Jharkhand Results: झारखंड में बीजेपी के पराजय के ये हैं 6 बड़े कारण, जानें क्यों घट गई भाजपा की सीटें
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 24, 2019 07:38 IST2019-12-24T07:38:28+5:302019-12-24T07:38:28+5:30
चुनाव से ठीक पहले भाजपा को अपने ही नेताओं से बड़े झटके लगे. राधाकृष्ण किशोर ने एजेएसयू के साथ हाथ मिला लिया. टिकट बंटवारे के दौरान पार्टी ने वरिष्ठ नेता सरयू राय को टिकट नहीं दिया.

रघुवर दास (फाइल फोटो)
झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व में बने झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने 47 सीटें जीत कर स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है। झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने 27 दिसंबर को मोरहाबादी मैदान में नयी सरकार के शपथग्रहण की घोषणा की है।
सत्ताधारी भाजपा के मुख्यमंत्री रघुवर दास और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा चुनाव हार गये हैं और भाजपा को सिर्फ 25 सीटें हासिल हुई। इन चुनावों में झामुमो ने रिकार्ड 30 सीटें जीतीं जिससे वह विधानसभा में सबसे बड़ा दल भी बन गया जबकि सिर्फ 25 सीटें जीत पाने से भाजपा का विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया। पढ़ें बीजेपी के हार के बड़े कारण:
सहयोगियों को नजरंदाज करना पड़ा भारी
2014 में हुए विधानसभा में भाजपा ने सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (एजेएसयू) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. भाजपा को 37 और एजेएसयू को 5 सीटें मिली थीं. इस बार भाजपा ने सहयोगी दलों को नजरअंदाज किया. यह फैसला भारी पड़ गया. एक अन्य सहयोगी लोजपा ने भी मिलकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया, लेकिन भाजपा ने उसे ठुकरा दिया.
विपक्ष ने बनाया महागठबंधन
भाजपा अपने दम पर मैदान में उतरी तो विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा. झामुमो, राजद और कांग्रेस के महागठबंधन ने सीटों का बंटवारा कर चुनाव लड़ा. 2014 के चुनाव में तीनों अलग-अलग चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार कांग्रेस ने महाराष्ट्र और हरियाणा से सबक सीखते हुए महागठबंधन बनाया.
अपनों ने दिया जोरदार झटका
चुनाव से ठीक पहले भाजपा को अपने ही नेताओं से बड़े झटके लगे. राधाकृष्ण किशोर ने एजेएसयू के साथ हाथ मिला लिया. टिकट बंटवारे के दौरान पार्टी ने वरिष्ठ नेता सरयू राय को टिकट नहीं दिया. सरयू राय ने सीएम रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर ईस्ट सीट से चुनाव लड़ा.
'डबल इंजन' की रणनीति फेल
चुनाव के दौरान भाजपा ने दावा किया था कि उसे 65 सीटें मिलेंगी और वह अकेले दम पर सरकार बनाएगी. भाजपा को उम्मीद थी कि वह पीएम मोदी के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ेगी तो उसे सफलता मिलेगी. मोदी, अमित शाह की कई रैलियां झारखंड में हुई. भाजपा की 'डबल इंजन' की रणनीति राज्य के लोगों को रास नहीं आई.
महाराष्ट्र की घटना का डर, फूंक-फूंककर रखा कदम
महाराष्ट्र की घटना से डरी भाजपा ने झारखंड में फूंक-फूंककर चुनाव लड़ा और किसी दल के साथ गठबंधन नहीं किया. महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन सीएम पद को लेकर उठे विवाद के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी.
गैर आदिवासी सीएम की नीतियों को लेकर गुस्सा
झारखंड में 26.3% आबादी आदिवासियों की है. 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. राज्य के आदिवासी समुदाय में गैर आदिवासी सीएम रघुबर दास की नीतियों को लेकर काफी गुस्सा था. उनका मानना था कि दास ने 5 साल के कार्यकाल के दौरान आदिवासी विरोधी नीतियां बनाईं. सूत्रों की मानें तो आदिवासी समुदाय से आने वाले अर्जुन मुंडा को इस बार सीएम बनाए जाने की मांग उठी थी, लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दास पर दांव लगाया.- भुखमरी से मौत पर खामोशी रघुबर दास के कार्यकाल में राज्य में भुखमरी से लोगों की मौत की घटनाएं भी सामने आईं. हालांकि भाजपा की नेतृत्व वाली सरकार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया. इसे लेकर भी लोगों में गुस्सा था.