प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कवि भी हैं। पिछले साल उन्होंने एक ट्वीट करके अपने फॉलोवर्स को अपने हिन्दी कविता संग्रह और गुजराती कविता संग्रह के बारे में जानकारी दी थी। 17 सितंबर 1950 को गुजरात में जन्मे नरेंद्र मोदी मई 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने। साल 2015 में "साक्षी भाव" नाम से उनका हिन्दी कविता संग्रह आया।
कविता-संग्रह की भूमिका में पीएम मोदी ने स्वीकार किया है कि उन्होंने ये कविताएँ आत्म-सुख के लिए लिखी थीं। इस संग्रह में कुल 16 कविताएं हैं। सभी कविताएँ "जगज्जननी माँ के श्रीचरणों में" समर्पित हैं। कविता संग्रह की भूमिका गुजराती साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक सुरेश दलाल ने लिखी है। अपनी भूमिका में सुरेश दलाल ने नरेंद्र मोदी को "गुजराती भाषा विशेषकर कविता प्रेमी" के रूप में याद किया है।
इस संग्रह में पीएम मोदी की 1986 से लेकर 1989 के बीच लिखी गई कविताएं हैं। हालाँकि कुछ कविताओं पर लिखने की तिथि का उल्लेख नहीं है।
आउटलुक पत्रिका के संपादक विनोद मेहता ने अपने एक संस्मरण में अटल बिहारी वाजपेयी के कविताओं से जुड़ा एक रोचक संस्मरण साझा किया है। विनोद मेहता ने अटल बिहारी वाजपेयी का कविता-संग्रह मशहूर हिन्दी लेखक निर्मल वर्मा के पास समीक्षा के लिए भिजवाया। लम्बे समय तक जब निर्मल वर्मा ने समीक्षा करके नहीं दी तो मेहता ने उन्हें इसकी याद दिलायी। इसपर वर्मा ने उन्हें टका सा जवाब देते हुए कह दिया, "यह कविताएँ समीक्षा योग्य नहीं हैं। ये कविताएँ एक नेकनीयत वाले नौसिखिए का प्रयास हैं। अगर मैं समीक्षा करूँगा तो इसकी जमकर खिंचाई करूँगा, जो मैं करना नहीं चाहता।"
प्रधानमंत्री मोदी की कविताओं की समीक्षा का काम हम साहित्य के मर्मज्ञों पर छोड़ रहे हैं। पीएम मोदी ने अपने कविता-संग्रह की भूमिका भी लिखी है। इस कविता-संग्रह की उनकी लिखी भूमिका का एक समीचीन अंश और पाँच चुनिंदा कविताओं के अंश नीचे पढ़ सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखी गयी भूमिका का अंश-
"ये कविताएँ लिखी तो स्वांतः सुखाय थीं। पर बदलते वक्त के साथ अब ये स्वांतः सुखाय नहीं रह गईं। समूची पुस्तक एक भक्त की अपनी आराध्य माँ के समक्ष आर्द्र पुकार है। यह पुकार हृदय की किसी रहस्यमयी गुफा से निकलती है और मानस-पटल पर चक्रवर्ती मेघ की तरह छा जाती है। लेखक इस तूफान का वाहक, भोक्ता और दर्शक है। हृदय की सरिता से निसृत हुईं ये पंक्तियाँ संवेदनाओं के निए द्वार खोलती हैं। यही इनके होने की सार्थकता है।"
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नीचे पढ़ें नरेंद्र मोदी की 5 अलग-अलग कविताओं के अंश
1. एक ओर तो मैं भावना औरउसकी अभिव्यक्ति के व्यसन में फँसा हूँजबकि मेरे चारों ओर उत्साह औरउमंग के नाद गूँज रहे हैंजगह-जगह से स्वयंसेवक शिविर में आ रहे हैं।माँ...व्यवस्था के लिए पूरी शक्ति से प्रयास किया है।उन सबके स्वागत के लिए छोटे-बड़े सैकड़ों स्वयंसेवकों ने अपने पसीने की चादर बिछाई हैकितनी अधिक उमंग थी-काम करनेवाले सबके व्यवहार में!हाँ, आनेवाले स्वयंसेवक भी उतने हीउमंग-उत्साह से भरे आए हैं।मातृभूमि के कल्याण के लिएस्वयं को अधिक तेजस्वी बनाने के लिएआत्मविश्वास में वृद्धि करने के लिएहृदय में प्रेरणा का पीयूष भरने के लिएवे थिरक रहे हैंउनकी आँखों में से समाज-शक्ति, राष्ट्र-भक्ति,संघ-भक्ति की भावना की धार झर रही है।मेरे अंतर्मन को यह सब कितनी सहजता से स्पर्ष कर जाता है।
(06-12-1986)
2. माँ, तेरी कैसी अजब कृपा हैदेख न, चार दिन हो गएभोजन और नींद दोनों ही उपलब्ध नहींकिसी परिस्थिति के कारणफिर भी थकावट जैसा कुछ लगता नहीं है।अरे, कल की रात तोनिपट नींद के बिना ही बिताईफिर भी प्रसन्नता का अनुभव करता हूँसच में, यह सब तेरी कृपा के बिना संभव है क्या?
3. कविता सृष्टि की वृष्टिसारे गुजरात के समान अकाल में डूबी है।हाँ, कभी-कभी उत्पादन हो जाता है,परंतु सर्जन तो है ही नहीं।
उत्पादन का तो ऐसा है कि उसमें जरूरी कच्चा माल बरोऔर ठूँस-ठूँसकर भरो...फिर यंत्र का बटन दबाओपेन-पेंसिल जैसे यंत्र को जोड़ो।बस फिर क्या?अक्षरों के समूह कभी शब्द बन कभी शब्द समूह के रूप मेंक्षमता के अनुसार लंबाई के साथ उत्पादित होते रहते हैं।भरा हुआ कच्चा माल समाप्त हो जाए तोउत्पादन बंद।उत्पादन तो ऐसा है कि उत्पादित होता रहे।हाँ, लोग उसे सृजन कहकर स्वीकार कर लेते हैं, यह बात अलग हैकारण-वैसे ही पाउडर के दूध सेबालकों को पालने की आदत सेहमें सृजन की समझ है क्या?
(22-12-86)
4. कितनी असह्य वेदना!शायद अंतर्मन को हिला देनेवाली अवस्था!लोग कहते हैं- प्रत्येक सृजन के मूल मेंसर्जक के वेदना अस्तित्व रखती है।मेरी इतनी-इतनी वेदना के बाद भीसृजन का नामोनिशान तक नहीं?मुझे सदा ही लगता रहता हैसृजन का कारण वेदना की बजाय करुणा ही होती होगी।वेदना तो क्रिया होने के बाद की प्रतिक्रिया का परिणाम है।
(28-12-86)
5. और फिर भी तत्वज्ञान का कितना सुंदर मुखौटा है।फिर अंतिम अपेक्षा तो है ही-वह भी ब्यूटीफूल शब्द से सम्मानित करउसका मूल्य बढ़ाने का प्रयास भी होता है।यही तो जीवन के ढंग को अनोखा कर देता है।अथवा 'स्व' का विचार करनेवाले के लिए,यह वाक्य समर्पित लगता है।I do my thingand you doYour thingI am not inthis worldto live upto yourexpectationandyou arenot in thisworld to liveup to mine. You are youand I am Iand if by chance we find each otherit is beautiful.
(इस कविता के अंत में रचनाकाल नहीं दिया गया है।)