Khunti Seat Lok Sabha Elections: खूंटी में अर्जुन मुंडा की राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर, पीएम मोदी और करिया मुंडा के भरोसे चुनाव जीतने की उम्मीद, जानें समीकरण
By एस पी सिन्हा | Published: March 13, 2024 02:57 PM2024-03-13T14:57:30+5:302024-03-13T14:59:45+5:30
Khunti Seat Lok Sabha Elections 2024: 1967 में खूंटी लोकसभा से जीत का खाता कांग्रेस के जयपाल सिंह मुंडा ने खोला। निर्दलीय प्रत्याशी पी. कच्छप को पराजित किया।
Khunti Seat Lok Sabha Elections 2024: झारखंड के 14 लोकसभा क्षेत्रों में से एक है खूंटी लोकसभा क्षेत्र। यह राज्य के वीआईपी सीटों में से एक है। यहां से भाजपा के अर्जुन मुंडा सांसद हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की थी। खूंटी जिला अपने संघर्ष और विद्रोह के कारण इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन ने अंग्रेज़ों की चूलें हिला दी थीं। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ लंबे समय से किए गए संघर्ष के लिए खूंटी ने इतिहास में अपनी विशेष जगह बनाई। यह जिला मुंडा जनजातियों के लिए जाना जाता है।
कहा जाता है कि छोटा नागपुर के राजा मदरा मुंडा के बेटे सेतिया के आठ बेटे थे। उन्होंने ही एक खूंटकटी गांव की स्थापना की जिसे उन्होंने खूंति नाम दिया, जो बाद में खूंटी हो गया। झारखंड बनने से पहले यह सीट बिहार में थी। खूंटी लोकसभा सीट पर पहली बार साल 1962 में लोकसभा चुनाव हुआ था। इस चुनाव में यहां से झारखंड पार्टी के जयपाल मुंडा पहली बार सांसद चुने गए थे।
1971 में निर्दलीय नीरेल एनेम होरो जीतकर लोकसभा पहुंचे
वहीं 1967 में उन्होंने फिर से इस सीट पर चुनाव जीता। 1971 में झारखंड पार्टी के ही निरल एनेम होरो इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे। 1967 में खूंटी लोकसभा से जीत का खाता कांग्रेस के जयपाल सिंह मुंडा ने खोला। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी पी. कच्छप को पराजित किया। 1971 में निर्दलीय नीरेल एनेम होरो यहां से जीतकर लोकसभा पहुंचे।
उन्होंने कड़िया मुंडा को हराया था। 1977 में भारतीय लोक दल के टीकट पर कड़िया मुंडा ने चुनाव लड़ा और जीते भी। इसके बाद 1980 में झारखंड पार्टी से नीरेल एनेम होरो यहां से सांसद चुने गए। 1984 में कांग्रेस से सिमोन तिग्गा ने इस सीट पर जीत दर्ज करवाई। वर्ष 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में खूंटी से संसद तक पहुंचने में कामयाब रहे।
खूंटी लोकसभा सीट मुख्य रूप से मुंडा जनजातियों के लिए जाना जाता
केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के तीन बार मंत्री व 2009 से 2014 तक लोक सभा के उपाध्यक्ष भी रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के कड़िया मुंडा ने झारखंड पार्टी के एनोस एक्का को हराया था। 2019 में भाजपा ने उनका टिकट काट कर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को टिकट दिया था। दरअसल, खूंटी लोकसभा सीट मुख्य रूप से मुंडा जनजातियों के लिए जाना जाता है।
बता दें कि खूंटी का नाम पहले खुंति था, लेकिन बाद में इसे बदल दिया गया। कुछ मान्यताओं में इसका नाम महाभारत की कुंती से भी जोड़ा जाता है। इसके अलावा इस इलाके की पहचान महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के नाम से भी है। यहां से भाजपा का कमल खिलाने में करिया मुंडा की अहम भूमिका रही है।
खूंटी लोकसभा सीट का पूरा इलाका लगभग नक्सल प्रभावित
वैसे यहां से कांग्रेस ने तीन बार, भारतीय लोक दल, झारखंड पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशी ने एक बार जीत दर्ज की थी। कड़िया मुंडा एक बार भारतीय लोक दल फिर सात बार भाजपा से सांसद रहे हैं। इन्हें 11 मार्च 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। खूंटी लोकसभा सीट का पूरा इलाका लगभग नक्सल प्रभावित है।
