इस दिग्गज BJP नेता की हालत देख रो पड़ते हैं आडवाणी! बेटे ने चिट्ठी में लिखा दर्द
By खबरीलाल जनार्दन | Published: June 6, 2018 04:47 PM2018-06-06T16:47:23+5:302018-06-06T16:57:43+5:30
जसवंत सिंह देश के वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री रह चुके हैं।
कभी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 'हनुमान' की उपाधि रखने वाले दिग्गज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता जसवंत सिंह अब चल-बोल भी नहीं पाते। देश के वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री रहे जसवंत अब बेड पर पड़ गए हैं। उनकी हालत कमोबेश अटल बिहारी वाजपेयी जैसी हो गई है, जिनका शरीर जवाब दे गया है। जसवंत सिंह के बेटे व राजस्थान की सीट से विधायक मानवेंद्र सिंह ने द प्रिंट में लिखी एक चिट्ठी में उनकी हालत बयां की है।
उन्होंने लिखा- मेरे पिता जसवंत सिंह आमतौर पर खेल की खबरें नहीं पढ़ा करते। लेकिन साल 2013 में एक दिन उन्होंने मुझसे माइकल शुमाकर के सिर में लगी चोट के बारे में पूछा। मेरे लिए चौंकाने वाला था। क्योंकि करीब आठ महीने बाद उन्हें वैसी ही चोट लगी। बाद में मैंने शुमाकर से जुड़ी कई खबरें पढ़ीं। उनके परिवार ने उनके घायल होने की जानकारी को बेहद छुपाकर रखा था।
अब मुझे उनके परिवार की ओर से शुमाकर की जानकारियां छिपाने का मतलब समझ आ रहा है। हम भी वही करते हैं। क्योंकि मेरे पिता अब किसी से नहीं मिलते। फिर एक शख्स ऐसे हैं जो नियमित उनसे मिलने आते हैं, उनका नाम है लाल कृष्ण आडवाणी। जब-जब वे मेरे पिता को देखते हैं उनकी आंखों में आंसू भर आते हैं। मेरे पिता की हालत भी करीब-करीब अटल जी की तरह हो गई है।
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उन्होंने यह भी लिखा, मेरे पिता और अटल जी ने अद्भुत दोस्ती निभाई। वे दोनों तमाम राजनैतिक उठापटकों के बीच बहुत ही करीबी दोस्त थे। अब आखिरी लम्हों में भी वे दोनों दोस्ती निभा रहे हैं। बस फर्क इतना है कि अब अटल का हनुमान उड़ नहीं पाता।
उन्होंने कंधार विमान अपहरण कांड को याद करते हुए लिखा, 24 दिसंबर 1999 से लगातार एक महिला मेरे घर के नंबर फोन करती। वह चिल्लाती, गालियां देती, रोती, दुत्कारती। फिर भी मेरे पिता रोज उसका फोन उठाते। वह महिला कंधार विमान अपहराण कांड में एक क्रू मेंबर की पत्नी थी। उसका आरोप था कि आप मेरे पति को बचाने के लिए कुछ नहीं करते। लेकिन वही महिला 1 जनवरी 2000 को मेरे घर आई और मेरे पिता को धन्यवाद करते हुए उनसे माफी मांगी।
इसी तरह की कई घटनाओं को याद करते हुए वह जिन्ना पर लिखी किताब के बाद उठे बवाल में उनके सियासी कॅरियर बलि चढ़ने का जिक्र करना नहीं भूलते। मानवेंद्र लिखते हैं कि मैंने अपने पिता से उस विवाद के बारे में पूछा था। उन्होंने कहा कि इसमें हमें गोपनीयता बरतने की जरूरत है और कुछ नहीं। उस तूफान में आडवाणी जी भी उड़ने लगे थे।
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उन्होंने लिखा, अपने राजनैतिक कॅरियर के आखिरी दिनों में मेरे पिता बाड़मेर का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे और अपने गुरु सी राजागोलाचारी की जीवनी लिखना चाहते थे। लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए और इसका उन्हें बहुत दुख रहा। लेकिन अब कोई ऐसी संजीवनी नहीं है जो उनकी मदद कर पाए।