मेधा पाटकर ने 70 साल से ज्यादा उम्र के कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए न्यायालय का रुख किया

By भाषा | Published: June 19, 2021 09:46 PM2021-06-19T21:46:09+5:302021-06-19T21:46:09+5:30

Medha Patkar moves court for immediate release of prisoners above 70 years of age | मेधा पाटकर ने 70 साल से ज्यादा उम्र के कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए न्यायालय का रुख किया

मेधा पाटकर ने 70 साल से ज्यादा उम्र के कैदियों की तत्काल रिहाई के लिए न्यायालय का रुख किया

नयी दिल्ली, 19 जून सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने उच्चतम न्यायालय का रुख कर 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों के हितों की रक्षा के लिए उन्हें अंतरिम जमानत या आपात परोल पर रिहाई के लिए तत्काल कदम उठाने को लेकर केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया है।

पाटकर ने कहा कि उन्होंने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों और उच्चाधिकार प्राप्त समिति को एक समान व्यवस्था बनाने को लेकर निर्देश के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया है ताकि 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों की रिहाई से देश की जेलों में भीड़ भाड़ कम हो। अधिवक्ता विपिन नैयर के जरिए दाखिल अपनी याचिका में पाटकर ने कहा, ‘‘नेल्सन मंडेला ने टिप्पणी की थी कि कोई भी किसी राष्ट्र को तब तक सही मायने में नहीं जानता जब तक कि वह वहां की जेलों के भीतर की हकीकत ना जान ले। लगभग 27 वर्षों तक जेल में बंद रहे इस महान नेता का दृढ़ विश्वास था कि किसी राष्ट्र का मूल्यांकन इस आधार पर नहीं किया जाना चाहिए कि वह अपने शीर्ष नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है, बल्कि अपने निम्नतम नागरिकों के साथ कैसा व्यवहार करता है।’’

उन्होंने अपनी याचिका में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित जेल आंकड़ों को हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि भारत में जेलों में सजा प्राप्त कुल कैदियों में 19.1 प्रतिशत की उम्र 50 साल और उससे अधिक है। याचिका में कहा गया, ‘‘इसी तरह 50 साल या इससे अधिक उम्र के 10.7 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं। पचास या इससे अधिक उम्र के के कुल 63,336 कैदी (जेल में बंद कुल कैदियों का 13.2 प्रतिशत) हैं।’’ याचिका में कहा गया कि 16 मई को राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल के मुताबिक 70 और इससे अधिक उम्र के 5,163 कैदी हैं। इनमें महाराष्ट्र, मणिपुर और लक्षद्वीप के आंकड़ें नहीं हैं।

मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने 23 मार्च 2020 को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कैदियों की श्रेणी निर्धारित करने के लिए उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करने को कहा था जिन्हें आपात परोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सके। याचिका में कहा गया कि 13 अप्रैल 2020 को न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को जेलों से कैदियों की अनिवार्य रिहाई का निर्देश नहीं दिया था और पूर्व के निर्देश का मतलब यह सुनिश्चित करना था कि राज्य और केंद्रशासित प्रदेश, देश में मौजूदा महामारी के संबंध में अपने यहां की जेलों में हालात का आकलन करें और कुछ कैदियों को छोड़ें तथा रिहा किए जाने वाले कैदियों की श्रेणी बनाएं।

याचिका में कहा गया कि निर्देश के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने समितियों का गठन किया और अधिकतर समितियों ने अपराध की गंभीरता और कैदियों को जमानत मिलने पर इसका दुरुपयोग होने की आशंका को ध्यान में रखते हुए श्रेणी बनायी। ज्यादातर वर्गीकरण कैदियों की सामाजिक स्थिति और प्रशासनिक सहूलियत के आधार पर हुआ और संक्रमण के ज्यादा खतरे की आशंका को ध्यान में नहीं रखा गया। याचिका में कहा गया कि सबसे ज्यादा उम्रदराज या बुजुर्ग कैदियों खासकर 70 साल से अधिक उम्र के कैदियों के संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है। हालांकि, उच्चाधिकार प्राप्त कुछ समितियों ने ही उम्रदराज कैदियों को छोड़ने के लिए कदम उठाए।

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Web Title: Medha Patkar moves court for immediate release of prisoners above 70 years of age

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