लोकसभा चुनाव 2019: मोदी सरकार की 5 बड़ी योजनाओं का रियलिटी चेक
By विकास कुमार | Updated: March 19, 2019 16:30 IST2019-03-19T16:13:07+5:302019-03-19T16:30:47+5:30
पीएम मोदी के महत्वकांक्षी योजनाओं में मुद्रा योजना, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया शामिल थी. लेकिन इन योजनाओं में उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिले.

लोकसभा चुनाव 2019: मोदी सरकार की 5 बड़ी योजनाओं का रियलिटी चेक
लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. ऐसे में तमाम पार्टियां अपने मुद्दों को लेकर जनता के बीच में पहुंच रही है. पीएम मोदी और उनके कैबिनेट के बाकी साथी खुद को देश का चौकीदार बताते हुए कैंपेन चला रहे हैं, तो वहीं राहुल गांधी रोज़गार, राफेल और किसानों के मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष जिन मुद्दों पर नरेन्द्र मोदी को असफल बताने का प्रयास कर रहे हैं, दरअसल वो मुद्दें भारतीय राजनीति की सामूहिक विफलता के सबसे ज्वलंत उदाहरण रहे हैं. सरकारें बदलतीं रहीं लेकिन किसान और नौजवान का मुद्दा हर चुनाव में प्रासंगिक बना रहा क्योंकि इनकी समस्याओं का कभी भी दूरगामी समाधान नहीं निकाला गया.
नरेन्द्र मोदी ने 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रति वर्ष 2 करोड़ रोज़गार पैदा करने का वादा किया था. बीजेपी की सरकार आने के बाद पीएम मोदी ने एक बाद एक कई योजनाएं लांच की. रोज़गार बढ़ाने के मकसद से 'मेक इन इंडिया' लांच की गई. छोटे और मंझोले उद्योगों को प्रोत्साहित करने के मकसद से मुद्रा योजना लांच किया गया. ग्रामीण महिलाओं की हालत को सुधारने के मकसद से उज्ज्वला योजना लांच की गई थी.
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान राष्ट्रवाद और राफ़ेल पर मचे तकरार के बीच इन मुद्दों की सुध शायद ही कोई ले रहा है. विपक्ष 'महागठबंधन' के राजनीतिक समीकरणों और हर स्थिति में चुनाव जीतने के मकसद के बीच उलझा हुआ दिख रहा है. पीएम खुद अपनी हर रैली में अपनी योजनाओं का बखान कर रहे हैं ऐसे में मोदी सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं का रियलिटी चेक जरूरी हो जाता है.
मेक इन इंडिया (Make in india)- क्या था मकसद
- मेक इन इंडिया प्रोग्राम लांच करने के पीछे मुख्य रूप से दो महवपूर्ण वजहें थीं
- देश की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 16 प्रतिशत था जिसे सरकार 2022 तक 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
- मोदी सरकार ने इस योजना के जरिये 10 करोड़ रोज़गार पैदा करने का लक्ष्य तय किया था.
क्या है धरातल पर हकीक़त
- नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से पहले मई 2014 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत थी जो मई 2017 में गिरकर 2.7 प्रतिशत हो गई थी.
- CMIE के मुताबिक, 2016 में नोटबंदी के बाद 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन गया.
- CMIE के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 1 करोड़ 10 लाख लोगों की नौकरी चली गई.
- CMIE की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2019 में देश में बेरोज़गारी दर 7.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है. नोटबंदी से पहले देश में लेबर पार्टिसिपेशन रेट 47 फीसदी था जो अब 42.7 फीसदी हो गया है. इसका मतलब नौकरी मानने वाले लोगों की सख्या में कमी आई है और यह अर्थव्यवस्था के लिए कहीं से भी शुभ संकेत नहीं है.
- बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार में NSSO की छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में भारत की बेरोज़गारी दर पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा थी.
