Nirbhaya Case:दिल्ली कोर्ट में जज ने याचिका खारिज करते समय कहा- 'अगर कानून जीने की इजाजत देता है तो फांसी देना पाप'

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 8, 2020 12:45 PM2020-02-08T12:45:55+5:302020-02-08T12:56:59+5:30

निर्भया मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के आदेश के खिलाफ केंद्र और दिल्ली सरकार की अपील पर दोषियों को नोटिस जारी करने का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का आग्रह स्वीकार नहीं किया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि चारों दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाया जाए, न कि अलग-अलग।

Nirbhaya Case: In Delhi court, while rejecting the petition, the judge said- 'The law allows to live, therefore hanging is a sin' | Nirbhaya Case:दिल्ली कोर्ट में जज ने याचिका खारिज करते समय कहा- 'अगर कानून जीने की इजाजत देता है तो फांसी देना पाप'

निर्भया मामले में कोर्ट के जज का बड़ा बयान

Highlightsअतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा, ‘‘जब दोषियों को कानून जीवित रहने की इजाजत देता है, तब उन्हें फांसी पर चढ़ाना पाप है।न्यायाधीश ने कहा , ‘‘मैं दोषियों के वकील की इस दलील से सहमत हूं कि महज संदेह और अटकलबाजी के आधार पर मृत्यु वांरट को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है।

केंद्र और दिल्ली सरकार को शुक्रवार को निर्भया मामले में उच्चतम न्यायालय तथा दिल्ली के पटियाला हाईकोर्ट में झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने जहां चारों दोषियों को उनकी फांसी पर स्थगन के खिलाफ नोटिस जारी करने का आग्रह नामंजूर कर दिया, वहीं पटियाला हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ नया मृत्यु वारंट जारी करने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही पटियाला कोर्ट ने कहा कि 'कानून जीने की इजाजत देता इसलिए फांसी देना पाप' है। 

निर्भया मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के पांच फरवरी के आदेश के खिलाफ केंद्र और दिल्ली सरकार की अपील पर दोषियों को नोटिस जारी करने का सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का आग्रह स्वीकार नहीं किया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि चारों दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाया जाए, न कि अलग-अलग।

शीर्ष अदालत में कार्यवाही के चंद घंटे बाद मामला पटियाला हाउस जिला अदालत पहुंचा जिसने दोषियों के खिलाफ नया मृत्यु वारंट जारी करने का दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल के अधिकारियों का आग्रह अस्वीकार कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा, ‘‘जब दोषियों को कानून जीवित रहने की इजाजत देता है, तब उन्हें फांसी पर चढ़ाना पाप है। उच्च न्यायालय ने पांच फरवरी को न्याय के हित में दोषियों को इस आदेश के एक सप्ताह के अंदर अपने कानूनी विकल्पों का उपयोग करने की इजाजत दी थी।’’

न्यायाधीश ने कहा , ‘‘मैं दोषियों के वकील की इस दलील से सहमत हूं कि महज संदेह और अटकलबाजी के आधार पर मृत्यु वांरट को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। इस तरह, यह याचिका खारिज की जाती है। जब भी जरूरी हो तो सरकार उपयुक्त अर्जी देने के लिए स्वतंत्र है।’’

न्यायमूर्ति आर भानुमति के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मेहता से कहा, ‘‘उच्च न्यायालय ने उन्हें (दोषियों) सभी विकल्प आजमाने के लिए एक सप्ताह का समय दिया है। यह वैसे ही आपके पक्ष में है।’’

पीठ ने यह भी कहा कि इस चरण में दोषियों को नोटिस जारी करने से मामले में और विलंब होगा। शीर्ष अदालत की पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना भी शामिल हैं।

मेहता ने यह भी दलील दी कि दोषी विलंब करने की तरकीब अपना रहे हैं और उनमें से एक पवन गुप्ता ने अब तक न तो शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर की है और न ही राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की है।

पीठ ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई 11 फरवरी तक के लिए टाल दी कि ‘‘किसी को भी विकल्प आजमाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।’’ इसने मेहता से यह भी कहा कि सुनवाई की अगली तारीख पर वह इस पहलू पर विचार कर सकती है कि क्या इन दोषियों को नोटिस जारी किए जाने की आवश्यकता है।

मेहता ने पीठ से कहा कि इस मामले में दोषियों की विलंब की तरकीबों के जरिए ‘‘देश के धैर्य की अब काफी परीक्षा ली जा चुकी है’’ और शीर्ष अदालत को तय करना होगा कि इस तरह के दोषियों को अलग-अलग फांसी दी जा सकती है या नहीं।

Web Title: Nirbhaya Case: In Delhi court, while rejecting the petition, the judge said- 'The law allows to live, therefore hanging is a sin'

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