खूंटी लोकसभा क्षेत्र चार जिलों और 6 विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र में खरसावां, तमर, तोरपा, सिमडेगा, खूंटी और कोलेबिरा विधानसभाएं आती हैं। यह पूरा क्षेत्र जनजातियों की जनता के लिए आरक्षित है। यही वजह है कि इस पूरे लोकसभा क्षेत्र के अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित रखा गया है।
काली चरण मुंडा को 1445 वोटों के हराकर यहां से सांसद चुने गए
कहा जाता है कि खूंटी के लोग अपना नेता बार-बार नहीं बदलते हैं, शायद यही वजह है कि कडिया मुंडा यहां से 8 बार जीते। 2019 में भाजपा के अर्जुन मुंडा ने कमल खिलाया था। वर्तमान में अर्जुन मुंडा मोदी सरकार में कृषि मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। 2019 में अर्जुन मुंडा ने कांग्रेस पार्टी के काली चरण मुंडा को 1445 वोटों के हराकर यहां से सांसद चुने गए।
खूंटी लोकसभा सीट के अंतर्गत छह विधानसभा आते हैं। इनमें खूंटी विधानसभा सीट पर भाजपा, खरसावां सीट पर झामुमो, तमाड़ सीट पर आजसू, तोरपा सीट पर झामुमो, सिमडेगा सीट पर भाजपा और कोलेबिरा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। लोकसभा क्षेत्र के 11 लाख 99 हजार 492 मतदाता मतदान में हिस्सा लेंगे। इसमें 6 लाख 01 हजार 003 पुरुष तथा 5 लाख 98 हजार 507 महिला मतदाता शामिल हैं।
'इंडिया' गठबंधन की ओर से झारखंड में अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ
भाजपा की ओर से अर्जुन मुंडा को दूसरी बार खूंटी से उम्मीदवार बनाए जाने से यह सीट राजनीतिक दृष्टिकोण से झारखंड की सबसे हॉट सीट बन गई है। कांग्रेस की ओर से अब तक उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन कई नामों की चर्चा है। 'इंडिया' गठबंधन की ओर से झारखंड में अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है।
लेकिन पिछले चुनाव के रिकॉर्ड को देखते हुए यह तय माना जा रहा है कि खूंटी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार ही अर्जुन मुंडा के सामने होगा। केंद्रीय कृषि और जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। खूंटी में अर्जुन मुंडा की राजनीतिक प्रतिष्ठा एक बार फिर से दांव पर होगी।
भाजपा अपनी परंपरागत सीट को बचा पाएगी या कांग्रेस की हार का सिलसिला टूटेगा?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अर्जुन मुंडा के खिलाफ संभवतः कालीचरण मुंडा ही विपक्ष के साझा उम्मीदवार होंगे। खूंटी में अर्जुन मुंडा को भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनाए जाने के साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि भाजपा अपनी परंपरागत सीट को बचा पाएगी या कांग्रेस की हार का सिलसिला टूटेगा?
एक ओर पद्मभूषण कड़िया मुंडा का वरदहस्त अर्जुन मुंडा को प्राप्त हैं, वहीं खूंटी के भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा और उनके समर्थक इस बार भी ऊहापोह की स्थिति में हैं। पिछली बार कांग्रेस ने भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के बड़े भाई कालीचरण मुंडा को उम्मीदवार बनाया था।
अर्जुन मुंडा को फायदा मिला था और चुनाव में विजयी रहे थे
जिसके कारण अर्जुन मुंडा को यह खतरा महसूस हुआ था कि कहीं नीलकंठ सिंह मुंडा पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को दिभ्रमित न कर दें, इस कारण अर्जुन मुंडा ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नीलकंठ सिंह मुंडा के खूंटी स्थित पैतृक आवास में रहना तय किया था। इसका अर्जुन मुंडा को फायदा मिला था और चुनाव में विजयी रहे थे।
इस बार भी कांग्रेस की ओर से कालीचरण मुंडा को ही उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना जताई जा रही है। इस कारण भाजपा विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा दुविधा में हैं। यही कारण है कि भाजपा की गुटबाजी उस समय सामने आ गई, जब प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद बुधवार को अर्जुन मुंडा खूंटी पहुंचे, तो उनकी अगवानी और स्वागत से नीलकंठ सिंह मुंडा और उनके समर्थक गायब रहे।