मद्रास हाईकोर्ट ने पत्नी के साथ हिंसा करने वाले पति को घर से निकालने का आदेश दिया
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 16, 2022 09:17 PM2022-08-16T21:17:14+5:302022-08-16T22:02:53+5:30
मद्रास हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश देते हुए कहा कि पीड़िता का पति घर में हिंसा और गाली-गलौज के बाज नहीं आ रहा है तो "घरेलू शांति" सुनिश्चित करने के लिए उसे घर से निकाला जाता है।
चेन्नई: मद्रास हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि पति घर में पत्नी के साथ हिंसा करता हो और वो इस मामले में आदतन अपराधी हो तो उसे घर से बेदखल किया जा सकता है।
हाईकोर्ट में जस्टिस आरएन मंजुला की बेंच ने 11 अगस्त को इस मामले में आदेश देते हुए कहा कि आरोपी पति हिंसा और गाली-गलौज के बाज न आ रहा हो तो "घरेलू शांति" सुनिश्चित करने के लिए उसे घर से निकाला जा सकता है। जस्टिस मंजुला ने कहा, "यदि पति विवाद करने से नहीं मान रहा हो तो ऐसे में कोर्ट घरेलू शांति सुनिश्चित करने के लिए उसे घर से बाहर निकालने का आदेश देती है भले ही उसके पास रहने के लिए कोई अन्य मकान न हो।"
समाचार वेबसाइट द न्यूज मिनट के मुताबिक हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया है, उस मामले में दिया जिसमें लोअर कोर्ट ने हिंसा और गाली-गलौज करने वाले पति को को उसी घर में रहने की अनुमति दी थी, जिसमें उसकी पत्नी रहती थी लेकिन साथ ही कोर्ट ने पति को आदेश दिया था कि वो अपनी पत्नी परेशान नहीं करेगा।
पीड़ित महिला ने लोअर कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए अपील दायर की कि उसके पति को घर से बाहर निकाला जाए। महिला ने याचिका में हाईकोर्ट के समक्ष कहा कि उसका पति "अपने पेशेवर जीवन के साथ दांपत्य जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम नहीं है, जिस कारण वो दिनरात गाली-गलौज और मारपीट करते हुए अपमानजनक जीवन जीने पर मजबूर कर रहा है।
मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की जज मंजुला ने आदेश दिया कि पीड़िता के पति को दो हफ्ते के भीतर घर से निकला होगा। अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उसे घर से निकालने के लिए पुलिस भेजी जाएगी।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक जोड़ा शादी के असफल होने के बाद भी एक साथ रह सकता है, लेकिन यहां तो मामला ही पूरी तरह से अलग है। अगर एक पक्ष दूसरे के प्रति अनियंत्रित और आक्रामक रवैया अपनाता है तो ऐसी प्रतिकूल स्थिति में पीड़िता और उसके बच्चों को लगातार भय और असुरक्षा में जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जो कहीं से भी न्याय संगत नहीं माना जा सकता है।”
जस्टिस मंजुला ने अपने फैसले में कहा कि अदालतों को उन महिलाओं के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए जो घर में अपने पति की मौजूदगी से डरती हों। उन्होंने कहा कि अपमानजनक तरीके से पत्नी को पति के साथ एक ही घर में रहने देना और पति द्वारा घर के सदस्यों को परेशान न किये जाने की उम्मीद करना पूरी तरह से अव्यावहारिक है।