नरेश से शादी, नीरजा भनोट के लिए किसी बुरे सपने से भी बुरी थी. वैवाहिक जीवन के बेहद छोटे से समय को बहुत ही तकलीफ में गुजारा इस बहादुर बेटी ने.
नरेश को नीरजा का मॉडलिंग करना बिलकुल पसंद नहीं था, उसके अनुसार मॉडलिंग करने वाली लड़कियां चरित्रहीन होती हैं और यही नहीं उसको हर एक चीज़ के लिए नीचा दिखाया गया जो उसका हक़ था.
नरेश खाने के बिल से लेकर फ़ोन का बिल, सब भेजता था नीरजा के पिता श्री हरीश भनोट को, हर बार की चिठ्ठी में नीरजा के पिता की बेइज़्ज़ती और नीरजा के चरित्र पर सवाल और पैसे की डिमांड बस यही था उसका जीवन।
बहुत ही जल्द ये मानसिक यातना, शारीरिक यातना में भी बदल गयी और नरेश ने नीरजा को मारना–पीटना भी शुरू कर दिया। अंतिम बार जब नीरजा अपने माँ के घर आयी तो नरेश ने ही कहा था कि अगर वापस आना है तो खुद इंतज़ाम करें, भेजे गए सारे बिल का हिसाब करवा कर लाये और अपने रहने, खाने – पीने, फ़ोन बिल्स का पैसा भी लेकर आये.
यही एक क्षण था जब नीरजा ने कभी वापस ना लौटने का फैसला लिया और इसमें पूरे परिवार ने उसका साथ दिया।
पूरे देश को नरेश का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि उसकी वज़ह से ही भारत को अब तक की सबसे बहादुर बेटी मिली क्यूंकि अगर नीरजा वापस चली गयी होती तो शायद वो आज ज़िंदा ज़रूर होती लेकिन मर चुकी होती। ना तो हमें असली नीरजा मिलती, ना ही पूरे विश्व को इस देश की बेटियों पर गर्व होता।
एक गुमनाम ज़िंदगी से ज्यादा अच्छा एक यादगार मौत होती है, नीरजा हमारे दिलों में ज़िंदा है तो सिर्फ इस एक इंसान की वज़ह से जिससे नफरत तो है लेकिन हम उसके शुक्रगुज़ार भी हैं!