लोकसभा चुनाव: पीलीभीत में इस बार वरुण गांधी के लिए कठिन है लड़ाई! जानिए क्या कहता है समीकरण

By विनीत कुमार | Published: April 19, 2019 10:53 AM2019-04-19T10:53:02+5:302019-04-19T10:53:02+5:30

वरुण गांधी पीलीभीत से 2009 में सांसद रह चुके हैं ऐसे में वह इस जगह से खूब वाकिफ हैं लेकिन इसके बावजूद उनके सामने चुनौती कम नहीं है।

lok sabha election 2019 uttar pradesh Pilibhit seat profile varun gandhi candidate from bjp | लोकसभा चुनाव: पीलीभीत में इस बार वरुण गांधी के लिए कठिन है लड़ाई! जानिए क्या कहता है समीकरण

मेनका गांधी और वरुण गांधी (फाइल फोटो)

Highlightsमेनका गांधी 6 बार पीलीभीत से सांसद रही हैं, इस बार वरुण यहां से मैदान मेंजाति के समीकरण ने मुश्किल की पीलीभीत में वरुण गांधी की राह!वरुण 2009 में पीलीभीत से सांसद रह चुके हैं, 2014 में सुलतानपुर से पहुंचे थे लोकसभा

पीलीभीत में 1989 से लेकर अब तक सात बार लोकसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी या उनके बेटे वरुण गांधी ही विजयी रहे हैं। दिलचस्प ये भी है कि लगभग हर चुनाव में 50 फीसदी से ज्यादा वोट इन्हें मिले हैं। हालांकि, इस बार 23 अप्रैल को जब यहां वोटिंग होगी तो वरुण के लिए मुकाबला कठिन हो सकता है। मेनका पीलीभीत से 6 बार सांसद चुनी जा चुकी हैं। इस बार मेनका अपने बेटे की सीट सुलतानपुर से चुनावी मैदान में हैं जबकि बेटे वरुण पीलीभीत से चुनाव लड़ रहे हैं। 

वरुण पीलीभीत से 2009 में सांसद रह चुके हैं ऐसे में वह इस जगह से खूब वाकिफ हैं लेकिन इसके बावजूद उनके सामने चुनौती कम नहीं है। वरुण का सामना यहां समाजवादी पार्टी के हेमराज वर्मा से है जो बतौर महागठबंधन उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस ने यहां से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है हालांकि, वह अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा के 'अपना दल' के उम्मीदवार को अपना समर्थन जरूर दे रही है। वैसे, जानकार यही मानते हैं कि पीलीभीत में असली लड़ाई वरुण गांधी और हेमराज वर्मा के ही बीच है।

पीलीभीत में जाति का समीकरण

हेमराज लोध (किसान) समुदाय से आते हैं और माना जा रहा है कि वह इस वोट में सेंध लगा सकते हैं। इससे पहले लोध (राजपूर और किसान) यहां बीजेपी के अहम वोटर माने जाते रहे हैं। इसमे कल्याण सिंह का भी एक फैक्टर शामिल है। कल्याण सिंह अभी राजस्थान के राज्यपाल हैं। इसके अलावा पीलीभीत में मुस्लिम वोटरों की संख्या भी करीब 5 लाख है। वरुण के लिए मुस्लिम वोट हासिल करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। पीलीभीत में जाति समीकरण की बात करें तो करीब 3 लाख वोटर यहां लोध समाज से हैं। इसके अलावा 2 लाख अनुसूचित जाति और करीब 50 हजार यादव वोट हैं। इसके अलावा यहां करीब दो लाख कुर्मी (गंगवार) वोटर भी हैं।

पीलीभीत में बीजेपी की पकड़

पीलीभीत में 17.50 लाख वोटर हैं। यहां फिलहाल लोकसभा सीट के साथ ही सत्तारूढ़ बीजेपी का ही पांच विधानसभा क्षेत्र बहेड़ी, पीलीभीत, बरखेड़ा, बीसलपुर और पूरनपुर (एससी) पर भी कब्जा है। पिछली बार लोकसभा चुनाव-2014 में मेनका 3.07 लाख वोट से जीत हासिल करने में कामयाब रही थीं। वहीं, 2009 में वरुण ने जब चुनाव लड़ा था तो उनकी जीत का अंतर 2.81 लाख रहा था। मेनका ने 1989 और 1996 में यहां से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था। इसके बाद 1998 और 1999 में उन्होंने बतौर निर्दलीय और 2004 में बीजेपी के टिकट पर यहां से जीत हासिल की। हालांकि, इस बार 2019 में मां मेनका और बेटे वरुण ने सीट बदल ली।

बीजेपी से ही मिल रही है वरुण को चुनौती?

टिकटों के बंटवारे से पहले पिछले महीने 17 मार्च को यहां से बीजेपी के पांच विधायकों में से तीन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह मांग की थी कि बाहरी उम्मीदवारों (मेनका और वरुण) को छोड़ पार्टी स्थानीय नेताओं को मौका दे। हालांकि बाद में पीलीभीत से विधायक संजय सिंह गंगवार ने कहा कि सब ठीक है और पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र से पांचों विधायक वरुण गांधी की जीत के लिए काम कर रहे हैं।

महागठबंधन के उम्मीदवार हेमराज वर्मा भी अपने कैंपेन में लगातार 'बाहरी' वाले मुद्दे को उछाल रहे हैं। इन सबके बीच वरुण के 2009 के उस भाषण की भी खूब चर्चा हो रही है जब उन्होंने मुस्लिम समुदाय को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। हालांकि, इन सबके बीच वरुण को उम्मीद है कि पीलीभीत से इस बार भी वे संसद पहुंचने में कामयाब रहेंगे।

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