नक्सली हमले में मौत के मुंह से बाहर आया था जवान, 4 साल से पॉलीथीन में आंत रख कर भटकने को मजबूर
By पल्लवी कुमारी | Updated: March 25, 2018 01:22 IST2018-03-25T01:22:07+5:302018-03-25T01:22:07+5:30
2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली हमले में मनोज के साथ वाले 17 जवान शहीद हो गए थे।

नक्सली हमले में मौत के मुंह से बाहर आया था जवान, 4 साल से पॉलीथीन में आंत रख कर भटकने को मजबूर
भोपाल, 25 मार्च; मध्यप्रदेश के तरसमा गांव के रहने वाले सीआरपीएफ जवान मनोज तोमर की जिंदगी पिछले चार सालों से मौत से भी बदतर हो गई है। मनोज तोमर पिछले चार सालों से अपनी आंत को पॉलीथिन में लपेटकर जिंदगी जी रहे हैं। इस खबर की सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है।
असल में मार्च 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली मुठभेड़ में मनोज ने 7 गोलियां अपने पेट पर खाई थी। पेट में इतनी गोलियां लगने से मनोज की जान तो बन गई लेकिन गंभीर घायल होने की स्थिति में आंत को पेट में रखने का ऑपरेशन उस समय संभव नहीं था, इसलिए आंत का कुछ हिस्सा बाहर ही रह गया। तब से लेकर आजतक वह आंत का हिस्सा बाहर ही है।
मनोज की इस बीमारी का इलाज अब करवाया जा सकता है लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से मनोज इसका इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। यही नहीं, गोली लगने से उनकी एक आंख की रोशनी भी जा चुकी है। मनोज आय दिन इलाज और अन्य सुविधाओं के लिये मंत्रियों व सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटते हैं लेकिन उन्हें कहीं से कोई मदद की आस नहीं दिख रही है।
अगर सीआरपीएफ के नियम की बात करें तो जवानों का केवल अनुबंधित अस्पतालों में ही इलाज कराया जा सकता है। किसी अन्य अस्पताल में इलाज का खर्च जवान को ही उठाना पड़ता है। बता दें मार्च 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली हमले में मनोज के साथ वाले 17 जवान शहीद हो गए थे। उस मुठभेड़ में से एक मनोज ही बच पाया था।
मनोज का कहना है कि उनको सीआरपीएफ से कोई शिकायत नहीं है। उन्हें सरकार और उसके नियमों से दिक्कत है। तोमर का कहना है कि सीआरपीएफ मेरा इलाज अनुबंधित रायपुर के नारायणा अस्पताल में ही करा सकती है। सरकार चाहे तो उनका इलाज में एम्स में करवाने का प्रबंध कर सकती है। मनोज का कहना है कि उन्हें इस हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से पांच लाख रुपए देने का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज तक उन्हें मदद नहीं मिली।

