अगर लोक सभा 2019 में भी इस विधान सभा चुनाव जैसा हाल हुआ तो बीजेपी को नहीं मिलेगा अकेले दम पर बहुमत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 12, 2018 04:09 PM2018-12-12T16:09:42+5:302018-12-12T17:49:28+5:30

लोक सभा 2019 चुनाव महज छह महीने दूर हैं। लोक सभा 2014 से पहले नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अपने चरम पर थी। आगामी आम चुनाव से पहले उनकी और उनकी पार्टी बीजेपी की क्षमता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस तरह कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता से बाहर किया है उसके बाद इन सवालों को नजरअंदाज करना भी मुश्किल है।

Modi wave has completely collapsed, Where is it now? | अगर लोक सभा 2019 में भी इस विधान सभा चुनाव जैसा हाल हुआ तो बीजेपी को नहीं मिलेगा अकेले दम पर बहुमत

नरेंद्र मोदी मई 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे। (फाइल फोटो)

साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 330 से ज्यादा सीटें हासिल की थीं। इस प्रचंड बहुमत ने पार्टी के नेता नरेंद्र मोदी को ऐसा कद दिया जिसकी वजह से किसी के लिए उनका विरोध लगभग नामुमकिन हो गया। लेकिन मोदी की असली ताकत थी बीजेपी का अकेले दम पर लोक सभा में पूर्ण बहुमत के जादुई आंकड़े 272 के पार पहुंच जाना। जाहिर था कि सरकार बनाने के लिए बीजेपी और नरेंद्र मोदी के सामने किसी सहयोगी दल के आगे झुकने की मजबूरी नहीं थी। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपीनीत एनडीए की सरकार बनी थी तो अटल जी के पास मोदी जी जितनी आजादी नहीं थी। 

लेकिन पीएम मोदी के केंद्र में साढ़े चार साल पूरे करते-करते लोकसभा में बीजेपी का निजी आंकड़ा बहुमत के जादुई आंकड़े (272) से कम होकर 269 भर रह गया। अब पाँच राज्यों के विधान सभा चुनावों में जिस तरह कांग्रेस ने बीजेपी को हराया है उससे इस बात की आशंका बढ़ गयी है कि आगामी चुनाव में निचले सदन में बीजेपी की निजी सीटें घट सकती हैं।

मध्यप्रदेश में लोक सभा की 29, राजस्थान में 25, छत्तीसगढ़ में 11 सीटें हैं। हिन्दी पट्टी के इन तीन राज्यों में कुल 65 सीटें हैं। अभी बीजेपी के पास मध्यप्रदेश की 26 लोक सभा सीटों हैं। राजस्थान में पार्टी के पास 24 सांसद हैं। छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास 10 सांसद हैं। यानी इन तीन राज्यों में बीजेपी के पास कुल 60 सांसद हैं। अगर लोक सभा चुनाव में इन राज्यों के विधान सभा चुनावों जैसा हाल हुआ तो बीजेपी की सीटें करीब आधी हो जाएंगी। अगर बाकी देश में बीजेपी अपना प्रदर्शन लोक सभा 2014 वाला बरकरार रखे तो भी उसकी कुल सीटों में करीब 60 सीटों का झटका लगने से वो अकेले दम पर बहुमत हासिल करने के लक्ष्य से बहुत दूर हो जाएगी।

ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर बीजेपी आगामी आम चुनाव में 200 सीटों के आसपास सिमटी तो नरेंद्र मोदी के लिए दोबारा पीएम बनना टेढ़ी खीर साबित होगा। 

बीजेपी की हार और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में ह्रास

विधानसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण अगले कुछ दिनों तक लगातार चलता रहेगा लेकिन सामने आए नतीजों के आधार पर एक चर्चा शुरू हो गई है कि कहीं ये परिणाम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए ख़तरे की घंटी तो नही? 2014 के लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में एक के बाद एक मोदी को लगातार कामयाबी मिली।

यहां तक कि निकाय चुनावों की जीत को भी मोदी की जीत से जोड़कर दिखाया गया। दिल्ली, बिहार, पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों को अपवाद मान लें तो ज्यादातर राज्यों में बीजेपी सरकार बनाने में सफल भी रही। इन सभी जीत पर बीजेपी नेता यह कहते नजर आते थे कि चुनाव मोदी जी के नेतृत्व में लड़ा गया और जीत का पूरा श्रेय मोदी और अमित शाह की जोड़ी को दिया जाता था। लेकिन पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम के विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी, मोदी सहित अन्य बड़े नेताओं के लिए तब और झटके देने वाले हैं जब 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देने वाले मोदी जी से उसी कांग्रेस ने तीन बड़े राज्य छीन लिए हों।

