन करसय।" मीरा ने किन परिस्थितियों में अपना राजसी जीवन छोड़ा ये बहुत स्पष्ट नहीं है लेकिन माना जाता है कि सामंती रूढ़िवादी परिवेश की जकड़न की इसमें बड़ी भूमिका रही थी। 15वीं सदी में किसी रानी का सबकुछ छोड़कर जोगन बन जाना क्रांतिकारी कदम था। मीरा अपने उस साहसिक फैसले के वजह से अमर हो गईं।

सीता देवी

काशीपुर के राजा के बेटी सीता देवी को कर्म के नाम से भी जाना जाता है। 13 साल की उम्न में वे कपूरथला के महाराज जगजीत सिंह के सबसे छोटे बेटे करमजीत सिंह की पत्नी बनीं। सीता देवी अपने स्टाइल स्टेटमेंट के लिए मशहूर रहीं। वे अपने दौर की सबसे खूबसूरत महिलाओं में गिनी जाती थीं। दुनिया के कई नामी मैगजीनों ने उनका फोटोशूट किया था। लोग उनके फैशन सेंस के कायल थे। साल 1939 में स्टाइल और सेंस ऑफ ड्रेस के लिए उन्हें दुनिया की पांच खूबसूरत महिलाओं में शामिल किया गया था। कहा जाता है कि उनके पहनने के लिए खास गहने डिजाइन किए जाते थे। फैशन के अलावा उन्हें कई यूरोपीय भाषाओं की जानकारी थी। फैशन के मामले में वे अपने दौर में ट्रेंडसेटर थीं। 

रानी गाइदिनल्यू

नगालैंड की "रानी लक्ष्मीबाई" के नाम से विख्यात रानी गाइदिनल्यू का जन्म 1925 में मणिपुर में हुआ। देश की आजादी के लिए उन्होंने नगालैंड में कई क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था। जिसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया था।अंग्रेज रानी को अपने लिए खतरा मनाते थे। गाइदिनल्यू 13 साल की उम्र में नगा नेता जादोनाग से जुड़ीं। जादोनाग माणिपुर में अंग्रेज के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। 1931 में जब जादोनाग को फांसी हुई उसके बाद से आंदोलन का सारा दारोमदार गाइदिनल्यू पर आ गया। उन्होंने बखूबी अपनी जिम्मेदारी उठाई। पंडित नेहरू को जब उनकी वीरता का पता चला तो उन्होंने रानी को "नगाओं की रानी" की संज्ञा दी थी। नगाओं द्वारा ईसाई धर्म अपनाने का भी उन्होंने घोर विरोध किया था। वह नगाओं के धार्मिक परंपराओं में यकीन रखती थीं। गिरफ्तारी के बाद रानी गाइदिनल्यू 14 साल तक जेल में रहीं। नेहरू ने उन्हें जेल से बाहर निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें नहीं छोड़ा। 1947 में जब देश आजाद हुआ तभी वो जेल से बाहर आ सकीं। स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग करने के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र और 1982 में राष्ट्रपति की ओर से पद्मभूषण देकर सम्मानित किया गया था।

राजमाता विजयाराजे सिंधिया

12 अक्टूबर 1919 में मध्य प्रदेश की राणा फैमिली में एक बच्ची ने जन्म लिया। जिसका नाम रखा गया लेखा देवीश्वरी देवी। इनके पिता ठाकुर महेंद्र सिंह जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर थे। वहीं इनकी मां विंदेश्वरी देवी नेपाल के राणा फैमिली से ताल्लुक रखती थीं। 21 फरवरी 1941 में उनकी शादी ग्वालियर के अंतिम महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुई थी। शादी के बाद उन्हें विजयाराजे सिंधिया नाम मिला। विजयाराजे सिंधिया राजनीति में भी गहरी रुचि रखती थीं। राजा जीवाजी और रानी विजयाराजे दोनों ही लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। ग्वालियर राज सबसे अधिक पैसे देकर भारतीय संघ में शामिल हुआ था। उस समय वो राशि 65 करोड़ थी। सक्रिय राजनीति में सिंधिया ने 1950 के दशक में कदम रखा। देश की दूसरी संसद में 1957 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर गुना से सांसद चुनी गईं। 1962 के आम चुनाव में वो मध्य प्रदेश के ग्वालियर से दोबारा कांग्रेस के टिकट पर सांसद बनीं। बाद में कांग्रेस से उनकी दूरी बढ़ती गयी।  साल 1967 में उन्होंने भारतीय जनसंघ के टिकट पर संसदीय और स्वतंत्रता पार्टी के टिकट पर विधायकी का चुनाव एक साथ ही लड़ा। दोनों ही जगह से वो जीतने में सफल रहीं। 

राजनीतिक रुझान की वजह से सिंधिया को इमरजेंसी में जेल में जाना पड़ा था। गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने अपनी किताब "राजपथ से लोकपथ पर" में दावा किया है कि "1980 में जब बीजेपी का गठन हुआ तो विजया राजे सिंधिया को नई पार्टी का अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया गया था।" मृदुला सिन्हा ने ये भी दावा किया है कि जब विजयाराजे ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का इरादा जताया तो इंदिरा डर गई थीं। सिन्हा के अनुसार इस वजह ही इंदिरा गांधी ने दक्षिण भारत के मेटक से भी चुनाव लड़ा था। हालांकि विजयाराजे ने रायबरेली से इंदिरा के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ा था। विजयाराजे अपनी विचारधारा के प्रति काफी समर्पित थीं। उनके बेटे माधव राव सिंधिया जब कांग्रेस में शामिल हो गये तो उन्होंने उनसे संबंध तोड़ लिया था।

महारानी गायत्री देवी

कूच बिहार (बंगाल) की राजकुमारी आएशा के नाम से फेमस राजमाता महारानी गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को लंदन में हुआ था। गायत्री की मां इंद्रा राजे, बरोड़ा की मराठा राजकुमारी थीं। वो अपनी खूबसूरती और मंहगे शौक के लिए मशहूर थीं। 60 के दशक में वोग मैगजीन ने उन्हें दुनिया की 10 सबसे सुंदर महिलाओं की लिस्ट में रखा था। गायत्री देवी मंहगी गाड़ियों के अलावा खेल और शिकार में दिलचस्पी रखती थी। वो एक बेहतरीन पोलो खिलाड़ी थीं। 2017 में जहां लोग दीपिका के घूमर गाने का विरोध डांस और कपड़ों की वजह से कर रहे हैं। वहीं 1940-50 के दशक में रानी अपनी शिफॉन साड़ियों और पैंट-शर्ट के लिए लोगों से तारीफ बटोरती थीं। भारत में पहली मर्सिडीज बेंज W126 और 500 SEL इंपोर्ट कराने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। गायत्री देवी पॉलिटिक्ली बहुत मजबूत महिला थीं। इमरजेंसी के समय टैक्स उल्लंघन के आरोप में गायत्री देवी को उनके बेटे के साथ गिरफ्तार किया गया था। करीब 5 महीने तक जेल में भी रहीं।

Web Title: Padmavati Debate: 5 Real Queens who were Quite Popular

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