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कोरोना का कहर, महाराष्ट्र के सफेद सोने पर संकट, किसान और कारोबारी बेहाल

By शिरीष खरे | Updated: July 4, 2020 14:29 IST

घरेलू कपड़ा उद्योग में कम खपत और निर्यात में भारी गिरावट के कारण यह स्थिति पैदा हुई है. इस उद्योग से जुड़े जानकारों की मानें तो अक्टूबर 2019 से सितंबर 2020 तक देश में 330 लाख बेल के उत्पादन की उम्मीद है.

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ठळक मुद्देपिछली बार 312 लाख बेल का उत्पादन हुआ था. एक तथ्य यह भी है कि भारतीय कपड़ा उद्योग दुनिया में दूसरे स्थान पर है. कोरोना के कारण आर्थिक मोर्चे पर भी पूरी दुनिया में जनवरी-फरवरी से तबाही शुरू हुई तो इसका बुरा असर घरेलू कपड़ा उद्योग पर पड़ा. गत मार्च में लॉकडाउन की घोषणा से पहले घरेलू कपड़ा उद्योग को 320 से 325 लाख बेलों की जरूरत बताई जा रही थी.

नासिकः कोरोना के साए में रेशमी कपास से जुड़े किसान और कारोबारियों को इन दिनों नए संकट का सामना करना पड़ रहा है. महाराष्ट्र का विदर्भ और मराठवाड़ा अंचल रेशमी कपास उत्पादन की दृष्टि से देश भर में अग्रणी है.

लेकिन, इस वर्ष आशंका है कि देश में सीजन के अंत तक 50 लाख बेलों (प्रति बेल 170 किलोग्राम रुई) का स्टॉक रहेगा. बता दें कि घरेलू कपड़ा उद्योग में कम खपत और निर्यात में भारी गिरावट के कारण यह स्थिति पैदा हुई है. इस उद्योग से जुड़े जानकारों की मानें तो अक्टूबर 2019 से सितंबर 2020 तक देश में 330 लाख बेल के उत्पादन की उम्मीद है.

जबकि, पिछली बार 312 लाख बेल का उत्पादन हुआ था. एक तथ्य यह भी है कि भारतीय कपड़ा उद्योग दुनिया में दूसरे स्थान पर है. वहीं, इस सीजन की शुरुआत में रेशमी कपास की बेलों की खासी मांग बने रहने की अपेक्षा थी.दूसरी तरफ, जैसे ही कोरोना के कारण आर्थिक मोर्चे पर भी पूरी दुनिया में जनवरी-फरवरी से तबाही शुरू हुई तो इसका बुरा असर घरेलू कपड़ा उद्योग पर पड़ा. जब धागे की मांग में गिरावट आई तो कपास की बेलों के निर्यात में अपनेआप भारी कमी आ गई.

घरेलू कपड़ा उद्योग को 320 से 325 लाख बेलों की जरूरत बताई जा रही थी

गत मार्च में लॉकडाउन की घोषणा से पहले घरेलू कपड़ा उद्योग को 320 से 325 लाख बेलों की जरूरत बताई जा रही थी. इसी तरह, कुछ विशेष किस्म के कपास (लंबे धागे वाली) के लिए 25 से 30 लाख बेलों को आयात करने के संकेत भी थे. बता दें कि कपास की कुछ किस्में हमारे देश में उत्पादित नहीं होती हैं.

लेकिन, लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही देश और विशेषकर महाराष्ट्र में कपड़ा उद्योग के पहिए थम गए. अचानक निर्यात रुक गया. इसका असर राज्य में विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तरी महाराष्ट्र क्षेत्रों के उन 18 जिलों पर पड़ा जहां कपास की पैदावार होती है.

राज्य सरकार द्वारा इन जिलों की 115 तहसीलों को कपास उत्पादक क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है. राज्य में लगभग चालीस लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास उगाई जाती है. लेकिन, भविष्य में कपास की मांग को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है. इसलिए, महाराष्ट्र में आवश्यकता से अधिक कपास की पैदावार भी एक समस्या का रूप ले चुकी है.

खामियाजा महाराष्ट्र में विदर्भ के इस कारोबार पर पड़ा

इसके समानातंर बांग्लादेश, वियतनाम और चीन के कपड़ा उद्योग की बात करें तो प्रमुख रूप से यह देश दुनिया में अपनी धाक बनाए हुए हैं. साथ ही, ये देश कपास की बेलों के प्रमुख आयातक भी हैं. लेकिन, कोरोना संकट के कारण इन देशों का कपड़ा उद्योग भी ठप हुआ. लिहाजा, कई महीनों से भारत और विशेषकर विदर्भ की कपास बेलों का निर्यात बंद रहा और इसका खामियाजा महाराष्ट्र में विदर्भ के इस कारोबार पर पड़ा. 

इसके बावजूद, इस क्षेत्र से जुड़े जानकार बताते हैं कि इस वर्ष घरेलू कपड़ा उद्योग में 250 से 254 लाख कपास बेलों का उपयोग किया जाएगा. एक अनुमान यह भी है कि सितंबर, 2020 तक 46 से 47 लाख कपास बेलों का निर्यात किया जा सकता था. वहीं, मई 2020 के तक देश ने 37.10 लाख कपास बेलों का निर्यात किया है.

घरेलू बाजार में मई के अंत तक 307.65 लाख बेल कपास का स्टॉक हुआ

एक अहम बात यह है कि वर्तमान में बांग्लादेश, वियतनाम और चीन के कपड़ा उद्योग में भारत के कपास की खासी मांग रहती है. इसकी मुख्य वजह भारतीय और विशेषकर विदर्भ का कपास दुनिया में सबसे सस्ता है. घरेलू बाजार में मई के अंत तक 307.65 लाख बेल कपास का स्टॉक हुआ है.

वहीं, इसकी आवक जारी है. इसमें 13 लाख कपास बेल विदेश से मंगाई गई हैं. कहा जा रहा है कि सितंबर 2020 के तक 15 लाख बेल का आयात किया जाएगा. लेकिन, आशंका है कि जैसे-जैसे देश में कपास की खपत उम्मीद से कम होती जाएगी, वैसे-वैसे लगभग 50 लाख कपास की गांठें बच जाएगी.पिछली बार भी देश में 32 लाख कपास बेल बची रह गई थीं. लिहाजा, इस बार आशंका है कि लगातार दो वर्षों तक कपास का स्टॉक होने से इसकी दर भी प्रभावित होगी.

सीसीआई से भी रिकॉर्ड खरीदारी

कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआइ) के एक अधिकारी ने बताया कि ने इस वर्ष देश में रिकॉर्ड 98 लाख कपास बेलों की खरीदारी की है. इसके पहले सीसीइ ने 2011-12 में देश भर से 90 लाख कपास बेलों की खरीदारी की थी. अर्थात इस वर्ष सीसीइ ने सबसे अधिक कपास बेलों की खरीदारी की है. लेकिन, वस्तुस्थिति यह है कि इस वर्ष कपास बाजार पर कोरोना की मार पड़ी है. यही वजह है कि सरकार पर भी कपास खरीदने का बोझ अपेक्षाकृत अधिक है. 

लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहकारी कताई कारखाना, नंदुरबार के अध्यक्ष दीपक पाटिल भी यह बात मानते हुए कहते हैं, 'इस साल देश में कपास की गांठों का स्टॉक 50 लाख तक होने का अनुमान है. पिछले सीजन में 32 लाख कपास गांठ बची थीं. बाजार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है. कारण, अधिशेष कपास अधिक है.'

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