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कश्मीर: भारत-पाक सीम पर 5वीं बार भी नहीं बंटेगा 'शक्कर' और 'शर्बत', पाकिस्तानी रेंजर्स ने नहीं दिया बीएसएफ के न्यौते का जवाब

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 20, 2022 15:43 IST

कश्मीर के चमलियाल सीमा चौकी के करीब स्थित बाबा चमलियाल के मेले में लगातार पांचवीं बार दोनों मुल्कों के बीच ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ के बंटने की उम्मीद कम है क्योंकि पाक रेंजर्स ने बीएसएफ के द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल होने के लिए रजामंदी नहीं दी है।

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ठळक मुद्देबाबा चमलियाल के मेले में पांचवीं बार भी भारत-पाक में नहीं बंट सकता है ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ पाक रेंजरों ने इसकी बाबत बुलाई गई बीएसएफ की बैठक के न्यौते का नहीं दिया जवाब साल 2020 और 2021 में कोरोना के कारण इस मेले को रद्द कर दिया गया था

चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर): 23 जून यानी तीन दिनों के बाद बृहस्पतिवार को रामगढ़ सेक्टर में चमलियाल सीमांत पोस्ट पर आयोजित किए जाने वाले बाबा चमलियाल के मेले में इस बार भी लगातार पांचवीं बार दोनों मुल्कों के बीच ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ के बंटने की उम्मीद कम ही है।

जानकारी के मुताबिक पाकिस्तानी रेंजरों ने इसकी बाबत बुलाई गई बीएसएफ की बैठक के न्यौते का कोई जवाब ही नहीं दिया है। इससे पहले साल 2020 और 2021 में कोरोना के कारण इस मेले को रद्द कर दिया गया था और वर्ष 2018 व 2019 में पाक रेंजरों ने न ही इस मेले में शिरकत की थी और न ही प्रसाद के रूप में ‘शक्कर’ और ’शर्बत’ को स्वीकारा था क्योंकि वर्ष 2018 में 13 जून के दिन पाक रेंजरों ने इसी सीमा चौकी पर हमला कर चार भारतीय जवानों को शहीद कर दिया था तथा पांच अन्य को जख्मी कर दिया था।

तब भारतीय पक्ष ने गुस्से में आकर पाक रेंजरों को इस मेले के लिए न्यौता नहीं दिया था पर अबकी बार भी वे बीएसएफ के संदेश का कोई जवाब नहीं दिया है। नतीजतन यही लगता है कि देश के बंटवारे के बाद से चली आ रही परंपरा इस बार भी टूट जाएगी। वैसे यह कोई पहला अवसर नहीं है कि यह परंपरा टूटने जा रही हो बल्कि अतीत में भी पाक गोलाबारी के कारण कई बार यह परंपरा टूट चुकी है।

परंपरा के अनुसार पाकिस्तान स्थित सैदांवाली चमलियाल दरगाह पर वार्षिक साप्ताहिक मेले का आगाज गुरुवार को होता है और अगले गुरुवार को इस मेले का समापन हो जाता है। भारत-पाक विभाजन से पूर्व सैदांवाली तथा दग-छन्नी में चमलियाल मेले में शरीक हुए बुजुर्ग गुरबचन सिंह, रवैल सिंह, भगतू राम व लेख राज ने बताया कि यह ऐतिहासिक मेला है।

पाकिस्तान के गांव तथा शहरों के लोग बाबा की मजार पर पहुंच कर खुशहाली की कामना करते हैं। भारत-पाक के बीच सरहद बनने के बाद मेले की रौनक कम हो गई। पहले मेले के सातों दिन बाबा की मजार पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। वर्तमान में मेले के आखिरी तीन-चार दिन ही अधिक भीड़ रहती है।

जिस दिन भारतीय क्षेत्र दग-छन्नी स्थित बाबा चमलियाल दरगाह पर वार्षिक मेला लगता है, उस दिन पाकिस्तान को तोहफे के तौर पर पवित्र शरबत और शक्कर भेंट की जाती है। भेंट किए गए शरबत शक्कर को सैदांवाली स्थित चमलियाल दरगाह ले जाकर संगत को बांटा जाता है। पाक श्रद्धालु कतारों में लग कर बाबा के पवित्र शरबत शक्कर हासिल करते हैं।

जीरो लाइन पर स्थित चमलियाल सीमांत चौकी पर जो मजार है वह बाबा दीलिप सिंह मन्हास की समाधि है। इसके बारे में प्रचलित है कि उनके एक शिष्य को एक बार चम्बल नामक चर्म हो गया था। बाबा ने उसे इस स्थान पर स्थित एक विशेष कुएं से पानी तथा मिट्टी का लेप शरीर पर लगाने को दिया था। उसके प्रयोग से शिष्य ने रोग से मुक्ति पा ली।

इसके बाद बाबा की प्रसिद्धि बढ़ने लगी तो गांव के किसी व्यक्ति ने उनका गला काट कर उनकी हत्या कर डाली। बाद में उनकी हत्या वाले स्थान पर उनकी समाधि बनाई गई। प्रचलित कथा कितनी पुरानी है कोई जानकारी नहीं है।

इस मेले का एक अन्य मुख्य आकर्षण भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा ट्रालियों तथा टैंकरों में भरकर ‘शक्कर’ तथा ‘शर्बत’ को पाक जनता के लिए भिजवाना होता है। इस कार्य में दोनों देशों के सुरक्षा बलों के अतिरिक्त दोनों देशों के ट्रैक्टर भी शामिल होते हैं और पाक जनता की मांग के मुताबिक उन्हें प्रसाद की आपूर्ति की जाती रही है जिसके अबकी बार संपन्न होने की कोई उम्मीद नहीं है। यह लगातार पांचवी बार होगा की न ही पाक रेंजर पवित्र चाद्दर को बाबा की दरगाह पर चढ़ाने के लिए लाएंगें जिसे पाकिस्तानी जनता देती है और न ही वे प्रसाद को स्वीकार करेंगें।

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