लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूर की मां ने रोते हुए अपने बेटे से कहा- मुझे किसी तरह अपने गांव ले चलो
By भाषा | Published: May 18, 2020 07:44 PM2020-05-18T19:44:54+5:302020-05-18T19:44:54+5:30
भदोही की राजी देवी और निर्माण कंपनी में मजदूर उनके बेटे साहब लाल व परिवार के अन्य सदस्यों को बस में सीट नहीं मिल सकी।
गुरुग्राम: राजी देवी की आंखें आंसुओं से लबालब हैं और प्रवासी श्रमिकों को लेकर उत्तरप्रदेश जाने वाली बस को देख वह अपने बेटे से रोते हुए कहती हैं कि उन्हें बस अब घर लौटना। वह अब कभी भी इतने बड़े शहर में दोबारा नहीं आना चाहती। राजी देवी और निर्माण कंपनी में मजदूर उनके बेटे साहब लाल व परिवार के अन्य सदस्यों को बस में सीट नहीं मिल सकी। सभी परिजन भदोही स्थित गांव लौटना चाहते हैं।
दरअसल, बसों में सीटों का आवंटन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर किया गया और परिवार इस आधार पर सीट पाने में विफल रहा। बुजुर्ग महिला की उम्र करीब 70 वर्ष है, जो अपने बेटे का हाथ पकड़े हुए है और उससे कहती है कि वह अब नहीं लौटेगी और भले ही वह उसके अंतिम संस्कार के लिए नहीं आए। परिवार में राजी देवी, साहब लाल, उसकी पत्नी और दो बच्चे, उसका भतीजा और उसकी पत्नी शामिल हैं।
परिवार के सभी सदस्य उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जो गुरुग्राम के सेक्टर नौ के सामुदायिक केंद्र में इंतजार कर रहे हैं। यहां से बसें फंसे श्रमिकों को लेकर उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर तक लेकर जा रही है। राजो देवी ने कहा कि वह पहली बार अपने गांव से बाहर आई है और यह अंतिम बार है। बड़े शहरों की चमक-दमक खत्म हो गई। बस खुलते ही उन्होंने अपने बेटे से अपनी स्थानीय भाषा में कहा, ‘‘बेटुआ अब हम कभी नहीं आईं, तू बेशक हमका कांधा देन भी मत आइये।
हमका नहीं देखना शहर।’’ लाल ने कहा कि परिवार करीब 850 किलोमीटर दूर भदोही के दारा पट्टी गांव तक पैदल ही चला जाता लेकिन राजी देवी यात्रा के बाद जिंदा नहीं रह पाएगी। लाल ने कहा, ‘‘भगवान जाने अब हम कैसे घर जाएंगे...हमने पैदल जाने का प्रयास नहीं किया क्योंकि मेरी मां इतनी लंबी दूरी तक नहीं चल पाएंगी। उन्हें ज्यादा आराम देने के लिए कुछ महीने पहले मैं यहां लाया।’’