SC के फैसले पर पटाखा विनिर्माताओं ने कहा-ग्रीन पटाखे जैसी कोई चीज नहीं, सोशल मीडिया पर बना 'मजाक'
By भाषा | Published: October 24, 2018 03:05 AM2018-10-24T03:05:23+5:302018-10-24T03:05:23+5:30
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास पटाखों के शोर या डेसिबल का स्तर तथा धुएं का स्तर पता करने का कोई उपकरण नहीं है। इसके अलावा उन्हें खुद अपने हिसाब से देखना होगा कि पटाखा अधिक प्रदूषण तो नहीं कर रहा या बहुत तेज शोर वाला तो नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बार दिवाली में प्रदूषण को कम करने के मकसद से सिर्फ ‘ग्रीन पटाखे’ या आतिशबाजी जलाने की अनुमति दी है। मंगलवार को न्यायालय के इस फैसले के बाद पटाखा विनिर्माताओं ने कहा कि ग्रीन आतिशबाजी जैसी कोई चीज नहीं हे, वहीं पर्यावरणविदों ने कहा कि प्रशासन को शीर्ष अदालत के फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए।
दूसरी ओर सोशल मीडिया पर इस फैसले के बाद ‘मजाक‘ शुरू हो गया। कई लोग ने सोशल मीडिया पर पटाखों को हरा रंग में पोस्ट किया।
पुलिस ने की उपकरण की मांग
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि उनके पास पटाखों के शोर या डेसिबल का स्तर तथा धुएं का स्तर पता करने का कोई उपकरण नहीं है। इसके अलावा उन्हें खुद अपने हिसाब से देखना होगा कि पटाखा अधिक प्रदूषण तो नहीं कर रहा या बहुत तेज शोर वाला तो नहीं है।
दिल्ली के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘इस बात की निगरानी करना काफी मुश्किल होगा कि दुकानदार दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं या नहीं क्योंकि दिवाली पर पटाखे थोक में बिकते हैं। बीट अधिकारियों को इस बारे में बताना होगा जिससे नियमों का उल्लंघन नहीं हो।
न्यायालय के फैसले के अनुसार यदि किसी इलाके में प्रतिबंधित आतिशबाजी बिकती है तो इसकी जिम्मेदारी क्षेत्र के थाना प्रभारी या एसएचओ की होगी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बिक्री पर पड़ेगा असर
उद्योग संगठनों का कहना है कि दिवाली से पहले उच्चतम न्यायालय द्वारा आतिशबाजी या पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल के लिए कड़े नियम लागू करने के फैसले से बिक्री पर असर पड़ने का अंदेशा है। पटाखा कारोबार ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में होता है और पटाखों की सालाना बिक्री करीब 20,000 करोड़ रुपये है।
वहीं पर्यावरणविदों तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब समाज को अधिक जिम्मेदारी वाले तरीके से त्योहार मनाने चाहिए।
पर्यावरण वैज्ञानिक डी साहा ने कहा कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन नियमों का अनुपालन कड़ाई से हो। साहा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) में भी रह चुके हैं।
उन्होंने कहा कि एक समाज के रूप में हम त्योहारों, शादी ब्याह या अन्य आयोजनों पर पटाखे फोड़ते हैं, लेकिन इसकी बड़ी कीमत होती हैं इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान होता है। ऐसे में हमें अधिक जिम्मेदारी वाला व्यवहार करना चाहिए।
शोर के जोर के संबंधी नियमों के बारे में साहा ने कहा कि पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन (पीसो) विस्फोटक पदार्थों के संदर्भ में जन सुरक्षा पहलू से संबंधित नियमनों पर काम करता है।
ग्रीन पटाखों जैसी कोई चीज नहीं
