गोरखपुर में हजारों बच्चों की मौत का कारण बना इन्सैफेलाइटिस चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है?

By भाषा | Updated: May 5, 2019 16:04 IST2019-05-05T16:03:58+5:302019-05-05T16:04:34+5:30

पूर्वांचल के जिलों यह बीमारी पिछले कई वर्षों से एक त्रासदी रही है। 1978 में इस बीमारी की पहली बार पहचान हुई। गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर और कुछ अन्य जिलों में हर साल इस बीमारी के कारण कई बच्चों की मौत होती रही है। 

LOK SABHA ELECTION 2019: Inseflitis is not a election issue in Gorakhpur | गोरखपुर में हजारों बच्चों की मौत का कारण बना इन्सैफेलाइटिस चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है?

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Highlightsसपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार राम भुआल निषाद का दावा है कि विपक्ष इस मुद्दे को उठा रहा है।भाजपा उम्मीदवार रवि किशन का कहना है कि इस चुनाव में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है क्योंकि इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है।

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में करीब दो साल पहले कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से कई बच्चों की मौत के बाद इन्सैफेलाइटिस को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर खूब बहस हुई थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा प्रमुख राजनीतिक दलों के विमर्श में हाशिए पर दिखाई पड़ता है। यद्यपि भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन कई बार इन्सैफेलाइटिस के मुद्दे पर कुछ हद तक बात कर रहे हैं लेकिन उनकी बात आरोप-प्रत्यारोप तक ही केंद्रित है।

भाजपा उम्मीदवार रवि किशन का कहना है कि इस चुनाव में इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है क्योंकि इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। उन्होंने ''पीटीआई-भाषा'' से कहा, ''पहले इन्सैफेलाइटिस के कई मामले आते थे और बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब इस पर बहुत तक काबू पा लिया गया है।''

दूसरी तरफ, सपा-बसपा गठबंधन उम्मीदवार राम भुआल निषाद का दावा है कि विपक्ष इस मुद्दे को उठा रहा है, लेकिन सरकार इन्सैफेलाइटिस से जुड़े आंकड़े छिपा रही है। उन्होंने कहा, ''यह सच है कि जिस तरह की बहस इन्सैफेलाइटिस के मुद्दे पर होनी चाहिए, वह नहीं हो पा रही है क्योंकि यह इस बीमारी से जुड़े आंकड़ों को दबाया जा रहा है।

हम जनसभाओं में इस मुद्दे को उठा रहे हैं।’’ इस जानलेवा बीमारी के बारे में कई खबरें लिख चुके स्थानीय पत्रकार मनोज कुमार सिंह कहते हैं, ''निश्चित तौर पर इन्सैफेलाइटिस का मुद्दा राजनीतिक दलों के एजेंडे में बहुत ही नीचे है। इसकी वजह साफ है कि सत्तापक्ष इस पर बात करके परेशानी मोल नहीं लेना चाहता तो विपक्ष के पास सामने रखने के लिए कोई सटीक आंकड़ा नहीं है।''

उन्होंने कहा, ''एक वजह और भी है कि इन्सैफेलाइटिस के मामले फिलहाल कम हैं। ये बरसात के मौसम में ज्यादा होते हैं। इस पर चर्चा हमेशा अगस्त और सितंबर के महीने में होती है।'' आंकड़े छिपाने के आरोप को भाजपा उम्मीदवार रवि किशन ने खारिज कर दिया।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य गणेश कुमार ने विपक्ष के आरोप के बारे में कुछ भी कहने से इनकार किया। मेडिकल कॉलेज में इन्सैफेलाइटिस से बीमार बच्चे का उपचार करा रहे एक व्यक्ति ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, ''इस जानलेवा बीमारी का स्थायी समाधान तो होना ही चाहिए। सच कहूं तो अब तक किसी भी सरकार ने इस पर पूरी गंभीरता से काम नहीं किया है।''

गौरतलब है कि पूर्वांचल के जिलों यह बीमारी पिछले कई वर्षों से एक त्रासदी रही है। 1978 में इस बीमारी की पहली बार पहचान हुई। गोरखपुर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्घार्थनगर, संत कबीरनगर और कुछ अन्य जिलों में हर साल इस बीमारी के कारण कई बच्चों की मौत होती रही है। 

Web Title: LOK SABHA ELECTION 2019: Inseflitis is not a election issue in Gorakhpur