जानिए उत्तराखण्ड का ये मंदिर क्यों है खास, रिपोर्ट में दावा- यहाँ हो सकती है मुकेश अंबानी के बेटे की शादी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 7, 2018 07:48 AM2018-08-07T07:48:16+5:302018-08-07T07:48:16+5:30
इस मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड हैं जो आज भी प्रज्ज्वलित रहता है। इसमें प्रसाद के रूप में लकड़ियां चढ़ाई जाती है और लोग इस हवन कुंड की राख लेकर घर जाते हैं। इस हवन कुंड के बारे में मान्यता है कि इसी के चारों तरफ शिव पार्वती ने सात फेरे लिए थे।
भारत के ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे अमीर बिजनेसमैन में से एक मुकेश अंबानी के बड़े बेटे आकाश अंबानी की सगाई हीरा कारोबारी रसेल मेहता की छोटी बेटी श्लोका मेहता के साथ 30 जून को मुंबई में बड़े ही धूमधाम से हुई थी। अब दोनों का परिवार शादी की तैयारियों मे जुटा लगा हुआ है.
अब इतने बड़े उद्योगपति के बेटे की शादी है तो किसी 5 स्टार होटल या लैविश डेस्टिनेशन वेडिंग से कम तो क्या होगी लेकिन एशिया के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी के बेटे की शादी किसी 5 स्टार होटल में नहीं बल्कि देव भूमि उत्तराखंड के एक मंदिर में हो सकती है।
रिपोर्ट्स की मानें तो आकाश अंबानी और श्लोका मेहता उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के मशहूर त्रियुगी नारायण मंदिर में सात फेरे ले सकते है. खबरें है रिलायंस कंपनी के अधिकारियों की एक टीम हाल ही में मंदिर का दौरा करके गई है। तो आज हम आपको बता है देवभूमि उत्तराखंड के इस पौराणिक मंदिर की मान्यता के बारे में।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के प्रमुख स्थानों में एक त्रियुगी नारायण स्थल है। यहां पर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है। इस मंदिर को ज़्यादातर लोग त्रियुगी नारायण मंदिर या त्रिजुगी नारायण के नाम से ही पुकारते हैं। कहा जाता है कि इसी गाँव के इस मंदिर में भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह हुआ था. मंदिर में तीन युगों से ज्वाला जल रही है और इसी को साक्षी मानकर भगवान शंकर ने पार्वती माता अपनी अर्धांगिनी बनाया था।
त्रियुगी नारायण मंदिर का ब्रह्मकुण्ड
त्रियुगी नारायण मंदिर के अखंड धुनी के फेरे भगवान शिव और माता पार्वती ने विवाह के वक्त लिए थे। इस मंदिर की मान्यता इतनी है कि जो भी जोड़ा इस मंदिर में शादी करता है उनका रिश्ता जन्मों तक जुड़ जाता है और जीवन संवर जाता है. इस मंदिर के परिसर में कई ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में बताया जाता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के प्रतीक हैं।
इस मंदिर में एक ऐसा हवन कुंड हैं जो आज भी प्रज्ज्वलित रहता है। इसमें प्रसाद के रूप में लकड़ियां चढ़ाई जाती है और लोग इस हवन कुंड की राख लेकर घर जाते हैं। इस हवन कुंड के बारे में मान्यता है कि इसी के चारों तरफ शिव पार्वती ने सात फेरे लिए थे।
मंदिर में एक ब्रह्मकुंड है जिसका सम्बन्ध भी शिव-पार्वती के विवाह से माना जाता है। मान्यता है शिव पार्वती के विवाह में ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। विवाह में शामिल होने से पहले ब्रह्मा जी ने इस कुंड में स्नान किया था इसीलिए इसे ब्रह्मकुंड कहते है। आज भी यहां पर आने वाले यात्री इस ब्रह्मकुंड को पवित्र मानकर इसमें स्नान करते हैं और ब्रह्म जी से आशीर्वाद लेते हैं।
त्रियुगी नारायण मंदिर का विष्णु कुण्ड
त्रियुगी नारायण मंदिर में एक ऐसा स्थान भी है जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती विवाह के समय उसी स्थान पर बैठे थे।
मान्यता है कि भगवान् विष्णु ने शिव-पार्वती के विवाह में माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी. ऐसे में भगवान विष्णु ने विवाह से पहले जिस कुंड में स्नान किया था। वह कुंड आज विष्णु कुंड के नाम से जाना जाता है। इसी कुंड में स्नान करके भगवान विष्णु ने विवाह संस्कार में भाग लिया था।
मंदिर में एक रुद्र कुण्ड भी है विवाह में शामिल होने से पहले सभी देवी-देवताओं ने इस कुंड में स्नान किया था
कथाओं के अनुसार भगवान शिव को विवाह के समय एक गाय मिली थी। मंदिर में एक स्तम्भ भी है, इसके अलावा मंदिर में एक स्तंभ बना है। कथाओं के अनुसार भगवन शिव को विवाह के समय एक गाय मिली थी। उसे इसी जगह पर बांधा गया था।
त्रियुगी नारायण मंदिर के एक बड़ी मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में सात फेरे लेता है या जोड़े से आकर हवन कुंड के फेरे लेता है उनका रिश्ता अटूट रहता है.
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