मोदी सरकार ने विवादास्पद चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को यह संवैधानिक पद छोड़ने के लिए कहा है. सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार उनकी पत्नी नोवेल लवासा की 10 बड़ी कंपनियों के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक के रूप में नियुक्ति के संबंध में मीडिया रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार इस मामले की जांच करना चाहती है. वह इन कंपनियों के बोर्ड में तब शामिल हुई थीं जब लवासा सरकार में संवेदनशील पदों पर थे.
दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें पद देकर पुरस्कृत किया था. लवासा को अगस्त 2014 में ऊर्जा सचिव, उसके बाद पर्यावरण सचिव और फिर 2016 में वित्त सचिव बनाया गया था. अक्तूबर 2017 में सेवानिवृत्ति के बाद लवासा को उनकी सेवाओं के पुरस्कार के रूप में जनवरी 2018 को चुनाव आयुक्त बनाया गया.
सरकार के साथ तालमेल बेहतर रहता, तो वह अप्रैल 2021 में मुख्य चुनाव आयुक्त बन जाते. अब समय बदल गया है और सरकार चाहती है कि वह इस्तीफा दे दें. इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आचार संहिता के क्रियान्वयन पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के साथ लवासा के मतभेद की खबरें मीडिया में आई थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा प्रमुख अमित शाह के खिलाफ आदर्श आचार संहिता उल्लंघन मामले में उनके विचार चुनाव आयोग के उनके अन्य सहयोगियों से अलग थे. हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी थी, ''मैं चाहता हूं कि पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से आचार संहिता उल्लंघन के मामलों के निपटारे के लिए एक प्रणाली हो.''
लवासा ने लोकसभा चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण बैठकों में जाना छोड़ दिया था. लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के बाद लवासा हाशिये पर चले गए. अब लगता है कि नाराज सरकार ने उनके आचरण पर गौर करने का निर्णय लिया है जब वह आईएसएस अधिकारी के रूप में अहम पद संभाल रहे थे. यह पता चला कि उनकी पत्नी नोवेल लवासा उसी दौरान कुछ कंपनियों की चहेती बन गईं और उन्हें स्वतंत्र निदेशक के रूप में शामिल किया गया, जबकि अगस्त 2014 से पहले उनके पास कुछ भी नहीं था.
एसबीआई की सेवानिवृत्त अधिकारी में दिलचस्पी क्यों?
सरकार का मानना है कि यह हितों के टकराव का स्पष्ट मामला है और इसकी विस्तृत जांच जरूरी है. सरकार यह जानना चाहती है कि इन कंपनियों ने एसबीआई की सेवानिवृत्त अधिकारी और चित्रकार के रूप में जाने जानी वाली नोवेल लवासा में क्यों दिलचस्पी दिखाई. चूंकि संवैधानिक प्राधिकारी के खिलाफ कोई जांच नहीं की जा सकती, इसलिए उन्हें इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए पद छोड़ देने के लिए कहा गया है. लवासा और सरकार की कहानी में अंतिम शब्द लिखा जाना बाकी है.