(आशीष मिश्रा)
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर राष्ट्रीय राजधानी में कूड़े के पहाड़ बन चुके ‘लैंडफिल’ स्थलों को समतल और बंद करने के लिए तीनों नगर निकाय कचरे को ऊर्जा में परिवर्तित करने के संयंत्र स्थापित करने से लेकर ‘जैव-खनन’ तक की तकनीक अपना रहे हैं। अपने-अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले लैंडफिल को बंद करने के लिए उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली के नगर निगमों ने क्रमशः जून 2022, दिसंबर 2023 और दिसंबर 2024 की समयसीमा निर्धारित की है।
निकाय अधिकारियों के अनुसार, शहर में कुल 11,400 मिट्रिक टन कूड़ा पैदा होता है जिसमें से लगभग 6,200 मिट्रिक टन गाजीपुर, ओखला और भलस्वा के लैंडफिल में फेंका जाता है। बाकी 5,200 मिट्रिक टन कूड़े को कम्पैक्टर और कचरे को ऊर्जा में परिवर्तित करने वाले संयंत्रों (डब्ल्यूटीई) की सहायता से स्थानीय स्तर पर प्रसंस्कृत किया जाता है। कूड़े के ढेर और कचरे के निस्तारण के मुद्दे का जिक्र शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में भी आया था जो उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन (द्वितीय) की शुरुआत पर दिया था।
मोदी ने कहा था कि शहर में “कूड़े के पहाड़” को हटाना चाहिए। वह गाजीपुर लैंडफिल स्थल के बारे में कह रहे थे जिसने एक पर्वत का आकर ले लिया है और 2019 में वह कूड़े का सबसे बड़ा ढेर था। गाजीपुर के लैंडफिल की ऊंचाई 2019 में 65 मीटर थी जो कुतुब मीनार से केवल आठ मीटर कम थी। वर्ष 2017 में इस लैंडफिल का एक हिस्सा सड़क पर गिर गया था जिससे दो लोगों की मौत हो गई थी।
गाजीपुर लैंडफिल पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) के क्षेत्राधिकार में आता है जिसने 2019 में लैंडफिल की ऊंचाई कम करने के वास्ते ‘जैव-खनन’ की प्रक्रिया शुरू की थी। ईडीएमसी के अधिकारियों का दावा है कि 2019 से लेकर अब तक गाजीपुर लैंडफिल स्थल की ऊंचाई 15 मीटर तक घटा दी गई है और 7,75,000 टन कचरे का प्रसंस्करण कर दिया गया है।
वर्तमान में गाजीपुर लैंडफिल पर 140 लाख मिट्रिक टन कूड़ा पड़ा हुआ है। ईडीएमसी के महापौर श्याम सुंदर अग्रवाल ने पीटीआई-भाषा से कहा, “हमने दिसंबर 2024 तक गाजीपुर लैंडफिल स्थल को बंद करने का लक्ष्य रखा है। हमने लंबे समय से पड़े कचरे के प्रसंस्करण के लिए 20 ट्रोमेल मशीनें लगाई हैं लेकिन वर्तमान में प्रतिदिन तीन हजार मिट्रिक टन कूड़े के प्रसंस्करण की क्षमता है जिसमें वृद्धि की जानी है।”
उन्होंने कहा कि दिसंबर से गाजीपुर डब्लूटीई संयंत्र की ओवरहॉलिंग की जाएगी जिससे 1500 मिट्रिक टन कूड़े का प्रसंस्करण किया जा सकेगा। अग्रवाल ने कहा कि नगर निगम कूड़े के प्रसंस्करण के लिए एक एजेंसी को नियुक्त करने का प्रयास भी कर रही है। उन्होंने कहा, “कंपनी को 27 महीने में 50 लाख मिट्रिक टन कूड़े का प्रसंस्करण करना होगा। इसके लिए निविदा आमंत्रित की गई है।”
उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के अधिकारियों ने कहा कि भलस्वा लैंडफिल स्थल पर 60 लाख मिट्रिक टन कूड़ा पड़ा हुआ है जिसका प्रसंस्करण जून 2022 के अंत तक किया जाना है। एनडीएमसी के पर्यावरण प्रबंधन सेवा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में 24 ट्रोमेल मशीनें छह हजार मिट्रिक टन कूड़े के प्रसंस्करण में लगी हैं।
अधिकारी ने कहा कि 24 और ट्रोमेल मशीनों को लगाकर जैव-खनन की क्षमता में वृद्धि की जाएगी। अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, “15 अक्टूबर तक हमारे पास 48 ट्रोमेल मशीनें होंगी जिनसे भलस्वा लैंडफिल स्थल पर प्रतिदिन 15,000 मिट्रिक टन ठोस कूड़े का प्रसंस्करण किया जा सकेगा। हम एक और डब्ल्यूटीई का निर्माण करेंगे जो भलस्वा या रानी खेड़ा में होगा और इसकी क्षमता ढाई हजार मिट्रिक टन की होगी। इन सभी कदमों से हम जून 2022 तक भलस्वा लैंडफिल को बंद करने की स्थिति में होंगे।”
उन्होंने कहा कि नए डब्ल्यूटीई के लिए निविदाएं आमंत्रित की गई हैं। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने ओखला लैंडफिल में जून 2022 तक कूड़ा फेंकना बंद करने और 2023 के अंत तक वैज्ञानिक तरीके से लैंडफिल बंद करने का लक्ष्य रखा है।
एसडीएमसी के अधिकारीयों के मुताबिक, दक्षिणी दिल्ली में प्रतिदिन 3,600 मिट्रिक टन कूड़ा पैदा होता है जिसमें केवल 50 प्रतिशत का प्रसंस्करण किया जाता है और बाकी ओखला लैंडफिल में फेंका जाता है।
एसडीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तेहखंड इलाके में जून 2022 में डब्ल्यूटीई संयंत्र का परिचालन शुरू होगा। इसमें दो हजार टन कूड़े के प्रसंस्करण की क्षमता होगी।
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