दिल्ली का असली बॉस कौन? पिछले तीन साल से जारी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया है। जस्टिस एके सीकरी की अगुवाई वाली बेंच ने अधिकांश विवाद पर स्थिति स्पष्ट कर दी है लेकिन अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग पर दोनों जजों की एकराय नहीं बन सकी। सुप्रीम कोर्ट ने सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड से जुड़े मामले पर फैसला सुनाया। सर्विस मुद्दे पर जस्टिस सीकरी और जस्टिस भूषण की राय अलग-अलग थी इसलिए इसे तीन जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेजने का फैसला लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक किसी भी विवाद की स्थिति में उप-राज्यपाल की राय सर्वोपरि मानी जाएगी। जानिए इस फैसले से जुड़ी बड़ी बातें...
जस्टिस एके सीकरी का फैसलाः-
- जस्टिस एके सीकरी ने ज्वॉइंट सेक्रेटरी और उससे ऊंचे पदाधिकारियों की नियक्ति और स्थानांतरण का अधिकार उपराज्यपाल को दिया है। इसके अलावा अन्य अधिकारी दिल्ली सरकार के अधीन रहेंगे। हालांकि इसमें उपराज्यपाल का मत लेना अनिवार्य होगा। एंटी करप्शन ब्यूरो को उपराज्यपाल के अधीन कर दिया गया है।
- कमीशन ऑफ इंक्वायरी भी केंद्र सरकार के पास होगा।
- इलेक्ट्रिसिटी विभाग के अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग दिल्ली सरकार के पास होगी।
- जमीन का सर्किल रेट दिल्ली सरकार तय करेगी।
- अगर मतभेद होता है तो उपराज्यपाल की राय सबसे ऊपर रहेगी।
जस्टिस अशोक भूषण का फैसलाः-
- जस्टिस अशोक भूषण ने सेवाओं के मामले में जस्टिस सीकरी के फैसले से अलग राय सामने रखी है। उन्होंने कहा कि सभी अधिकारी केंद्र सरकार के अधीन होने चाहिए।
केंद्र सरकार की अधिसूचना बरकरार
न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ हालांकि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, जांच आयोग गठित करने, बिजली बोर्ड पर नियंत्रण, भूमि राजस्व मामलों और लोक अभियोजकों की नियुक्ति संबंधी विवादों पर सहमत रही। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की उस अधिसूचना को भी बरकरार रखा कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि लोक अभियोजकों या कानूनी अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार उप राज्यपाल के बजाय दिल्ली सरकार के पास होगा।
क्या है पूरा मामला?
गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक नोटिफिकेशन जारी करके कहा था कि सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड से जुड़े मामले उप-राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में रहेंगे। ब्यूरोक्रेट की सर्विस के मामले में इसमें शामिल थे। इस नोटिफिकेशन ने दिल्ली सरकार की शक्तियों को बिल्कुल सीमित कर दिया था। इसके खिलाफ केजरीवाल ने अदालत में गुहार लगाई।