'मेक इन इंडिया' (MAKE IN INDIA) की सफलता में कौन सी वजहें बनी अवरोध
- नोटबंदी को मेक इंडिया के लिए सबसे बड़ा धक्का बताया गया. क्योंकि नोटबंदी से छोटे और मझोले उद्योगों की कमर टूट गई जिससे देश के MSME सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा.
- मार्केट से अचानक 85 प्रतिशत करेंसी वापस लेने के कारण लोगों ने पैसे खर्च करने कम कर दिए जिसके कारण डिमांड और सप्लाई के चेन पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके कारण औद्योगिक उत्पादन कुछ वक्त के लिए ठप सा पड़ गया.
मोदी सरकार ने कुछ इनिशिएटिव लिए जिसका असर दिखा
- मोदी सरकार ने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए नियमों का सरलीकरण किया और इसके साथ ही निवेश के लिए बेहतर माहौल तैयार करने के लिए टैक्स स्ट्रक्चर को सरल किया, बिजली की निर्बाध आपूर्ति को आश्वस्त किया जिसकी बदौलत वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी होने वाले इज ऑफ डूइंग बिज़नेस के रैंकिंग में भारत पिछले 2 वर्षों में 131 वें स्थान से चढ़ कर 77 वें स्थान पर पहुंच गया.
मोदी सरकार में आये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (source- dipp)
- 2014- 36.05 अरब डॉलर
-2015- 45.15 अरब डॉलर
2016- 55.56 अरब डॉलर
2017- 60.08 अरब डॉलर
2018- 48.20 अरब डॉलर
- 'मेक इन इंडिया' के कारण देश के ऑटोमोबिल सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर और टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है. सैमसंग ने बीते साल ही नॉएडा में विश्व का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट खोला है तो वही चीन की कंपनी श्याओमी ने आंध्रप्रदेश को अपना गढ़ बनाया है. कंपनी ने हैदराबाद में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बनाया है. यहां काम करने वाले क्रमचारियों में 90 प्रतिशत महिलाओं की संख्या है जो लगभग 5000 है.
- डिफेंस सेक्टर में कई देश भारत में मेक इन इंडिया के तहत हथियारों का निर्माण कर रहे हैं. राफ़ेल विमान और F-21 इनमें महत्त्वपूर्ण है. अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने 118 F-21 फाइटर जेट का करार भारत सरकार के साथ किया है और यह डील कूल 18 बिलियन डॉलर की है.
मुद्रा योजना - मुद्रा योजना 8 अप्रैल 2015 को लांच किया गया था. छोटे और मंझोले उद्योग को उबारने के मकसद से यह योजना मोदी सरकार का ब्रह्मास्त्र बताया जा रहा था. पिछले 5 वर्षों में विपक्ष ने जब भी रोज़गार के मुद्दों पर सरकार को घेरा मोदी कैबिनेट के मंत्रियों ने मुद्रा योजना का ही सहारा लिया.
इस योजना के तहत तीन श्रेणियों में लोन का वितरण किया जाता है.
शिशु- 50,000
किशोर - 50 हजार से 5 लाख
तरुण - 5 लाख से 10 लाख
पीयूष गोयल ने 2019-20 का बजट पेश करते हुए कहा था कि मुद्रा योजना के तहत अब तक 7.23 लाख करोड़ रुपये के 15.56 करो़ड़ ऋण स्वीकृत किए गए हैं. लेकिन इस योजना की सफलता को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. हाल ही में हुए आरटीआई खुलासे के मुताबिक, मोदी सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना के तहत 14 हजार करोड़ से ज्यादा का एनपीए हो चुका है. इसका मतलब लोगों ने बैंक से लोन लेकर उसे चुकाना बंद कर दिया है.
