टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया के नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के सामने दीवालियेपन के आवेदन को टालने के लिए केंद्र सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. सरकार की कोशिश समूचे टेलीकॉम सेक्टर को इस मुश्किल दौर से उबारने की है.
वोडाफोन-आइडिया पहले ही साफ कर चुकी है कि उसके लिए एजीआर का 53,000 बकाया एकमुश्त चुकाना नामुमकिन है. उसने यह भुगतान 15-20 किश्तों में करने की तैयारी जरुर दिखाई है. इसी के तहत उसने 2500 करोड़ की पहली किश्त जमा कर दी है. भारती एयरटेल कंपनी 35,000 करोड़ के बकाये का भुगतान 10 साल में बिना दंड या ब्याज के करना चाहती है.
उसने 10,000 करोड़ जमा कर दिए हैं. टाटा समूह ने भी 2190 करोड़ की एक किश्त जमा कर दी है. टेलीकॉम सेक्टर को इस भीषण आर्थिक संकट से बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद को ब्रिटिश टेलीकॉम कंपनी के कारोबार समेटने के परिणामों पर अपडेट के लिए बुलाया था. प्रसाद ने मोदी को इस संबंध में विस्तार से जानकारी दी.
अपुष्ट रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रसाद ने गत रविवार न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा से भी अनौपचारिक मुलाकात की थी. उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति मिश्रा उच्चतम न्यायालय की उस पीठ के प्रमुख हैं, जिसने एक लाख करोड़ रु. से ज्यादा के बकाये का भुगतान के लिए टेलीकॉम कंपनियों को फटकार लगाई है. गत शनिवार स्व. अरुण जेटली के बेटे की शादी के रिसेप्शन में भी दोनों की मुलाकात हुई थी. उनके बीच बातचीत का खुलासा नहीं हो सका है. इस बीच वोडाफोन-आइडिया ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उच्चतम न्यायालय ने उसे 17 मार्च को कोई राहत नहीं दी, तो वह एनसीएलटी के सामने दीवालियेपन के लिए आवेदन दे देगी.
वोडाफोन-आइडिया का आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी आइडिया ने अधिग्रहण कर लिया है. उसके पास 45 प्रतिशत हिस्सेदारी है. कंपनी का कहना है कि वह इतनी बड़ी राशि का एकमुश्त भुगतान करने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में कंपनी को बंद करना ही उसके लिए बेहतर विकल्प होगा. पिछले सप्ताह राजधानी में आदित्य बिड़ला ने अपनी कानूनी टीम से सलाह-मशविरा किया. कई मशहूर वकीलों की मौजूदगी वाली टीम का नेतृत्व पूर्व एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी के हाथ में है.