कर्नाटक चुनाव 2023: भाजपा के लिए कर्नाटक चुनाव चुनौतीपूर्ण क्यों है?, BJP का काफी कुछ तो कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर

By भाषा | Updated: May 10, 2023 08:11 IST2023-05-10T08:01:57+5:302023-05-10T08:11:22+5:30

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा की जीत विशेष रूप से मोदी के अजेय चेहरे की आभा को बढ़ाएगी, जो इस अभियान के केंद्र में भी रहे हैं। कर्नाटक को बरकरार रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण सवाल के रूप में इसलिए भी देखा जा रहा है क्योंकि 1985 के बाद से कभी भी कोई सत्तारूढ़ पार्टी सत्ता में नहीं लौट सकी है।

Karnataka Elections 2023 Why Karnataka elections are challenging for BJP and a lot of Congress at stake | कर्नाटक चुनाव 2023: भाजपा के लिए कर्नाटक चुनाव चुनौतीपूर्ण क्यों है?, BJP का काफी कुछ तो कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर

तस्वीरः सोशल मीडिया

Highlightsभाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उस पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के आरोप लगाए। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में पुराने मैसूर क्षेत्र में जद (एस) की उपस्थिति मजबूत।किसी भी पार्टी को 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला था।

नयी दिल्लीः  कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए काफी कुछ दांव पर लगा हुआ है, वहीं कांग्रेस के लिए भी बहुत कुछ दांव पर है। इस दक्षिणी राज्य में जीत से कांग्रेस को जहां आगामी विधानसभा चुनावों के लिए ‘संजीवनी’ मिलेगी और केंद्रीय स्तर पर उसकी स्थिति मजबूत होगी वहीं भाजपा के लिए यहां की जीत दक्षिण में पैर पसारने की उसकी उम्मीदों को पंख देगा तथा 2024 से पहले फिर से उसे मजबूत स्थिति में ला खड़ा करेगा। बहरहाल, कर्नाटक में नयी सरकार चुनने के लिए बुधवार मतदान जारी है।

करीब महीने भर चले चुनाव प्रचार के शुरुआती दिनों में विचारधारा के साथ-साथ शासन से जुड़े मुद्दे हावी रहे लेकिन अंतिम चरण में भगवान हनुमान के ‘प्रवेश’ ने मुकाबले को रोचक बना दिया। कांग्रेस ने पहले बीएस येदियुरप्पा और फिर बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत कथित भ्रष्टाचार को लेकर ‘40 फीसदी कमीशन सरकार’ के मुद्दे को जोरशोर से उछालकर चुनावी बढ़त हासिल करने की कोशिश की तो भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘करिश्मे’ और ‘डबल इंजन’ सरकार के फायदे गिनाते हुए जनता को साधने की भरपूर कोशिश की।

कांग्रेस के घोषणापत्र ने बढ़ाई सरगर्मी

विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने ‘पांच गारंटी’ के साथ ही कई कल्याणकारी उपायों और रियायतों की घोषणा की तथा कुल आरक्षण को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने का वादा किया है। हालांकि, इसके घोषणापत्र में बजरंग दल और पहले से ही प्रतिबंधित कट्टरपंथी इस्लामी निकाय पीएफआई जैसे संगठनों पर प्रतिबंध सहित कड़ी कार्रवाई, और मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत कोटा बहाल करने जैसे वादों ने भाजपा को इन्हें अपने पक्ष में भुनाने का मौका दे दिया। इसी उम्मीद में भाजपा ने हिंदुत्व के अपने मुद्दे को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दो मई को कांग्रेस का घोषणापत्र जारी होने के बाद भाजपा ने दोनों मुद्दों को चुनाव के केंद्र में ला दिया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विपक्षी पार्टी पर आरोप लगाया कि वह भगवान हनुमान और उनकी महिमा के नारे लगाने वालों को ‘बंद’ करने की कोशिश कर रही है।

