उत्तर प्रदेश में दलित नेता चंद्रशेखर आजाद रावण से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की मुलाकात ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा संदेश दिया है। अपने गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखने पर कड़ा रूख रखने वाली बसपा सुप्रीमों मायावती के लिए यह बड़ा राजनैतिक संकेत माना जा रहा है। पश्चिमी उप्र में चंद्रशेखर आजाद रावण ने हाल के समय में दलितों के बीच अपनी तेजी से उपस्थिति व स्वीकार्यता को बढ़ाया है। ऐसे में उसके साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की मुलाकात को उप्र में कांग्रेस की ओर से बसपा की राजनैतिक काट को तैयार करना माना जा रहा है। संभवत: बसपा भी इस संकेत को समझ रही है। यही वजह है कि बसपा के अंदर इस मुलाकात को लेकर काफी असंतोष होने की बात भी सामने आ रही है। हालांकि बसपा सुप्रीमोे मायावती ने इस मुलाकात पर अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
यह माना जा रहा है कि सपा—बसपा गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखने में मायावती की बड़ी भूमिका रही है। इससे कांग्रेस काफी नाराज थी। यही वजह है कि उसने चंद्रशेखर के बहाने बसपा को राजनैतिक मात देने का निश्चय किया है। चंद्रशेखर आजाद रावण यह कहते रहे हैं कि वह बहुजन समाज में पैदा हुए हैं और उसी में मरेंगे। जिससे साफ है कि उनका लक्ष्य स्पष्ट रूप से वही बहुजन समाज है जिसकी राजनीति मायावती करती रही है। इतना ही नहीं, चंद्रशेखर आजाद रावण अपने नेता के रूप में भी कांशीराम का ही नाम लेते हैं। वह कहते हैं कि वह उनके आदर्श भी हैं। जिससे बसपा को और अधिक असहजता होती रही है। संभवत: यही वजह है कि जब चंद्रशेखर आजाद रावण को लेकर विगत में बसपा सुप्रीमो से सवाल किया गया कि जब वह बहुजन समाज की बात करते हैं, अपने आदर्श के रूप में कांशीराम को स्वीकारते हैं तो उन्हें पार्टी में क्यों नहीं लिया जाता है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि कई लोग लाभ लेने के लिए आगे आना चाहते हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने चंद्रशेखर आजाद रावण से मुलाकात कर यह संकेत भी दे दिया है कि वह अपने यहां पर युवा और खासकर दलित युवा नेताओं की फौज तैयार करने में भी जुटी हुई है। उप्र में उसे यह कमी चंद्रशेखर आजाद रावण के रूप में खत्म होती दिख रही है। इससे न केवल कांग्रेस को उप्र में दलित वोटों को बढ़ाने में सफलता मिलेगी बल्कि उसे एक मजबूत जनाधार वाला दलित वक्ता भी मिल जाएगा। दलित और पिछड़ों में प्रभाव बढ़ाने का संकेत कांग्रेस ने उस समय भी दिया था जब उसने गुजरात में जिग्नेश मेवाणी, हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर को अपने साथ जोड़ा था। उप्र में यह इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि मायावती फिलहाल तक यहां पर निर्विवाद रूप से दलित नेता बनी हुई हैं। ऐसे में चंद्रशेखर के रूप में कांग्रेस को वोट के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उप्र में एक बड़ा दलित चेहरा मिल सकता है।