सबरीमाला विवाद: बीजेपी की बोई चुनावी फसल काट ले जाएंगे राहुल गांधी!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 11, 2019 06:17 PM2019-04-11T18:17:44+5:302019-04-11T18:28:06+5:30
Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस को डर था कि मंदिर विवाद के जरिये कहीं हिंदुओं की पूरी सहानुभूति अकेले बीजेपी ही न ले जाए इसलिए वह भी इसमें कूद गई। कांग्रेस के इस कदम से अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता उससे छिड़कने लगे थे। चूंकि कांग्रेस का तरीका गैर-हिंसक था इसलिए वह फिर से अल्पसंख्यकों का रुझान अपनी ओर खींचने में सफल हो रही है।
Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव के लिए केरल की सभी 20 सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान होगा। 2018 में सबरीमाला मंदिर विवाद चरम पर रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिलने के बाद भी मंदिर प्रशासन इसका विरोध कर रहा और इसमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने उसका समर्थन किया। जानकारों ने कहा कि मंदिर विवाद के जरिये बीजेपी राज्य में दक्षिणपंथी विचारधारा को बल देकर और हिंदुओं के अपने पाले में लेकर अपनी जमीन तैयार करने की कोशिश में लगी है। बीजेपी ने इस बार सबरीमाला मंदिर वाले मुद्दे को अपने संकल्प पत्र में भी जगह दी है।
बीजेपी की कोशिशों के चलते ऐसा लग रहा था कि सबरीमाला के जरिये जो फसल उसने तैयार की, उसे वह काट लेगी लेकिन वायनाड से राहुल गांधी की उम्मीदवारी के बाद अब बात बदली सी लग रही है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक राहुल गांधी के वायनाड से पर्चा भरने से एक तो एलडीएफ और बीजेपी की ओर खिसकने वाला वोट बैंक वहीं थम गया है और दूसरा यह के केरल की आम जनता के बीच यह संदेश गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राष्ट्रीय पार्टी के नेता है और उदारवादी है जो अकेले मोदी सरकार से लोहा ले रहे हैं और साथ ही स्थानीय संस्कृति और मूल्यों को संरक्षित रखने में योगदान दे सकते हैं। इसके पीछे वजह है कि राहुल अक्सर राष्ट्रवाद से इतर क्षेत्रीय अस्मिता को लेकर जोर देते रहे हैं और बीजेपी से उसे खतरा बताते रहे हैं। कुलमिलाकर जनता को राहुल गांधी में एक राष्ट्रीय स्तर का प्रतिनिधि नजर आ रहा है।
हालांकि, बीजेपी के अलावा कांग्रेस ने भी सबरीमाला मंदिर विवाद में महिलाओं के प्रवेश का विरोध किया था, जबकि एलडीएफ नीत राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने की पूरी कोशिश की थी। कांग्रेस को डर था कि मंदिर विवाद के जरिये कहीं हिंदुओं की पूरी सहानुभूति अकेले बीजेपी ही न ले जाए इसलिए वह भी इसमें कूद गई। कांग्रेस के इस कदम से अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता उससे छिड़कने लगे थे। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चूंकि कांग्रेस का तरीका गैर-हिंसक था इसलिए वह फिर से अल्पसंख्यकों का रुझान अपनी ओर खींचने में सफल हो रही है।
वहीं, इस सबसे नुकसान सीपीएम समर्थित एलडीएफ को हो रहा है। एलडीएफ को लगा था कि कांग्रेस के भी सबरीमाला विवाद में शामिल होने से अल्पसंख्यक वोट उसकी ओर खिसक आएगा लेकिन राहुल गांधी ने उम्मीदवार बनकर एक साथ कई शिकार कर दिए हैं।