इच्छामृत्यु के लिए नोएडा का शख्स जाना चाहता है यूरोप! बेंगलुरु की महिला ने रोकने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में दी याचिका

By विनीत कुमार | Published: August 12, 2022 09:02 AM2022-08-12T09:02:44+5:302022-08-12T09:04:21+5:30

बेंगलुरु की एक महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका देकर नोएडा के अपने एक मित्र को यूरोप यात्रा पर जाने से रोकने की गुहार लगाई है। महिला का कहना है कि शख्स इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाने की योजना बना रहा है।

Noida man wants to go to Europe for euthanasia, Bengaluru woman petition in Delhi High Court to stop | इच्छामृत्यु के लिए नोएडा का शख्स जाना चाहता है यूरोप! बेंगलुरु की महिला ने रोकने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में दी याचिका

इच्छामृत्यु के लिए नोएडा का शख्स जाना चाहता है यूरोप! बेंगलुरु की महिला ने रोकने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में दी याचिका

Highlightsबेंगलुरु की महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट का खटखटाया दरवाजा, शख्स को यूरोप जाने के रोकने की गुहार।महिला के अनुसार शख्स इच्छामृत्यु के लिए यूरोप जाना चाहता है, 8 साल से एक बीमारी से पीड़ित है शख्स।महिला के अनुसार इसी साल जून में शख्स इच्छामृत्यु के लिए झूठी जानकारी देकर स्विट्जरलैंड की यात्रा भी कर चुका है।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट के पास एक बेहद अलग केस आया है। दरअसल, बेंगलुरु की 49 साल की एक महिला नोएडा के रहने वाले 48 साल के शख्स को यूरोप की यात्रा करने से रोकना चाहती है। इसके लिए उसने कोर्ट में याचिका दायर की है। महिला के मुताबिक उसके पुरुष मित्र का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा है और वह कथित तौर पर इच्छामृत्यु (Euthanasia) के लिए यूरोप जाना चाहता है। भारत में ऐसे शख्स के लिए इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं है जो बेहद गंभीर स्थिति में नहीं हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मित्र को यूरोप जाने से रोकने संबंधी याचिका कोर्ट में बुधवार को दायर की गई। शख्स 2014 से क्रोनिक फटिग सिंड्रोम (Chronic Fatigue Syndrome) से जूझ रहा है और चिकित्सीय सहायता से इच्छामृत्यु के लिए स्विट्जरलैंड जाने की योजना बना रहा है। खुद को पुरुष का करीबी दोस्त बताने वाली महिला ने अनुरोध किया है कि अगर उसकी यात्रा को रोकने की याचिका को अनुमति नहीं दी गई तो शख्स के माता-पिता, परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों को 'अपूरणीय क्षति' और 'कठिनाई' का सामना करना पड़ेगा।

8 साल से लगातार खराब होती जा रही है शख्स की तबीयत

याचिका के अनुसार, नोएडा का रहने वाला शख्स एम्स में फेकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांटेशन नाम का उपचार ले रहा था लेकिन कोरोना महामारी के दौरान 'डोनर नहीं मिलने की समस्या' की वजह से इलाज को जारी नहीं रख सका। याचिका में कहा गया है कि उसके लक्षण 2014 में शुरू हुए और पिछले आठ वर्षों में उसकी हालत बिगड़ती गई, जिससे वह पूरी तरह से बिस्तर पर आ गया है और घर के अंदर कुछ कदम ही चलने में सक्षम है।
याचिका के अनुसार, शख्स अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है जिनकी उम्र सत्तर साल से अधिक है। उसकी एक बहन भी है।

झूठी जानकारी देकर स्विट्डरलैंड जा चुका है शख्स

याचिका के अनुसार, रोगी ने पहले झूठी जानकारी देकर शेंगेन वीजा (Schengen visa) प्राप्त किया था जो 26 यूरोपीय देशों में बिना किसी प्रतिबंध के यात्रा की अनुमति देता है। याचिका के मुताबिक शख्स ने ये कहकर वीजा लिया था कि वह बेल्जियम में एक क्लिनिक में इलाज के लिए जा रहा है। याचिका में दावा किया गया है कि असल में उसने जून में बेल्जियम होते हुए स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख की यात्रा की। ऐसा उसने इच्छामृत्यु के लिए मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन (साइकोलॉजी इवेल्यूएशन) के पहले दौर में उपस्थित होने के लिए किया।

याचिका के अनुसार, व्यक्ति ने ज्यूरिख स्थित संगठन डिग्निटास (Dignitas) के माध्यम से इच्छामृत्यु से गुजरने का फैसला किया है, जो विदेशी नागरिकों को इस मामले में सहायता प्रदान करता है। याचिका में दावा किया गया है डिग्निटास ने शख्स के इच्छामृत्यु के आवेदन को स्वीकार कर लिया था। पहले मूल्यांकन को मंजूरी दी गई थी और (वह) अब अगस्त 2022 के अंत तक अंतिम फैसले की प्रतीक्षा कर रहा हैं।

याचिका के साथ जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड से पता चलता है कि मरीज को मई में एम्स के एक डॉक्टर की ओर से एक पत्र जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि वह चिकित्सा परामर्श और भविष्य के इलाज के लिए बेल्जियम की यात्रा कर रहा है क्योंकि उसकी स्थिति अनुसंधान के प्रारंभिक चरण में है और भारत में इसके बारे में बहुत अच्छी तरह से जानकारी उपलब्ध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छामृत्यु पर सुनाया था ऐतिहासिक फैसला

साल 2018 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए निष्क्रिय रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए इच्छामृत्यु को कानूनी बना दिया था। इसे पैसिव यूथेंसिया कहा जाता है। इसके तहत वे मरीज जो कभी ना ठीक हो पाने बीमारी और असाध्य कोमा में हैं, उनके जीवन को खत्म करने की अनुमति उनके परिवार की रजामंदी से दी जा सकती है। इसमें रोगी के दवाई, डायलिसिस, वेंटिलेशन, लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद करने की अनुमति है।

ऐसे मामलों में रोगी स्वयं मृत्यु को प्राप्त होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ऐक्टिव इच्छामृत्यु की बात नहीं कही है। इसनें किसी शख्स को इंजेक्शन या किसी अन्य माध्यम से मृत्यु दी जाती है। भारत में इसकी इजाजत नहीं है।इससे पहले 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा शानबाग के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को रोकने के लिए लेखक और कार्यकर्ता पिंकी विरानी की याचिका को ठुकरा दिया था।

अरुणा एक नर्स थी जिनकी मृत्यु 2015 में हुई। इससे पहले एक यौन उत्पीड़न की घटना के बाद लगभग 42 साल वे कोमा में रहीं। वहीं, स्विट्जरलैंड में 2011 में मतदाताओं ने विदेशियों के लिए इच्छामृत्यु पर प्रतिबंध लगाने की योजना को खारिज कर दिया था। सिंगापुर सहित कई देश हाल के वर्षों में 'सुसाइड टूरिज्म' को बढ़ावा देने के लिए आलोचनाओं का भी शिकार होते रहे हैं।

Web Title: Noida man wants to go to Europe for euthanasia, Bengaluru woman petition in Delhi High Court to stop

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