झारखंड में 'राजनीतिक सेनाओं' ने संभाला मोर्चा, टिकट और सीट बंटवारे को लेकर सभी पार्टियों में शुरू हुई अटकलबाजी
By एस पी सिन्हा | Published: November 4, 2019 08:27 PM2019-11-04T20:27:00+5:302019-11-04T20:27:00+5:30
बीजेपी पार्टी इस बार 65 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही. ऐसे में 20 फीसदी सीटिंग विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा है.
झारखंड में चुनावी रणभेरी बजते हीं चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक सेनाएं सजने लगी हैं. यहां मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच होने का अनुमान है. लेकिन झाविमो के एकला चलने के कारण महागठबंधन की चाल पर असर पड सकता है.
ऐसे में यह माना जा रहा है कि तीसरा कोण बनाते हुए झारखंड विकास मोर्चा(झाविमो) और वामदल भी रणकौशल दिखाएंगे. इसके लिए बातचीत चलने की बात बताई जा रही है. वहीं, महागठबंधन का स्वरूप अभी मोटे तौर पर ही उभरा है. अंतिम रूप धारण करने में अभी समय लगेगा.
दूसरी ओर, एनडीए की छतरी के नीचे भाजपा और आजसू चुनाव लडेंगे, ऐसा तय माना जा रहा है. अगर आजसू के मन में दिल मांगे ’मोर’ की आवाज उठने लगी तो एनडीए में भी मुश्किल होगी. वहीं, महागठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद साथ लडने की बात कर रहे हैं. लेकिन इनकी दोस्ती की असल परीक्षा सीट बंटवारे के समय होगी. महागठबंधन में तीन दलों के अलावा क्या और दलों की इंट्री होगी? वाम दल किधर जाएंगे? यह अभी साफ नहीं है.
बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो अलग ताल ठोकने जा रही है. ऐसे में लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली भारी सफलता के देखते हुए विधानसभा चुनाव में उसी तर्ज पर जीत दोहराने की कोशिश तो करेगी, लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में हुई गलतियों को दोहराने से बचेगी.
पार्टी ने संकेत दिए हैं कि मापदंड पर खरे नहीं उतरने वाले मंत्री और विधायकों के टिकट कटेंगे और कोई कितना भी बडा नेता क्यों न हो, उसकी पसंद-नापसंद पर न किसी को टिकट मिलेगा और न ही कटेगा. पार्टी इस बार 65 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही. ऐसे में 20 फीसदी सीटिंग विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा है, जबकि दूसरे दल से आए नेता भी माने जा रहे हैं टिकट के प्रबल दावेदार हैं.
इसतरह से पार्टी की ओर से एक-एक सीट की गहन समीक्षा की जा रही है. इन सब के बीच पार्टी में कम से कम 20 फीसदी सीटिंग विधायकों के टिकट काटे जाने की चर्चा है. इसे लेकर भाजपा के सीटिंग विधायक बेचैन हैं. सीटिंग विधायकों के लिए टिकट पाना एक बडी चुनौती है. सभी अपनी-अपनी गोटी फिट करने में जुटे हुए हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव हुए थे. भाजपा को इन राज्यों में हार का मुंह देखना पडा था. हार की समीक्षा में पार्टी के सीटिंग विधायकों और मंत्रियों पर दांव खेलने को अहम माना गया था. भाजपा ने इससे सबक लिया है.
लोकसभा चुनाव में राज्य के 12 सीटिंग सांसदों में से चार का टिकट काटा गया था. पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा. लिहाजा पार्टी नेतृत्व विधानसभा चुनाव में भी बडे बदलाव के मूड में है. राज्य में 81 विधानसभा सीटें हैं. इनमें भाजपा के 43 सीटिंग विधायक हैं.
उधर, पार्टी में दूसरे दल के विधायकों, नेताओं व कार्यकर्ताओं के शामिल होने का सिलसिला जारी है. यहां भाजपा के सीटिंग विधायकों के लिए दोहरी चुनौती है. एक तो अपने दल के ही दावेदार पहले से हैं, वहीं दूसरे दल से शामिल हुए नेताओं का दावा भी बन रहा है. कुछ सीटें ऐसी हैं, जहां आधा दर्जन से अधिक दावेदार हैं.
झारखंड को भाजपा अपेक्षाकृत कठिन राज्य मान रही है. यहां पर विपक्षी एकजुटता उसे खासा नुकसान पहुंचा सकती है. हालांकि लोकसभा चुनावों में उसे 14 में से 12 सीटें मिली थीं. चूंकि लोकसभा की महाराष्ट्र व हरियाणा की सफलता विधानसभा चुनाव में नहीं चली इसलिए भाजपा झारखंड को लेकर भी ज्यादा आश्वस्त नहीं है. पिछली बार 2014 में मोदी लहर में लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा 37 सीटें जीतकर बहुमत से पांच सीटें दूर रह गई थी.
वहीं, भाजपा के एक प्रमुख नेता ने कहा कि राज्य में टिकट वितरण में सख्ती केवल शब्दों में नहीं, बल्कि अमल में होगी. खराब रिपोर्ट कार्ड वाले मंत्री और विधायक का टिकट कटेगा. किसी बडे नेता की पसंद-नापसंद पर ना तो टिकट मिलेगा और ना ही कटेगा.
केंद्रीय नेतृत्व सारी स्थिति पर बारीकी से नजर रखे हुए है. यहां बता दें कि झारखंड अपने गठन के बाद से 19 सालों में दस मुख्यमंत्री देख चुका है. इनमें मौजूदा मुख्यमंत्री रघुवर दास अकेले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री रहे हैं और पांच साल पूरे करने वाले पहले मुख्यमंत्री भी हैं.
इन पांच सालों को निकाल दें तो 14 साल में राज्य ने नौ मुख्यमंत्री देखे हैं. इस दौरान राज्य में तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगाना पडा. ऐसे में भाजपा यहां पर सबसे बडा मुद्दा स्थिर सरकार का बना रही है. इसके अलावे कई ऐसे मुद्दे हैं, जिनके आधार पर भाजपा अपनी स्थिती और मजबूत करने की हर संभाव कोशीश करेगी. लेकिन अभी सभी की निगाहें टिकट बंतवारे और संभावित भगदड पर भी टिकी हुई है.