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भारत-पाकिस्तान संबंध में सुधार को लेकर बहुत अधिक आशान्वित नहीं: अब्दुल बासित

By भाषा | Updated: August 13, 2021 20:09 IST

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नयी दिल्ली, 13 अगस्त भारत में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत अब्दुल बासित ने शुक्रवार को कहा कि वह वर्तमान में भारत-पाकिस्तान संबंधों में सुधार को लेकर आशान्वित नहीं हैं और दोनों देश तभी आगे बढ़ सकते हैं जब वे कठिन निर्णय लेने का साहस उत्पन्न कर सके।

बासित ने कहा, ‘‘वर्तमान परिस्थितियों में, मैं इस संबंध को लेकर बहुत आशान्वित नहीं हूं। कुछ प्रक्रियाएं लागू हो सकती हैं, लेकिन जब तक निर्णायक रूप से आगे बढ़ने की कोई इच्छा नहीं होगी, संबंधों में सुधार का कोई स्थान नहीं होगा।’’

विचार मंच ‘ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल (जीसीटीसी) द्वारा आयोजित 'भारत-पाकिस्तान: क्या आगे बढ़ने का कोई रास्ता है?' शीर्षक वाले एक वेबिनार के दौरान बासित ने कहा, ‘‘हमने अपनी शत्रुता का प्रभाव अफगानिस्तान में भी देखा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह कैसी विडंबना है कि दोहा, कतर में दो अलग-अलग बैठकों की व्यवस्था करने के लिए मजबूर होना पड़ा जिसमें भारत और पाकिस्तान मौजूद हों। ऐसी स्थिति बन गई है कि हमारे दोनों देश अफगानिस्तान से संबंधित ऐसी किसी बैठक में नहीं बैठ सकते हैं - जहां दोनों देश मौजूद हों।’’

भारत बृहस्पतिवार को दोहा में कतर द्वारा आयोजित एक क्षेत्रीय सम्मेलन में शामिल हुआ था, जिसमें अफगानिस्तान में तालिबान के लगातार हमले की पृष्ठभूमि में अफगानिस्तान में बढ़ती स्थिति को नियंत्रित करने के तरीकों पर चर्चा की गई।

बासित ने कहा कि भारत और अमेरिका अपनी रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दे रहे हैं, जाहिर तौर पर पाकिस्तान की चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह पाकिस्तान-भारत की गतिशीलता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।’’

उन्होंने मौजूदा स्थिति को ‘‘मनोबल गिराने वाला’’ बताते हुए कहा कि दक्षिण एशिया पाकिस्तान-भारत शत्रुता से प्रभावित होता रहेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘हम वैश्वीकरण से उत्पन्न अवसरों का लाभ नहीं उठा पाएंगे। यह इतना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतर-क्षेत्रीय व्यापार 5 प्रतिशत से कम है।’’

बासित ने कहा कि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अंत में चाहे जो भी दृष्टिकोण अपनाया जाए, पाकिस्तान-भारत संबंध तब तक पारस्परिक शत्रुता से प्रभावित रहेंगे जब तक कि ‘‘हमें अपनी मूल समस्याओं का समाधान नहीं मिल जाता और मुझे यहां जम्मू-कश्मीर मुद्दे का जिक्र करना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनके साथ सहमत नहीं हैं और वे अभी भी मानते हैं कि शायद आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है छोटे कदम उठाना और विश्वास-निर्माण उपायों, लोगों के बीच संपर्क, सांस्कृतिक संबंधों, आर्थिक संबंधों के माध्यम से अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास करना है।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमारा अनुभव हमें बताता है कि हम अतीत में इन सभी चीजों का आजमा चुके हैं और वास्तव में कुछ भी काम नहीं आया है। यहां तक ​​​​कि हमने 2005-2007 में कश्मीर से संबंधित विश्वास-निर्माण उपायों की कोशिश की। ’’

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में 5 अगस्त, 2019 को भारत द्वारा उठाए गए कदमों के बाद, पाकिस्तान में वास्तव में ‘‘भारत के साथ बातचीत करने’’ को लेकर कोई इच्छा नहीं बची है।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था।

बासित ने कहा, ‘‘हालांकि कुछ अनौपचारिक बातचीत हुई है और हमने देखा कि उसके परिणामस्वरूप, नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्षविराम के प्रति प्रतिबद्धता जतायी गई लेकिन ... हम फिर से संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं।’’

भारत और पाकिस्तान के सैन्य अभियानों के महानिदेशकों के बीच एक हॉटलाइन पर बातचीत के बाद, 25 फरवरी, 2021 को एक संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा एवं अन्य सभी सेक्टरों में सभी समझौतों, समझ और संघर्षविराम के सख्त अनुपालन पर सहमति जतायी और यह 24-25 फरवरी की मध्यरात्रि, 2021 से अमल में आया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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