तमिलनाडु फायरवर्क्स एंड एमोरकेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने कहा कि वे पहले ही आतिशबाजी का विनिर्माण पीसो की अनुमति के बाद कर रहे हैं। एसोसिएशन के महासचिव के मरियप्पन ने कहा कि सिर्फ ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल से बात नहीं बनेगी क्योंकि ऐसी कोई चीज नहीं है। एसोसिएशन ने अदालत के फैसले पर पुनर्रीक्षा याचिका दायर करने का फैसला किया है।
मरियप्पन ने कहा कि तमिलनाडु के शिवकासी और आसपास आठ लाख लोग पटाखा उद्योग से जुड़े हैं और मौजूदा साल का उत्पादन पहले ही पूरा हो चुका है।
उन्होंने कहा कि हम न्यायालय को बताना चाहते हैं कि हम ग्रीन आतिशबाजी का उत्पादन नहीं कर सकते। हम विनिर्माण में रसायन का इस्तेमाल कम कर सकते हैं लेकिन इसमें अधिक समय लगेगा।
सिस्टम आफ द एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के गुफरान बेग ने कहा कि ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल और आतिशबाजी के लिए समय सीमित करना सही कदम हैं। उन्होंने कम प्रदूषण तथा कम भभक वाले पटाखों को हरित या ग्रीन आतिशबाजी कहा जा सकता है।
सोशल मीडिया पर ग्रीन पटाखों पर ऐसे बना मजाक
सोशल मीडिया पर हालांकि ग्रीन पटाखों को लेकर मजाक और मीम्स का सिलसिला चला। कुछ लोगों ने हरे रंग को कुछ राजनीतिक दलों से जोड़ा। वहीं बहुत से लोगों ने पटाखों को हरा कर तस्वीरें पोस्ट की हैं। वहीं कई अन्य से प्रसिद्ध हस्तियों तथा अभिनेताआों की हरे रंग के कपड़े पहने तस्वीरें डालीं।
*Supreme Court 2050*
— harsh v/s world+aliens (@SmilingLadka) October 23, 2018
"Murder is legal, but with Non-violent Guns"#GreenFirecrackers
Only green firecracker I have seen in my life. #GreenFirecrackerspic.twitter.com/YhxR2VDmz7
— Yogi Adityanath FC (@Yogifanclub_) October 23, 2018
#GreenFirecrackers
— The_HUNTERRR (@hunterrr_the) October 23, 2018
Delhihite can use this... pic.twitter.com/QbYn6vAjE3
#firecrackers#GreenFirecrackers
— Divyanshu (@Divyans59579371) October 23, 2018
I'm wondering on the outcry on the ban of crackers. Question yourself abt what legacy you want to pass on to your coming generation
A toxic envrnment or a clean pure envrnment in which we can breathe
No no 🚫 to crackers for your childrens
Just eat a lot of Radish and celebrate Diwali with #GreenFirecrackerspic.twitter.com/kpyt6ye6CP
— Vinay K. 🇮🇳🚩🚩 (@VinayHanspal) October 23, 2018
इस बीच, कनफेडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि पटाखों की सालाना बिक्री 15,000 से 20,000 करोड़ रुपये है। इसमें 5,000 करोड़ रुपये चीन से आयातित पटाखों का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले से पटाखों की बिक्री निश्चित रूप से प्रभावित होगी। हालांकि इसका ज्यादा कारोबार असंगठित क्षेत्र में होता है ऐसे में बिक्री में नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल है।
खंडेलवाल ने कहा कि स्थायी कारोबारियों के अलावा पटाखों की बिक्री अस्थायी लाइसेंस के जरिये की जाती है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सरकार से अपील करते हैं कि वह अस्थायी लाइसेंस तेजी से जारी करे, जिससे कारोबारी अपना स्टॉक निकाल सकें।’’
उन्होंने कहा कि चीन से आयातित पटाखे ज्यादा हानिकारक है।। त्योहारी सीजन में वायु की गुणवत्ता में सुधार के लिए शीर्ष न्यायालय का फैसला स्वागतयोग्य है।
रिटेलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया के कुमार राजगोपालन ने कहा कि पर्यावरण की दृष्टि से उच्चतम न्यायालय का फैसला सही है। इससे पटाखों की बिक्री पर अंकुश लगेगा और साथ बेहतर गुणवत्ता वाले पटाखों की बिक्री हो सकेगी।