आसान नहीं रही समलैंगिक अधिकारों की कानूनी लड़ाई, जानें 17 साल के संघर्ष की पूरी कहानी

By भाषा | Published: September 7, 2018 07:31 AM2018-09-07T07:31:18+5:302018-09-07T07:31:18+5:30

17 साल लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार एलजीबीटी समुदाय को इंसाफ मिला। जानें, सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले तक पहुंचे का पूरा घटनाक्रम...

LGBT community and section 377: complete timeline of legal fight | आसान नहीं रही समलैंगिक अधिकारों की कानूनी लड़ाई, जानें 17 साल के संघर्ष की पूरी कहानी

आसान नहीं रही समलैंगिक अधिकारों की कानूनी लड़ाई, जानें 17 साल के संघर्ष की पूरी कहानी

नई दिल्ली, 7 सितंबरः सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने आईपीसी की धारा-377 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जिसमें समलैंगिक संबंध को अपराध माना था। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इंद्रधनुषी रंग बिखर गए। समलैंगिक समुदायों ने जमकर जश्न मनाया। एलजीबीटी संबंधों को एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद कानूनी अधिकार मिला है। इस मामले में सबसे पहले 2001 में याचिका दायर की गई थी लेकिन निराशा हाथ लगी। 17 साल लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार उन्हें इंसाफ मिला। जानें, सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले तक पहुंचे का पूरा घटनाक्रम...

2001: समलैंगिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली स्वंय सेवी संस्था नाज फाउंडेशन ने समलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध को कानून के दायरे में लाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका(पीआईएल) दाखिल की।

2004 (सितंबर): उच्च न्यायालय ने पीआईएल खारिज की, समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।

2004 (नवंबर): उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका भी खारिज कर दिया।

2004 (दिसंबर): समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे।

2006 (अप्रैल): उच्चतम न्यायालय ने मामला वापस उच्च न्यायालय के पास भेजा और गुणदोष के आधार पर मामले पर पुनर्विचार करने को कहा।

2006 (अक्तूबर): उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता बीपी सिंघल की याचिका मंजूर की।

2008 (सितंबर): समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर रखने पर गृह तथा स्वास्थ्य मंत्रालय के परस्पर विपरीत रूख के बाद केन्द्र ने किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए और वक्त मांगा। उच्च न्यायालय ने याचिका नामंजूर की और मामले में अंतिम बहस शुरू।

2008 (नवंबर): उच्च न्यायालय ने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा।

2009 (जुलाई): उच्च न्यायालय ने समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की याचिका मंजूर की और व्यस्कों के बीच सहमति से यौन संबंधों को कानूनी मान्यता दी।

2009 (जुलाई): दिल्ली के ज्योतिषी ने उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। फैसले को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाएं दाखिल हुईं। 

2012 (फरवरी): उच्चतम न्यायालय ने मामले की दिन प्रतिदिन के हिसाब से सुनवाई शुरू की।

2013 (दिसंबर): उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने के 2009 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द किया।

2013 (दिसंबर): केन्द्र ने फैसले की दोबारा जांच की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।

2014 (जनवरी): उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले की समीक्षा से इनकार किया। केन्द्र और कार्यकर्ताओं की याचिका खारिज की।

2014 (अप्रैल): उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध ठहराने के अपने फैसले के खिलाफ समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से दाखिल सुधारात्मक याचिकाओं की खुली अदालत में सुनवाई के लिए सहमति जताई।

2016 (फरवरी): उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिकता पर सुधारात्मक याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों वाली पीठ के पास भेजा।

2016 (जून): उच्चतम न्यायालय ने नृत्यांगना एन एस जौहर, शेफ रितु डालमिया और होटल व्यावसाई अमन नाथ की ओर से धारा 377 को रद्द करने की मांग वाली याचिका को उसी पीठ के पास भेजा जिसके पास मामला पहले से लंबित था।

2017 (अगस्त): उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। 

2018 (जनवरी): उच्चतम न्यायालय 2013 के अपने फैसले पर दोबारा विचार करने पर सहमत हुई साथ ही धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वृह्द पीठ के पास भेजा।

2018 (जुलाई): पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अनेक याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। 

2018 (जुलाई): केन्द्र ने धारा 377 की वैधता पर कोई भी निर्णय उच्चतम न्यायालय के विवेक पर छोड़ा।

2018 (जुलाई): उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित किया।

छह सितंबर 2018: संविधान पीठ ने धारा 377 के एक वर्ग को अपराध के दायरे से बाहर रखने का फैसला सुनाया।

Web Title: LGBT community and section 377: complete timeline of legal fight

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