पद्मश्री मंजम्मा जोगती: जिंदगी की मुश्किलों से लड़ती ट्रांसवुमन ‘अम्मा’ के जीने का कारण बना ‘लोकनृत्य’
By अनुभा जैन | Published: April 25, 2022 02:27 PM2022-04-25T14:27:36+5:302022-04-25T14:27:36+5:30
ट्रांसजेंडर या परलैंगिक एक ऐसा शब्द है जिसे लेकर आज भी हमारे समाज में कई तरह की सोच तैर रही है। फिर भी कई ऐसे उदाहरण हैं जहां ट्रांसजेंडर्स ने अपना लोहा मनवाया है और समाज को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया है। मंजम्मा जोगती नाम की ट्रांसजेंडर भी ऐसा ही उदाहरण हैं। वे कर्नाटका जनपद अकादमी की 2019 से अध्यक्ष हैं।
जोगम्मा विरासत की नृत्यांगना मंजम्मा को 2021 में लोकनृत्य के क्षेत्र में भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा दिल्ली में पद्मश्री जैसे उच्चकोटी का सम्मान से नवाजा जा चुका है। लोग मंजम्मा को स्नेहपूर्वक अम्मा कह कर बुलाते हैं।
उत्तरी कर्नाटक, दक्षिणी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में प्रसिद्व जोगती नृत्य कला को ट्रांसजेंडर में ही नहीं समाज के सामान्य महिला पुरूषों में लोकप्रिय बनाती अम्मा 40 वर्षों से नृत्य कला से जुड़ी हुई हैं। मांग में सिंदूर, बड़ी लाल बिंदी, चेहरे पर सादगी, पटटू कॉटन साड़ी, हाथों में कांच की चूड़ियां और बालों में फूलों के गजरे का बेहद शौक, अम्मा का स्टाइल स्टेटमैंट है।
अपने 11 सदस्यीय टीम के साथ अम्मा, जोगती पद्या यानि गायन व नृत्य और उसमें कई अन्य भाव भंगिमाओं को परफॉर्मिंग आर्टस् में परिचय कराने के साथ स्किल डिवेलपमेंट प्रशिक्षण, वृद्ध ट्रांसजेंडर समुदाय को आश्रय देने और समुदाय को कानूनी अधिकार दिलाने के लिये काम कर रही हैं। वे बी.मंजम्मा जोगती प्रतिष्ठान नामक अपने ट्रस्ट के जरिये परलैंगिक लोगों की बेहतरी के प्रयास में जुटी हैं।
आज इस कला में पारंगत हो जोगती समुदाय व अन्य जाति के कलाकार भारत के विभिन्न क्षेत्रों जैसे हम्पी उत्सव, बैंगलोर समारोह में अपने कला का प्रदर्शन कर एक मुकाम को हासिल कर चुके हैं।
मंजम्मा जोगती को परिवार की झेलनी पड़ी नाराजगी
कर्नाटक बल्लारी के पास कल्लाकम्बा गांव में मंजूनाथ शेट्टी यानि मंजम्मा का जन्म 20 मई 1957 को हुआ था। मिडिल क्लास परिवार में जन्मे मंजूनाथ के 21 भाई बहन और थे जिनमें से चार बच्चे ही बच सके। छुप-छुप के मां की साड़ी पहनना और रसोई के काम में उन्हें हाथ बंटाने जैसे लड़कियों के शौक बचपन से ही मंजूनाथ में थे। यह देख मंजूनाथ के पिता और भाई बेहद नाराज होते। 10वीं तक शिक्षा पूरी करने वाले मंजूनाथ का शरीर पुरूष का पर अंर्तात्मा महिला की थी।
18 वर्ष की युवावस्था में मंजूनाथ ने जोगती के जीवन को अपनाया। घर छोड़ने के बाद काफी कठिनाईयों के साथ भीख मांग कर मंजम्मा ने अपनी जिंदगी बसर करनी शुरू की। इस दौरान उनका बलात्कार भी हुआ। इस पीड़दायक घटना ने मंजम्मा को अंदर तक झकझोर दिया। अपने जीवन को खत्म करने का फैसला ले चुकी मंजम्मा ने अगले ही क्षण निर्णय किया कि वह अपनी जिंदगी को ऐसे खत्म नहीं होने दे सकती।
उन्होने इडली बेचना, बच्चों के ट्यूशन लेना शुरू कर दिया। दावनगिरे गांव जहां अम्मा रह रही थी, वहां एक दिन सड़क पर एक पुरूष को विशेष वाद्य यंत्र के साथ गाते और उसके लड़के को नाचते देखा। अम्मा को इस कला को सीखने की ललक पैदा हुई और मंजम्मा ने उन दोनों से कला सीख उनके साथ गाना बजाना शुरू कर दिया।
ट्रांसजेंडर महिलाओं के एक समूह जिसको मुख्य रूप से चलाने वाली काल्लव्वा जोगती थी, ने अम्मा को एक एक्टिव सदस्य के रूप में समूह से जोड़ लिया। अम्मा ने उनके नाटकों व नृत्य कला को सीखने के बाद कला में अपना योगदान देना शुरू कर दिया। अम्मा की लोकप्रियता अब बढ़ने लगी थी। आज काल्लव्वा की मृत्यु के बाद अम्मा ही उनकी विरासत को आगे लेकर जा रहीं है।
बेहद भारी मन से अम्मा ने बात करते हुए मुझे अंत में कहा कि ‘यह दुर्भाग्य है कि आज भी ट्रांसजेंडर एकाकी जीवन जीने को मजबूर हैं क्योंकि समाज हमें अपनाना नहीं चाहता। सरकार द्वारा मिले हमारे कानूनी अधिकारों के बावजूद खुले दिलोदिमाग से अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। लोगों को हमारा मजाक बनाने या हमसे डरने की जगह हमें समान मानते हुये साथ लेकर चलना चाहिये।’