लेकिन इन नतीजों के आधार पर 2019 के लिए किसी पार्टी की हार या जीत तय करना जल्दबाज़ी होगी। क्योंकि विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मतदाता अलग-अलग तरीके से वोट देते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण फरवरी 2015 में होने वाला दिल्ली विधानसभा चुनाव है।

एक तरफ जहां मई 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में बीजेपी पूर्णबहुमत से सत्ता के केंद्र में स्थापित होती है वहीं दिल्ली के चुनाव में उस समय के हिसाब से 'नवजात' राजनीतिक पार्टी 'आम आदमी पार्टी' बीजेपी, कांग्रेस जैसी धुरंधर पार्टियों को धराशायी करते हुए 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज करती है। विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चित तौर पर पार्टियों के मनोबल पर असर डालते हैं लेकिन उनकी अहमियत को सही ढंग से समझने की ज़रूरत है।

नरेंद्र मोदी की इमेज पर बीजेपी की निर्भरता 

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी, लोकसभा चुनाव को 'व्यक्ति विशेष' के चुनाव में बदलने में सफल रहे हैं। जिसमें कई बार व्यक्ति विशेष की लोकप्रियता, बाकी मुद्दों पर भारी पड़ती दिखती है। ऐसे में 2019 के आम चुनाव को भी मोदी 2014 की ही तरह अपनी निजी लोकप्रियता के आधार पर लड़ेंगे, जिसमें मुख्य संदेश यही होगा कि मोदी नहीं तो क्या राहुल गांधी? लेकिन जरूरी नहीं कि मोदी का यह दांव काम कर जाए।

नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले जनता से कई वादे किए, सब को साथ लेकर चलने का वादा किया, नौकरी, मंहगाई, भर्ष्टाचार जैसे सभी ज्वलंत मुद्दों पर बेबाक भाषण दिए लेकिन जीतने के बाद इनमें से कई वादों को पूरा करने में वह नाकाम रहे हैं और कई मुद्दों को उनके पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा जुमला बता दिया गया। यदि जनता आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी को उनके वादों की कसौटी पर देखेगी है तो शायद रोजगार की बाट ताक रहे नौजवानों, कर्ज औऱ सूखे की मार झेल रहे किसानों से की तरफ से मोदी को मायूसी ही हाथ लगेगी। 

तीसरे, जिन लोगों को 2004 के लोकसभा चुनाव याद हैं, वे जानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी कितने लोकप्रिय नेता थे और उनके सामने एक 'विदेशी मूल' की महिला थी जो ठीक से हिंदी बोल नहीं पाती थी, और तब भी 'मेक इन इंडिया' की तरह ही इंडिया शाइन कर रहा था फिर भी निराशा ही हाथ लगी।

चौथी बात कांग्रेस को पांच में से तीन राज्यों में मिली सफलता के आधार पर यह कह देना कि 2019 कांग्रेस के पाले में जा सकता है, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि चुनाव आयोग के आंकड़ों को गौर से देखें तो दो बड़े राज्यों, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के वोटों का प्रतिशत लगभग एक बराबर है। इसको देखने से पता लगता है कि मोदी की लोकप्रियता में कोई खास गिरावट नहीं है। लेकिन इन नतीजों से राहुल गांधी को मानसिक मजबूती जरूर मिली होगी। 

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब चुनावी नतीजों में एक भी राज्य में बीजेपी को जीत नहीं मिली। ऐसे में सवाल उठना तय है कि क्या मोदी लहर खत्म हो चुकी है?

English summary :
In Lok Sabha Elections 2014, the BJP allied NDA won on more than 330 seats. Narendra Modi's real power was the BJP's big victory in the Lok Sabha, the magical figure of the full majority reached 272 alone without any support. It was obvious that in order to form a government, there was no compulsion for BJP and Narendra Modi to ask for any allies. But now the scene has changed after the Vidhan Sabha Results on 11th December and now it seems BJP will find difficulty in winning Lok Sabha Elections in 2019.


Web Title: Modi wave has completely collapsed, Where is it now?