हाल ही में NSSO की लीक रिपोर्ट जब बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार में छपी तो सरकार को जवाब देना मुश्किल हो रहा था. ऐसे में सरकार ने मुद्रा योजना के जरिये पैदा हुए रोज़गार का आंकड़ा जुटाने का फैसला किया. नीति आयोग से सीईओ अमिताभ कांत ने बाकायदा लेबर मिनिस्ट्री को इसके आंकड़े जुटाने को कहा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार अब मुद्रा योजना से पैदा हुए रोज़गार के आंकड़े को 2 महीने बाद जारी करेगी और अभी के लिए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
मुद्रा योजना की असफलता का बड़ा कारण नोटबंदी को बताया जाता है. नोटबंदी के बाद सबसे ज्यादा असर छोटे और मंझोले उद्योगों पर ही पड़ा था. लोगों की खरीद क्षमता पर सीधे असर होने के कारण मुद्रा योजना के तहत खड़े हुए छोटे दुकानदारों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा. खैर, सरकार इस योजना के सफल होने का दावा करती है. एक बड़ी संख्या में लोगों को इस योजना का फायदा मिला भी है लेकिन आंकड़े जारी नहीं होने के कारण इस योजना पर शक के बादल गहराते जा रहे हैं.
देश के निर्यात में एमएसएमई सेक्टर का योगदान 40 प्रतिशत है. नोटबंदी और उसके तुरंत बाद लागू किए गए जीएसटी के कारण छोटे उद्योग चरमरा गए. मुद्रा योजना की असफलता का एक बड़ा कारण नोटबंदी और बिना तैयारी के लागू की गई जीएसटी को बताया जाता है.
स्टार्टअप इंडिया - देश में स्व-रोज़गार के मकसद को पूरा करने के लिए स्टार्टअप इंडिया लांच की गई थी. मैकेंजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत पूरी दुनिया में नए स्टार्टअप खुलने के मामले में दूसरे स्थान पर है. बैंगलोर बहुत तेजी से सिलिकॉन वैली के मुकाबले खड़ा हो रहा है.
मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में स्टार्टअप इंडिया के लिए 28 करोड़ का बजट निर्धारित किया था. लेकिन इस साल पीयूष गोयल द्वारा पेश किए गए अंतरिम बजट में यह घटा कर 25 करोड़ रुपये कर दिया गया.
- स्टार्टअप इंडिया जनवरी 2016 में लांच की गई थी. अभी तक सरकार ने 182 स्टार्टअपस को फंड मुहैया करवाया है.
- स्टार्टअप इंडिया योजना के तहत रजिस्टर्ड किसी भी कंपनी को पहले 3 साल तक कोई भी टैक्स नहीं देना होता है.
- पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश करते हुए स्टार्टअप में होने वाले इन्वेस्टमेंट पर लगने वाले एंजेल टैक्स की सीमा को 10 करोड़ से बढ़ा कर 25 करोड़ रुपये कर दिया था.
- इसके पहले 10 करोड़ के वार्षिक निवेश पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था लेकिन इस वित्त वर्ष से इसे 25 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
स्किल इंडिया - स्किल इंडिया को लेकर खुद पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई थी. भारत एक बहुत बड़ा लेबर मार्केट है लेकिन अकुशल श्रमिकों की संख्या ज्यादा होने के कारण इसका फायदा देश को नहीं मिला. मोदी सरकार ने स्किल इंडिया योजना के जरिये अकुशल श्रमिकों को ट्रेनिंग देने की योजना सरकार ने बनायी. और 2020 तक 40 करोड़ लोगों को इंडस्ट्री की मांग के मुताबिक ट्रेनिंग मुहैया करवाया जायेगा.
