आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का जन्मदिन है। 26 सितंबर 1932 को पंजाब में जन्मे मनमोहन सिंह देश के 13वें प्रधानमंत्री बने थे। जवाहरलाल नेहरू के बाद लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री रहने वाले वो पहले पीएम थे।
मनमोहन सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा हासिल की। विदेश में उच्च शिक्षा हासिल करके मनमोहन सिंह ने कुछ साल संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNCTAD के लिए काम किया।
1969 में वो दिल्ली यूनिवर्सिटी के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त हुए। 1972 में वो वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाए गए। 1980 में वो योजना आयोग के सदस्य बने। 1982 में सिंह को भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया गया।
1985 में सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए। 1991 में जब पीवी नरसिम्हाराव की सरकार बनी तो मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री बने। राव सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की राह पर डाला।
नेहरू युग से चली आ रही मिश्रित अर्थव्यवस्था को पूँजीवादी मॉडल पर ले जाने का श्रेय मनमोहन सिंह को दिया जाता है।
जब मनमोहन सिंह बने देश के प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह के जीवन में शायद सबसे अहम मोड़ तब आया जब साल 2004 में उन्हें यूपीए सरकार के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री चुना गया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पीएम के लिए व्यावहारिक राजनीति के लिए अनफिट माने जाने वाले एकैडमिक मिजाज वाले मनमोहन सिंह का चयन करेंगी।
मनमोहन सिंह ने सफलतापूर्वक यूपीए-1 का कार्यकाल पूरा किया। साल 2009 के लोक सभा चुनाव में जब दोबारा यूपीए की सरकार बनी तो मनमोहन सिंह दोबारा देश के प्रधानमंत्री बने।
2004 से 2014 तक देश के पीएम रहे मनमोहन सिंह की छवि एक कम बोलने वाले ईमानदार राजनेता की रही है। लेकिन उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब में मनमोहन सिंह के ऐसे चरित्र को उजागर कर है जिसे कम ही लोग जानते हैं।
मनमोहन सिंह का रौद्र रूप
संजय बारू ने मनमोहन सिंह के कार्यकाल पर लिखी अपनी किताब "द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर" में जिक्र किया है कि किस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री एनडीटीवी की एक खबर से नाराज हो गये थे और उसके मालिक प्रणय रॉय को उस खबर को चलाने के लिए सीधे रूस से डाँट लगायी थी।
एनडीटीवी ने मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया। एनडीटीवी ने मनमोहन सरकार के अच्छे मंत्रियों और बुरे मंत्रियों की लिस्ट बनायी। बुरा प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों की लिस्ट में तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह का भी नाम था। टीवी रिपोर्ट देखकर नटवर सिंह नाराज हो गये और उन्होंने एक दिन की छुट्टी ले ली। जब इस कार्यक्रम का प्रसारण हुआ तो मनमोहन सिंह रूप की राजधानी मास्को में थे।
बारू के अनुसार सिंह ने मास्को से ही एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय को फ़ोन करने को कहा। बारू के अनुसार मनमोहन सिंह ने ख़ुद फ़ोन पर आकर प्रणय रॉय को कड़ी डाँट लगायी। जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे तो प्रणय रॉय उनके आर्थिक सलाहकार रहे थे। बारू ने अपनी किताब में लिखा है, "पीएम ने उन्हें उस स्कूली बच्चे की तरह डाँटा जिससे कोई ग़लती हो गयी हो।"
बारू ने लिखा है कि कुछ समय बाद प्रणय रॉय ने उन्हें पलटकर फ़ोन किया। बारू के अनुसार रॉय ने उनसे कहा, "स्कूल के बाद मुझे ऐसी डाँट आज से पहले नहीं पड़ी थी। वो प्रधानमंत्री के बजाय हेडमास्टर जैसा बरताव कर रहे थे।"
मनमोहन सिंह की डाँट का एनडीटीवी पर असर
मनमोहन सिंह के डाँटने का एनडीटीवी पर क्या असर हुआ था इसके बारे में हाल ही में चैनल में उस समय काम कर रहे पत्रकार समरेंद्र सिंह ने अपने फेसबुक पर लिखा। 16 सितंबर को समरेंद्र सिंह ने "PMO का दखल और क्रांतिकारी पत्रकारिता" शीर्षक वाली पोस्ट में लिखा है, "उन दिनों मैं भी एनडीटीवी इंडिया में ही हुआ करता था। और उन्हीं दिनों केंद्र में आजादी के बाद से अब तक के सबसे "उदार और कमजोर" प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का शासन था। दान में मिली कुर्सी पर बैठकर मनमोहन सिंह भी गठबंधन सरकार पूरी उदारता से चला रहे थे। तो सत्ता और पत्रकारिता के उस "स्वर्णिम काल" में, एनडीटीवी के क्रांतिकारी पत्रकारों को अचानक ख्याल आया कि क्यों नहीं मनमोहन सरकार के मंत्रियों की रिपोर्ट कार्ड तैयार की जाए और अच्छे और खराब मंत्री चिन्हित किए जाएं। एनडीटीवी ने इस क्रांतिकारी विचार पर अमल कर दिया। एनडीटीवी इंडिया पर रात 9 बजे के बुलेटिन में अच्छे और बुरे मंत्रियों की सूची प्रसारित कर दी गई।"
समरेंद्र सिंह ने आगे लिखा है, "उसके बाद का बुलेटिन मेरे जिम्मे था तो संपादक दिबांग का फोन आया कि बुरे मंत्रियों की सूची गिरा दो। मैंने कहा कि सर, अच्छे मंत्रियों की सूची भी गिरा देते हैं वरना यह तो चाटूकारिता लगेगी। उन्होंने कहा कि बात सही है।।। रुको, रॉय (डॉ प्रणय रॉय, चैनल के मालिक) से पूछ कर बताता हूं। मेरी भी एक बुरी आदत थी। जो बात मुझे सही नहीं लगती थी उसे मैं अपने तरीके से बॉस के सामने रख देता था। लेकिन जिरह नहीं करता था। मेरा मत है कि जिन व्यक्तियों पर चैनल चलाने की जिम्मेदारी है चैनल उन्हीं के “हिसाब” से चलना चाहिए। उस दिन भी मैंने वही किया अपनी बात उनके सामने रखी और फैसले का इंतजार किया। थोड़ी देर बाद दिबांग का फोन आया कि वो (डॉ रॉय) अच्छे मंत्रियों की लिस्ट चलाने को कह रहे हैं। मैंने बुरे मंत्रियों की सूची गिरा दी और अच्छे मंत्रियों की सूची चला दी।"