लॉकडाउन की 'निशानी' रिक्शे को सहेज कर रखेंगे रामचरन, बोले-रिक्शा न होता तो घर नहीं पहुंच पाते

By भाषा | Published: June 8, 2020 02:55 PM2020-06-08T14:55:39+5:302020-06-08T14:55:39+5:30

लॉकडाउन के शिकार प्रवासी मज़दूर रामचरन 9 रिश्तेदारों को रिक्शे में दिल्ली से महोबा के बरा गांव तक ले कर आए. अब रामचरन इस 'रिक्शे' को लॉकडाउन की निशानी के तौर पर सहेज कर जीवन भर रखेंगे. जनवरी में कैंसर से पत्नी चंदा की मौत के बाद 1 लाख का कर्ज चुकाने के लिए पैसे कमाने दिल्ली आए थे.

Migrant laboure Ramcharan travels home on `rickshaw''with Family, now he will Preserv His Rickshwaw as 'sign of Lockdown'. | लॉकडाउन की 'निशानी' रिक्शे को सहेज कर रखेंगे रामचरन, बोले-रिक्शा न होता तो घर नहीं पहुंच पाते

महोबा जिले के कबरई विकास खण्ड के बरा गांव का रामचरन पेशे से मजदूर है. (file photo)

Highlightsरामचरण रिक्शे में अपने साढ़ू और भतीजे के परिवार को लेकर 7 मई को दिल्ली से चले और 14 मई को घर पहुंचे पांच साल की बेटी और 12 साल के बेटे को गांव में छोड़ कर गए थे रामचरन इस 'रिक्शे' को लॉकडाउन की निशानी के तौर पर सहेज कर जीवन भर रखना चाहता है. 

महोबा (उप्र): कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया की रफ्तार थम गई. कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन ने सबसे ज्यादा और सीधी चोट पहुंचाई प्रवासी मज़दूरों पर. लॉकडाउन में हमने देश भर से अपने घरों को लौटते करोड़ों मज़दूरों को देखा है. इसी करोड़ों की भीड़ का एक हिस्सा महोबा जिले के बरा गांव के रामचरन भी हैं जो अपने 9 रिश्तेदारों को रिक्शे में दिल्ली से बरा गांव तक लाया. अब वह इस 'रिक्शे' को लॉकडाउन की निशानी के तौर पर सहेज कर जीवन भर रखना चाहता है. 

महोबा जिले के कबरई विकास खण्ड के बरा गांव का रामचरन पेशे से मजदूर है. जनवरी के पहले हफ्ते में कैंसर से पत्नी चंदा की मौत हो गई थी. पत्नि की मौत के बाद उसके इलाज की खातिर लिए कर्ज के करीब 1 लाख रुपये चुकाने की खातिर रामचरन अपने 6 साल के बच्चे को लेकर साढू व भतीजे के परिवारों के साथ बेलदारी की मजदूरी करने दिल्ली चला गया था. लेकिन लॉकडाउन लागू होने के बाद उसे गांव वापस आने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ेगी. 

बच्चों को मां के पास छोड़कर गया था रामचरण
 
दिल्ली जाने से पहले वह अपनी पांच साल की बच्ची आरती और 12 साल के बेटे दयाशंकर को 65 वर्षीय मां रज्जी के पास घर छोड़ गया था. रामचरन बताता है, "पत्नी चंदा काफी समय से कैंसर की बीमारी से ग्रस्त थी और इसी साल जनवरी के पहले हफ्ते में इलाज नहीं मिलने के कारण उसकी मौत हो गयी." उसने बताया, "गांव में साहूकारों से पांच रुपए प्रति सैकड़े ब्याज की दर से 1 लाख रुपये कर्ज लेकर उसका (पत्नी) इलाज भी करवाया, लेकिन बाद में पैसे के अभाव में इलाज बंद हो गया और उसकी मौत हो गयी.’’ यही कर्ज भरने के लिए मकर संक्रांति के बाद वह अपने छह साल के बेटे रमाशंकर को लेकर मजदूरी करने दिल्ली चला गया और वहां मकान निर्माण में बेलदारी की मजदूरी करने लगा था. रामचरन ने बताया, "कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए अचानक 25 मार्च से लागू लॉकडाउन से मजदूरी बंद हो गयी. एक हफ्ते तक तो किसी तरह समय गुजर गया, लेकिन इसके बाद बच्चे तक को भी तीन दिन रोटी नहीं नसीब हुई. 

ठेकेदार ने मुफ्त में दिया ठेला रिक्शा

" बकौल रामचरन, "लॉकडाउन घोषित होने पर सभी प्रकार के वाहन बंद हो गए थे और साथी मजदूर पैदल अपने घरों को वापस होने लगे थे. ऐसी स्थिति में मैंने अपने भवन निर्माण के ठेकेदार से मदद मांगी. ठेकेदार ने गांव लौटने के लिए बालू-सीमेंट ढोने वाला एक ठेला रिक्शा मुफ्त में दे दिया. " वह बताता है कि इसी रिक्शे में वह अपने साढ़ू और भतीजे के परिवार को लेकर तथा गृहस्थी का कुछ सामान लादकर 7 मई को दिल्ली से चला और 14 मई को घर पहुंचा.  उसने कहा, ‘‘करीब छह सौ किलोमीटर के सफर में कई जगह पुलिस ने हम पर डंडे भी बरसाए, लेकिन कोसीकलां की पुलिस ने इंसानियत दिखाई. वहां की पुलिस ने सभी नौ लोगों को खाना खिलाने के बाद रिक्शा सहित एक ट्रक में बैठाकर आगरा तक भेजा. फिर आगरा से गांव तक हम रिक्शे से ही घर आये. " वह बताता है, "बारी-बारी से तीनों पुरुष रिक्शा खींचते थे, कई बार परिवार की दो महिलाओं ने भी रिक्शा खींचा था. 

" रामचरन कहता है कि "यह रिक्शा लॉकडाउन की 'निशानी' है. यदि यह रिक्शा न होता तो वह परिवार के साथ अपने घर न आ पाता. इसीलिए इसे जीवन भर सहेज कर रखूंगा. 

Web Title: Migrant laboure Ramcharan travels home on `rickshaw''with Family, now he will Preserv His Rickshwaw as 'sign of Lockdown'.

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