क्या दिल्ली को मिल सकता है पूर्ण राज्य का दर्जा? जानें आम आदमी पार्टी के दावे की सच्चाई
By निखिल वर्मा | Published: May 9, 2019 03:31 PM2019-05-09T15:31:49+5:302019-05-09T15:31:49+5:30
राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली की कुछ व्यवस्थाएं और सुरक्षा से जुड़े पहलू केंद्र सरकार की जिम्मेदारी हैं।संविधान का अनुच्छेद 239एए उसे इन मसलों पर नियंत्रण का कानूनी अधिकार देता है। कानूनी रूप से दिल्ली हाई कोर्ट यह स्पष्ट कर चुका है कि यहां के प्रशासन का मुखिया, उपराज्यपाल ही है।
लोकसभा चुनाव 2019 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी पूर्ण राज्य के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। आप दिल्ली के लोगों से कह रही है कि सभी सातों सीट पर जीत हासिल करने पार्टी पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाएगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को कहा है कि पीएम पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी या किसी और का समर्थन तभी करेगी जब वे पूर्ण राज्य की मांग को आगे बढ़ाएंगे।
दिल्ली की वर्तमान स्थिति
राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली की कुछ व्यवस्थाएं और सुरक्षा से जुड़े पहलू केंद्र सरकार की जिम्मेदारी हैं। संविधान का अनुच्छेद 239एए उसे इन मसलों पर नियंत्रण का कानूनी अधिकार देता है। कानूनी रूप से दिल्ली हाई कोर्ट यह स्पष्ट कर चुका है कि यहां के प्रशासन का मुखिया, उपराज्यपाल है।
2003 में संसद पेश हुआ था विधेयक
भारतीय जनता पार्टी के पुरानी मांग के बावजूद मोदी सरकार ने दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे के मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं है। दिल्ली विधानसभा 2013 में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में पूर्ण राज्य का वादा किया था। हालांकि 2003 में अटल सरकार ने लोक सभा में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने से जुड़ा एक विधेयक पेश किया था।
उस समय एक संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि केंद्र सरकार नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का प्रशासनिक कामकाज देखे और बाकी सभी क्षेत्रों में दिल्ली विधानसभा को शासन-प्रशासन के सभी अधिकार दे दिए जाएं।
क्या है कांग्रेस का रुख
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संसद में केंद्र सरकार को कानून लाना होगा और उस कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद दिल्ली को पूर्ण राज्य बन सकता है। जून 2018 में केजरीवाल सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर पूर्ण राज्य के मांग का प्रस्ताव पारित किया था।
कांग्रेस के 2013 के घोषणा पत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का वादा किया गया था। लेकिन इस बार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस मुद्दे के समर्थन में नहीं है। पार्टी ने घोषणा पत्र में भी इस बात को शामिल नहीं किया है। लोकमत से विशेष बातचीत में पश्चिमी दिल्ली से कांग्रेस प्रत्याशी महाबल मिश्रा का कहना है कि आप का वादा झूठा है, दिल्ली को पूर्ण राज्य मिल ही नहीं सकता।
अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी तो!
राज्यसभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी लोकमत से कहते हैं, कांग्रेस इस बात के विरुद्ध नहीं है कि दिल्ली में कुछ प्रावधान बदले जाए, ज्यादा स्वायत्ता दी जाए। कांग्रेस इस बात को भी मानती है कि देश की राजधानी में हर शक्तियां राज्य सरकार को नहीं मिल सकती। हां, कुछ शक्तियां जहां दिक्कतें आ रही, वो देखा जा सकता है।
स्वायत्ता की सीमा क्या होगी?
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के मसौदे के लिए लंबी चर्चा हो चुकी है जिसमें कुछ मुख्य बातें निकलकर सामने आई हैं।
-पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने के बावजूद भी दिल्ली पुलिस और एनडीएमसी जो कि वीवीआईपी इलाका है उसे केंद्र सरकार के अधीन रखा जाए।
-जमीन यानी डीडीए, नगर निगम और रेवेन्यू विभाग को दिल्ली की चुनी हुई सरकार के हाथों सौंप दिया जाए।
-दिल्ली पुलिस के उच्च अधिकारियों को उपराज्यपाल के जरिए केंद्र के अधीन रखने का प्रस्ताव
-लाइसेंसी विभाग और दिल्ली का ट्रैफिक पुलिस विभाग भी चुनी हुई दिल्ली की सरकार को देने का प्रस्ताव किया गया था
पूर्ण राज्य पर क्या हैं दिक्कतें
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने पर राष्ट्रीय राजधानी को कुछ हिस्सों में बांटना पड़ सकता है। इनमें से एक होगा केंद्र सरकार का स्वायत्त इलाका और दूसरा पूर्ण राज्य दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में प्रधानमंत्री रहते हैं, राष्ट्रपति रहते हैं, देश की संसद है और साथ ही दुनियाभर के डिप्लोमैट और उनके दूतावास दिल्ली में मौजूद हैं। अगर दिल्ली पुलिस भी राज्य के हवाले कर दिया जाता तो अलग से एक बल का गठन करना होगा।