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पुलिस अधिकारी के उत्पीड़न का शिकार लड़की को 1.75 लाख रुपये की राशि दे केरल सरकार: उच्च न्यायालय

By भाषा | Updated: December 22, 2021 23:18 IST

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कोच्चि, 22 दिसंबर केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्य की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकार को चोरी के मामले में 'जज, ज्यूरी और जल्लाद' के तौर पर काम करने वाली पिंक पुलिस अधिकारी द्वारा नाबालिग लड़की को पहुंचाए गए "आघात" और "आतंक" के लिए 1.75 लाख रुपये की राशि मुआवजे और मुकदमेबाजी की लागत के तौर पर देने का निर्देश दिया।

न्यायालय ने कहा कि राज्य की एक क्रांतिकारी पहल, पिंक गश्ती इकाई से बच्ची को ‘‘सांत्वना और सुरक्षा’’ प्रदान करने की उम्मीद थी, लेकिन इसके बजाय उसके एक अधिकारी ने सार्वजनिक रूप से लड़की को ‘‘आतंकित’’ कर दिया।

न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा, ‘‘उस समय बच्ची को जिस घोर लाचारी और निराशा से गुजरना पड़ा, उसका कभी भी ठीक से वर्णन नहीं किया जा सकता है और यह स्पष्ट है कि उसे गंभीर आघात और भय का सामना करना पड़ा। एक पुलिस अधिकारी द्वारा सार्वजनिक रूप से आतंकित किया जा रहा था जबकि उनसे यह उम्मीद थी कि वह उसे सांत्वना दें और उसकी रक्षा करें।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद थी कि राज्य सरकार उसकी रक्षा के लिए आगे बढ़ेगी, क्योंकि वह उनकी भी बेटी है जितनी वह हमारी है, और उसे कुछ राशि की पेशकश करेगी।’’ न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने कहा, ‘‘लेकिन उनके मानसिक आघात को नहीं पहचान पाने पर निश्चित रूप से इस अदालत को संज्ञान लेने की आवश्यकता होगी।’’

अधिकारी के कार्यों का बचाव करते हुए राज्य और पुलिस ने तर्क दिया था कि अधिकारी के कृत्य के कारण बच्ची को कभी भी किसी भी तरह की धमकी का सामना नहीं करना पड़ा और इसलिए, उसके किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया।

उन्होंने दावा किया था कि अधिकारी की कार्रवाई उसके कर्तव्यों के निर्वहन में थी और उसका बच्ची या उसके पिता को डराने का कोई इरादा नहीं था।

न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने दो घंटे से अधिक की लंबी सुनवाई में इन सभी तर्कों को खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को लड़की को मुआवजे के रूप में 1.5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। साथ ही न्यायालय ने राज्य सरकार को मुकदमे की लागत के रूप में बच्ची को 25,000 रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने दोषी अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया।

अदालत ने कहा कि जब तक अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू और समाप्त नहीं हो जाती, तब तक अधिकारी को उन कार्यों से दूर रखा जाएगा जिसके लिए उसे आम जनता के साथ बातचीत करने की आवश्यकता होगी। अदालत ने निर्देश दिया कि अधिकारी को पारस्परिक व्यवहार पर आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

इन निर्देशों के साथ अदालत ने आठ वर्षीय लड़की की याचिका का निपटारा कर दिया। इस याचिका में सरकार को उसके मौलिक अधिकार के उल्लंघन के लिए अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

इस बच्ची ने मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये भी मांगे थे, लेकिन अदालत ने कहा कि उसके द्वारा निर्धारित राशि पर्याप्त है।

अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता और उसके पिता संबंधित अधिकारी के खिलाफ किसी भी अन्य मुकदमे को आगे बढ़ा सकते हैं जो वे चलाना चाहते हैं।

यह घटना 27 अगस्त को अत्तिंगल निवासी जयचंद्रन और आठ साल की उनकी बेटी के साथ मूनुमुक्कू में हुई थी।

यातायात नियमन में सहायता के लिए तैनात महिला पिंक पुलिस अधिकारी रजिता ने दोनों पर पुलिस वाहन में रखे मोबाइल फोन को चोरी करने का आरोप लगाया था।

वायरल हुए एक वीडियो में अधिकारी और उनके सहयोगी पिता-पुत्री को परेशान करते और यहां तक ​​कि उनकी तलाशी लेते हुए दिखाई देते हैं। इस दौरान बच्ची रोने लगती है।

हालांकि, जब वहां मौजूद एक व्यक्ति ने अधिकारी का नंबर डायल किया, तो मोबाइल फोन पुलिस वाहन में ही मिला, जिसके बाद पुलिस टीम पिता और बेटी से माफी मांगे बिना ही वहां से चली गई।

अनुशासनात्मक कार्रवाई के तहत महिला अधिकारी का तबादला कर दिया गया और राज्य के पुलिस प्रमुख ने उसे व्यवहार प्रशिक्षण से गुजरने का निर्देश दिया।

अदालत ने पहले कहा था कि पिंक पुलिस अधिकारी के आचरण से ‘‘खाकी के शुद्ध अहंकार’’ का संकेत मिलता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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