स्किल इंडिया का प्रभार पहले राजीव प्रताप रुड़ी को दिया गया था लेकिन कोई ठोस सफलता नहीं मिलने के कारण उनसे यह प्रभार वापस ले लिया गया. कई मीडिया रिपोर्टों में स्किल इंडिया को लेकर फर्जीवाड़ा सामने आया है जहां कागजों पर व्यक्ति को ट्रेनिंग देने की बात लिख दी गई है लेकिन वास्तविकता में कभी प्रशिक्षण नहीं मिला. केंद्र सरकार ने इसके तहत निजी कंपनियों से करार किया था. केंद्र सरकार की साझेदार एजेंसियां 10000 रुपये की स्वीकृति लागत पर 75 प्रतिशत सब्सिडी की हकदार हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना के तहत कागजों पर फर्जीवाड़ा का एक संगठित नेटवर्क चल रहा है. ऐसे लोगों के नाम पर सरकार से सब्सिडी लेने का खेल चल रहा है जिन्होंने कभी भी इस योजना के तहत प्रशिक्षण लिया ही नहीं है. सरकार ने स्किल इंडिया के तहत 10 करोड़ लोगों को ट्रेनिंग मुहैया करवाने का दावा किया है लेकिन जॉब मार्केट में अभी भी स्किल्ड लेबर की कमी होने के कारण सरकार के दावे स्वतः खारिज हो जा रहे हैं.
स्मार्ट सिटी योजना- 2015 में लांच की गई इस योजना का मकसद 5 वर्ष के भीतर 100 स्मार्ट सिटी का निर्माण करना था. बाद में इस योजना की डेडलाइन आगे बढ़ा दी गई. क्योंकि सरकार यह एक साथ तय नहीं कर पायी कि किन शहरों को स्मार्ट बनाना है. भारत की 31 प्रतिशत आबादी आज शहरों में रहती है. गांवों से लोग बड़ी संख्या में शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं. ऐसे में यह योजना शहरों के संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से लोगों की जीवन-शैली में सुधार लाने के मकसद से लायी गई थी.
सरकार का दावा था कि इन 100 शहरों में न सिर्फ़ बिजली और ऊर्जा की कमी पूरी करने वाली इमारतें होंगी बल्कि सीवेज के पानी, कूड़े और ट्रैफ़िक जैसी तमाम बुनियादी समस्याओं से निबटने के लिए नई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल भी होगा. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा साइंस जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिये भारतीय शहरों की जीवन शैली को हाईजेनिक बनाना मोदी सरकार की दूरगामी दृष्टिकोण की परिचायक तो बनी लेकिन इस योजना के तहत आज भी 70 प्रतिशत से ज्यादा काम या तो अधूरे हैं या शुरू ही नहीं हुए हैं.
2018 में 100 शहरों की सूचि सामने आने के बाद इस योजना का लक्ष्य अब 2023 तक बढ़ा दिया गया है. इन योजनाओं में केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी निवेश करेगी और 20 प्रतिशत निवेश पीपीपी मॉडल के जरिये जुटाया जायेगा.
लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में सरकार ने बताया कि राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को अभी तक 15, 536 करोड़ रूपया इस योजना के जरिये आवंटित किया जा चुका है. 25 जनवरी 2019 तक 1 लाख 5 हजार करोड़ रुपये की 2748 प्रोजेक्ट्स का आवंटन किया गया है. 62,295 करोड़ के 2032 प्रोजेक्ट्स का काम या तो चल रहा है या पूरा किया जा चका है.
साल 2015-2019 के बीच स्मार्ट सिटीज़ मिशन के लिए 166 अरब रुपये आवंटित किए गए थे. लेकिन इस साल जनवरी में सरकार ने ख़ुद स्वीकार किया कि योजना पर सिर्फ 35.6 अरब रुपये ख़र्च हुए हैं जो कूल बजट का सिर्फ 21% है. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या सरकार ने नए प्रोजेक्ट्स में पैसे ख़र्च किए हैं या पुरानी चीजों को ही दुरूस्त किया गया है.
संसदीय समिति की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जो एजेंसियां इन योजनाओं को लागू करने के लिए जिम्मेवार हैं उनके बीच में बेहतर तालमेल नहो होने के कारण स्मार्ट सिटी मिशन का असर लोगों को ग्राउंड लेवल पर नहीं दिख रहा है.

