लॉकडाउन ने अवध के आसमान पर लगाया ''रंगबाज'' पतंगों का मेला, युवाओं के साथ-साथ बूढ़े भी लड़ा रहे पेंच

By भाषा | Published: May 3, 2020 02:02 PM2020-05-03T14:02:22+5:302020-05-03T14:02:22+5:30

कोरोना वायरस संक्रमण के चलते देशभर में पिछले सवा महीने से घरों में बंद लोग सोशल मीडिया, मोबाइल और कंप्यूटर की दुनिया से निकलकर अपने दशकों पुराने शौक पूरे कर रहे हैं। इसी में एक शौक है पतंगबाजी। अवध के आसमान पर आजकल पतंगों का मेला है।

Lockdown set up Rangbaj kites fair on sky of Awadh | लॉकडाउन ने अवध के आसमान पर लगाया ''रंगबाज'' पतंगों का मेला, युवाओं के साथ-साथ बूढ़े भी लड़ा रहे पेंच

लॉकडाउन ने अवध के आसमान पर लगाया ''रंगबाज'' पतंगों का मेला

Highlightsकोरोना वायरस संक्रमण के चलते देशभर में पिछले सवा महीने से घरों में बंद लोग सोशल मीडिया, मोबाइल और कंप्यूटर की दुनिया से निकलकर अपने दशकों पुराने शौक पूरे कर रहे हैं।देर शाम धुंधलके तक कहीं पेंच लगे दिखाई देते हैं तो कहीं कोई पतंग पड़ोसी की छत पर गोता लगाने के बाद इतराती हुई आसमान को छूने निकल पड़ती है।

लखनऊ।कोरोना वायरस संक्रमण के चलते देशभर में पिछले सवा महीने से घरों में बंद लोग सोशल मीडिया, मोबाइल और कंप्यूटर की दुनिया से निकलकर अपने दशकों पुराने शौक पूरे कर रहे हैं। इसी में एक शौक है पतंगबाजी। अवध के आसमान पर आजकल पतंगों का मेला है। देर शाम धुंधलके तक कहीं पेंच लगे दिखाई देते हैं तो कहीं कोई पतंग पड़ोसी की छत पर गोता लगाने के बाद इतराती हुई आसमान को छूने निकल पड़ती है। पतंगबाजी का शौक लखनऊ में कुछ नया नहीं है । तीज त्यौहार पर पतंगबाजों की 'रील' शहर के आकाश में नाचती नजर आ जाती है।

शहर के पंतगबाजों का भी जवाब नहीं। मोहम्मद हुसैन को बच्चे 'चचा' कहते हैं । अस्सी की उम्र में भी पतंगबाजी का इनका नशा बरकरार है । हुसैन ने 'भाषा' से बातचीत में कहा, '' लॉकडाउन ने घरों में कैद कर दिया है लेकिन हमारे घरों की छतें हमेशा से पतंगबाजों से आबाद रही हैं । अब लॉकडाउन के चलते नयी पीढ़ी भी इसका लुत्फ बखूबी उठा रही है ।'' हुसैन बताते हैं कि पुराने लखनऊ के चौक, नक्खास, वजीरगंज, सआदतगंज, ठाकुरगंज, रकाबगंज, याहियागंज, अमीनाबाद, रस्तोगीटोला, बुलाकी अड्डा, पाटा नाला जैसे इलाकों में तरह तरह की पतंगें बनायी जाती हैं । इतना जरूर हैं कि अब पतंगें मार्डर्न रंगबाज बन गयी हैं।'' हुसैन के पोते मोहम्मद इकबाल उनसे पतंगबाजी के हुनर सीखते हैं । उनका कहना है, ''ये एक किस्म का नशा है और लॉकडाउन ने आज की युवा पीढी को वीडियो गेम, कंप्यूटर, मोबाइल ऐप से निकालकर उनमें पतंगबाजी के लिए इश्क पैदा कर दिया है ।'' नक्खास के याकूब खान ने कहा कि लॉकडाउन ने पतंगबाजी की उस विधा को फिर से जिन्दा कर दिया है जो समय के साथ कहीं खो गयी थी ।

खान ने कहा, ''एक जमाने में रामायण और महाभारत सीरियल देखने के लिए लोग दूसरे के घरों में टीवी के सामने पहुंच जाते थे । उस दौर में पतंगबाजी जिन्दा हुआ करती थी । अब रामायण और महाभारत फिर से प्रसारित होने लगे तो लोगों में उन्हें देखने का उत्साह वैसा ही है । कमोवेश वैसा ही जज्बा पतंगबाजी को लेकर भी फिर से पैदा हो गया है ।'' राजेश्वरी शांडिल्य की किताब 'भारतीय पर्व एवं त्यौहार' में बताया गया है कि भारत में पतंगों का आगमन संभवत: मध्य एशिया से हुआ । पुस्तक कहती है, ''बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली और मुगल संस्कृति के साथ ही पतंगबाजी एवं पतंग संस्कृति का भारत में प्रवेश हुआ । इस संबंध में एक विशेष बात यह भी है कि भारतवर्ष में जहां-जहां मुस्लिम संस्कृति का प्रभाव अधिक रहा वहीं पर पतंगबाजी का शौक भी विकसित हुआ ।'' पुस्तक में कहा गया है, ''लखनऊ में पतंगबाजी के शौक का इतिहास अवध के नवाबों से शुरू होता है । मनोरंजन के साधनों में शतरंज और पतंगबाजी दो खेलों पर उनका ध्यान गया और अवध के नवाबों के शौक इन दो क्रीडाओं में बंधकर रह गए ।'' वारिस मियां पतंग के मांझे बनाते हैं ।

उन्होंने इतिहास के पन्ने पलटते हुए बताया कि लखनऊ के बड़े—बड़े नवाब और खलीफा पतंगबाजी के शौकीन थे । नवाब वाजिद अली शाह चौक में मछली वाली बारादरी की छत से पतंग उड़ाते थे और पेंच लड़ाते थे । वारिस बताते हैं कि पतंगबाजी की प्रतियोगिता भी हुआ करती थी, इनाम मिलते थे । ''मेरे अब्बा हुजूर ने कई मर्तबा इनाम जीते ।'' उन्होंने कहा, ''पतंग को हम कनकउव्वा बोलते हैं । दीवाली के अगले दिन पतंग उड़ायी जाती है, उस दिन को जमघट बोला जाता है और पूरा आसमान रंग बिरंगी पतंगों से पटा मिलता है । पतंगबाजी में मांझा, रील, सद्दी, फिरकी, चरखी, तिकल्ला जैसे शब्दों का खास तौर पर इस्तेमाल होता है ।’’ वारिस भी कहते हैं कि लॉकडाउन ने उन कलाओं को फिर से जीवित किया है, जो समय के साथ कहीं खो गयीं थीं और पतंगबाजी उनमें से एक है ।’’

Web Title: Lockdown set up Rangbaj kites fair on sky of Awadh

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