एनजीटी के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा

By भाषा | Published: September 2, 2021 08:07 PM2021-09-02T20:07:53+5:302021-09-02T20:07:53+5:30

NGT has no power to take suo motu cognizance of cases: Center to Supreme Court | एनजीटी के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा

एनजीटी के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा

केंद्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास मामले का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है, क्योंकि यह कानून में नहीं है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ इस सवाल पर विचार कर रही है कि क्या हरित अधिकरण के पास किसी मामले में स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है या नहीं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पीठ से कहा कि प्रक्रियात्मक पहलू उस ‘‘विशिष्ट’’ अधिकरण की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को बांध नहीं सकते, जिसका गठन पर्यावरणीय मामलों से निपटने के लिए किया गया है। मंत्रालय की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत से कहा, ‘‘हमारा अभिवेदन यह है कि स्वत: संज्ञान की शक्ति उसके पास नहीं है। हालांकि, यह कहना कि किसी पत्र , किसी अर्जी इत्यादि पर सुनवाई नहीं हो सकती, इस बात को बहुत अधिक खींचना होगा।’’ एएसजी ने कहा, ‘‘दरअसल, किसी ने यह दलील नहीं दी है कि अधिकरण के पास अधिकार नहीं है। यह पर्यावरण संबंधी मामलों से निपटने वाला विशेष अधिकरण हैं। अक्सर पर्यावरण की कोई परवाह नहीं करता।’’ पीठ ने भाटी से सवाल किया कि यदि अधिकरण को पर्यावरण संबंधी किसी मामले में कोई पत्र या शपथपत्र मिलता है, तो क्या वह प्रक्रिया शुरू करने के लिए बाध्य नहीं होगा और संबंधित पक्ष को अन्य औपचारिकताओं का पालन करने की आवश्यकता होगी। एएसजी ने कहा कि अधिकरण इस प्रकार के पत्र या संवाद का संज्ञान लेने के लिए एक तरह से बाध्य होगा और यह उसके अधिकार क्षेत्र में होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमने एक पेज का हलफनामा दायर किया है और हमने केवल यह कहा है कि कानून में स्वत: संज्ञान का अधिकार नहीं है और इसलिए अधिकरण स्वत: संज्ञान के अधिकार का उपयोग नहीं कर सकता।’’ भाटी ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण कानून, 2010 की धारा 19 (एक) का उल्लेख किया, जो कहता है कि अधिकरण सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत बाध्य नहीं होगा, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा यह भी अभिवेदन है कि प्रक्रियात्मक पहलू ऐसे पहलू हैं जिन्हें दुरुस्त किया जा सकता है और ये पहलू उन शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को बांध नहीं सकते जो अन्यथा अधिकरण के पास स्पष्ट रूप से उपलब्ध हैं।’’ उन्होंने कहा कि अधिकरण को एक बार पत्र या संचार प्राप्त हो जाने के बाद, इसका संज्ञान लेना हरित पैनल के अधिकार में है।इससे पहले, न्यायालय ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण और वन कानूनों का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है बल्कि यह आम जनता को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी इस मुद्दे की जांच करते हुए की कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (एनजीटी), 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई है।शीर्ष अदालत ने पहले इस बात पर गौर किया था कि मामले से निपटने के दौरान एनजीटी अधिनियम के प्रावधानों के पीछे के उद्देश्य और मंशा को ध्यान में रखा जाना चाहिए। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से संबंधित मुद्दा उठाया गया था।

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