अटल जी सचमुच कितने बड़े कवि थे? जानिए कवि वाजपेयी के बारे में निर्मल वर्मा और नागार्जुन के विचार

By रंगनाथ | Published: August 23, 2018 07:28 AM2018-08-23T07:28:56+5:302018-08-23T07:28:56+5:30

अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को नई दिल्ली में निधन हो गया। तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का 24 दिसम्बर 1925 को ग्वालियर में जन्म हुआ था।

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atal bihari vajpayee

करीब बीस साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था, "राजनीति के रेगिस्तान में मेरी कविता की धारा सूख गयी है। कभी-कभी मैं फिर से कविता लिखने की कोशिश करता हूँ लेकिन सचाई ये है कि मेरा कवि मेरा साथ छोड़ गया है, और  मैं कोरा राजनीतिक नेता बनकर रह गया हूँ।" 

24 दिसम्बर 1925 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी का जब 16 अगस्त 2018 को दिल्ली में निधन हुआ तो मीडिया कवरेज में उनके राजनीतिक जीवन के साथ ही उनकी कविताओं को भी काफी याद किया गया।

अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकार रजत शर्मा को दिये इंटरव्यू में कहा था कि वो बचपन से कविता लिखते थे। वो पत्रकार बनना चाहते थे लेकिन संयोगवश ही राजनीति में आ गये थे।

वाजपेयी के निधन पर सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने उनके कवि व्यक्तित्व पर सवाल उठाया। किसी कवि का साहित्यिक मेयार क्या इसे सबसे बेहतर साहित्यकार ही बता सकते हैं।

आइए जानते हैं अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं के बारे में हिन्दी के दो प्रमुख लेखकों की क्या राय थी।

कवि अटल बिहारी वाजपेयी पर निर्मल वर्मा के विचार

आउटलुक पत्रिका के संपादक रहे विनोद मेहता (1942-2015) ने अपनी किताब ""लखनऊ ब्वॉयज" में अटल बिहारी वाजपेयी के कवि व्यक्तित्व से जुड़ा एक संस्मरण शेयर किया है। 

विनोद मेहता के अनुसार जब वो पॉयनियर के सम्पादक (1990-1995) थे तो अटल बिहारी वाजपेयी का एक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था। 

मेहता के अनुसार उन्होंने उस कविता संग्रह को प्रसिद्ध लेखक निर्मल वर्मा को समीक्षा करने के लिए दिया। वर्मा के पास काफी वक्त तक किताब पड़ी रही लेकिन उन्होंने समीक्षा नहीं की।

मेहता के अनुसार निर्मल वर्मा ने बाद में उन्हें फ़ोन करके अटल बिहारी वाजपेय की किताब की समीक्षा करने में असमर्थता जाहिर कर दी।

मेहता के अनुसार निर्मल वर्मा ने उनसे कहा, "यह कविताएँ समीक्षा योग्य नहीं हैं। ये कविताएँ एक नेकनीयत वाले नौसिखुए का प्रयास हैं। अगर मैं समीक्षा करूँगा तो इसकी जमकर खिंचाई करूँगा, जो मैं करना नहीं चाहता।"

मेहता के अनुसार उन्होंने हिन्दी के एक-दो और बड़े हिन्दी लेखकों से अटल बिहारी वाजपेयी के कविता संग्रह की समीक्षा करने के लिए कहा लेकिन उन लोगों ने कोई न कोई बहाना बनाकर इससे इनकार कर दिया।

विनोद मेहता ने बताया है कि आखिरकार उन्होंने अपने अख़बार में काम करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता से वाजपेयी के कविता-संग्रह की समीक्षा करवायी।

मेहता के अनुसार बाद में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कंचन गुप्ता प्रधानमंत्री कार्यालय में अपने भाषण-लेखक के तौर पर नियुक्त किया था।

कवि अटल बिहारी वाजपेयी पर नागार्जुन के विचार

अटल बिहारी वाजपेयी की कविता से जुड़ा एक संस्मरण लेखक और आलोचक प्रभात रंजन ने भी साझा किया है। यह किस्सा भी अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के पहले का है।