मोदी की रैलियों में ‘बजरंग बली की जय’ के नारे बुलंद होने लगे तो भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उस पर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के आरोप लगाए। भाजपा के वरिष्ठ नेता बी एल संतोष ने प्रचार के दौरान कहा कि यह कांग्रेस है जिसने इस मुद्दे को सामने किया। उन्होंने कहा कि ऐसे में भाजपा निश्चित रूप से इसे उठाएगी। हालांकि, कांग्रेस नेताओं का मानना है कि भाजपा के इस रुख का राज्य में ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि हिंदुत्व का मुद्दा तटीय क्षेत्र के बाहर ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में पुराने मैसूर क्षेत्र में जद (एस) की उपस्थिति मजबूत

कांग्रेस के भीतर विचार यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध विश्व हिंदू परिषद की युवा शाखा बजरंग दल के खिलाफ कार्रवाई का उसका वादा उसे मुसलमानों के उन वर्गों को जीतने में मदद करेगा, जो जनता दल (सेक्युलर) के पक्ष में हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में पुराने मैसूर क्षेत्र में जद (एस) की मजबूत उपस्थिति है। इस क्षेत्र में जद (एस) की मजबूत उपस्थिति राज्य चुनावों में अक्सर त्रिशंकु जनादेश का एक प्रमुख कारण रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस के प्रदर्शन का किसी भी संभावित विपक्षी गठबंधन में उसके कद पर बड़ा असर डालेगा क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली में उनके समकक्ष अरविंद केजरीवाल जैसे कुछ क्षेत्रीय क्षत्रप अक्सर भाजपा का मुकाबला करने में उसकी ताकत के बारे में संदेह व्यक्त करते रहे हैं।

कांग्रेस ने कर्नाटक के चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी

कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में कई अन्य राज्यों के चुनावों के विपरीत कर्नाटक के चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा ने कर्नाटक में बड़े पैमाने पर प्रचार किया और सोनिया गांधी ने भी एक जनसभा को संबोधित किया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कर्नाटक के अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और राज्य प्रमुख डी के शिवकुमार के साथ मिलकर राज्य में आक्रामक चुनाव प्रचार किया। कांग्रेस की जीत की स्थिति में इस बात पर मुहर लग सकती है कि भाजपा से बार-बार पराजित होने के बाद ‘मंडल’ राजनीति की ओर उसके लौटने की रणनीति कारगर साबित हुई। इसके अलावा राहुल गांधी के कद में इजाफा होगा और पार्टी के पास कर्नाटक जैसा संसाधन संपन्न राज्य होगा।

भाजपा के लिए कर्नाटक चुनाव चुनौतीपूर्ण क्यों है?

विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा की जीत विशेष रूप से मोदी के अजेय चेहरे की आभा को बढ़ाएगी, जो इस अभियान के केंद्र में भी रहे हैं। कर्नाटक को बरकरार रखना भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण सवाल के रूप में इसलिए भी देखा जा रहा है क्योंकि 1985 के बाद से कभी भी कोई सत्तारूढ़ पार्टी सत्ता में नहीं लौट सकी है। भाजपा ने इस चुनाव में युवाओं पर भरोसा जताया है और बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवारों को टिकट भी दिया है। अपने इस प्रयास में भाजपा ने अपने कई वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी भी की। पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर जैसे कुछ नेताओं ने तो विद्रोह करते हुए कांग्रेस का दामन तक थाम लिया।

किसी भी पार्टी को 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिला था

बहरहाल, मतदाताओं की पसंद तय करेगी कि यह जुआ पार्टी के लिए काम आया या विफल रहा। दक्षिणी राज्य में हार भाजपा के लिए एक झटका भी हो सकती है क्योंकि वह हर चुनाव पूरे दमखम से लड़ती रही है। हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि भाजपा को 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में भी बहुमत नहीं मिला था और कांग्रेस और जद (एस) ने मिलकर सरकार बनाया था। साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी भाजपा को कर्नाटक सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार का सामना करना पड़ा था। बाद में विपक्षी विधायकों के दलबदल के बाद वह कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सत्ता में लौट आई थी। 

Web Title: Karnataka Elections 2023 Why Karnataka elections are challenging for BJP and a lot of Congress at stake

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