प्रभात रंजन ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, "किस्सा तब का है जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं थे। तब उनकी कविताओं की किताब प्रवीण प्रकाशन, महरौली से छप रही थी और हिंदी के एक वरिष्ठ लेखक थे, जो उन दिनों प्रकाशनों में प्रूफ देखा करते थे और इस विद्या में उनको सबसे माहिर माना जाता था इसलिए अटल जी ने उनको ही अपनी किताब के प्रूफ पढ़ने का काम दिया था। वे लेखक सादतपुर में रहते थे और बाबा भी वहीं रहते थे। उनके एक बेटे का वहां घर था. प्रूफ पढ़ने वाले लेखक महोदय पड़ोस में ही रहते थे। एक दिन दोपहर में बाबा टहलते हुए अचानक उनके घर आ गए। जाहिर है उनको अचानक इस तरह से आये देखकर लेखक महोदय चौंक गए और उन्होंने पाण्डुलिपि जल्दी से तकिये के नीचे छिपा दी। यह बताने की जरूरत नहीं है कि तब हिंदी लेखकों की वैचारिक प्रतिबद्धता को इतना नाप तौल कर देखा जाता था कि अगर कोई लेखक थोड़ी देर तक कमल के फूल को देख भी लेता था तो उसको दक्षिणपंथी घोषित कर दिया जाता था। वह लेखक महोदय तो दक्षिणपंथी राजनीति के पुरोधा अटल जी की कविताओं की किताब के प्रूफ पढ़ रहे थे।"

प्रभात रंजन के अनुसार नागार्जुन को इस बात की भनक लग गयी कि उक्त लेखक उनसे कुछ छिपा रहे हैं। प्रभात रंजन लिखते हैं, "बाबा भी तपे-तपाये लेखक थे। भांप गए कि कुछ तो है। उन्होंने लेखक महोदय से पूछा कि तकिये के नीचे क्या छिपाया? लेखक महोदय ने दो एक बार टालने की कोशिश की जब बाबा नहीं माने तो उन्होंने कहा कि पेट के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ता है। प्रूफ ही तो पढ़ रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ। लीजिये देख लीजिये- अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं की पाण्डुलिपि है। जवाब में बाबा ने बहुत सहजता से कहा, इसमें छिपाने की क्या बात थी। अटल बिहारी भी अपने ढंग का अच्छा कवि है, जो मन में आता है बिना बनावट के लिख देता है।"

प्रभात रंजन के अनुसार इस पूरी वाकये की खबर अटल बिहारी वाजपेयी को भी मिल गयी। प्रभात रंजन लिखते हैं, " लेखक महोदय प्रूफ पढ़ने के बाद अटल जी के यहाँ गए। उन्होंने अटल जी को पूरा किस्सा सुनाया। अटल जी ऑंखें बंद करते हुए सुनते रहे। उसके बाद उठेऔर घर के अन्दर चले गए। थोड़ी देर बाद आये और उन लेखक से पूछा- तो आपने क्या कहा बाबा नागार्जुन क्या कह रहे थे? लेखक महोदय ने फिर पूरी बात सुनाई। अटल जी फिर उठे और चले गए, अन्दर से आये और फिर वही पूछा- तो बाबा नागार्जुन क्या कह रहे थे? फिर लेखक महोदय ने पूरी कहानी सुना दी। अटल जी फिर उठे और दूसरे कमरे में चले गए। अब वापस आकर उन्होंने तीसरी बार फिर वही पूछा तो लेखक महोदय का धैर्य जवाब दे गया। वे बोले कि एक ही बात आप बार-बार क्यों पूछ रहे हैं? अटल जी ने कहा- आप नहीं समझेंगे। आज तक इतने बड़े किसी कवि ने मेरे पीछे मेरी कविताओं को अच्छा नहीं कहा था। इसीलिए बार-बार आपके मुख से सुनने का मन कर रहा है।"

अटल बिहारी वाजपेयी किस पाये के कवि थे इसे साहित्यिक आलोचक तय करेंगे। फिलहाल हम इस लेख का समापन अटल बिहारी वाजपेयी की एक चर्चित कविता से करेंगे। (इस कविता का अटल बिहारी वाजपेयी के स्वर पाठ नीचे दिये गये वीडियो में सुन सकते हैं।)

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर ,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं।
गीत नया गाता हूँ।

टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ।
गीत नया गाता हूँ।

वीडियो जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी ने इस कविता का पाठ किया है-

Web Title: atal bihari vajpayee poet nirmal verma nagarjun vinod mehta prabhat ranjan memoir

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